कुछ वर्षों से यूरोपीय संघ के देशों में बहस छिड़ी है कि किस देश को कितने अप्रवासी लेने चाहिए। मुख्य मुद्दा गैरकानूनी अप्रवासियों का है। कुछ देशों पर इसका बहुत ज्यादा बोझ है, तो कुछ पर बहुत कम। यूरोपीय संघ के समझौते में किसी अप्रवासी को शरण देने या इसके बदले हर महीने प्रति व्यक्ति 20 हजार यूरो की रकम देने का प्रस्ताव है। दो देश इस करार से नाराज हैं।
यूरोपीय संघ के इस नई समझौते की यह कहकर आलोचना हो रही है कि कुछ देश पैसों के बल पर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। बिना किसी पूर्व सूचना के गैरकानूनी तरीके से यूरोपीय संघ में दाखिल होने वाले ज्यादातर लोग, संघ की दक्षिणी सीमा में जुटते हैं। तुर्की, ट्यूनीशिया, मोरक्को या लीबिया से ये आप्रवासी नावों के जरिए खतरनाक समुद्री सफर करके इटली, स्पेन और ग्रीस पहुंचते हैं।
यूरोपीय संघ के कानून के तहत अप्रवासी संघ के जिस देश में सबसे पहले पहुंचते हैं, उन्हें वहीं शरण का आवेदन देना चाहिए। इस कानून की वजह से दक्षिणी सीमा के देशों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ा है। शरणार्थी संकट के कारण इन देशों में राजनीतिक रुझान भी बदला है।
हाल के वर्षों में ब्रसेल्स ने यूरोपीय संघ के उत्तरी और पूर्वी देशों से अपनी जनसंख्या के अनुपात में शरणार्थियों को लेने का निर्देश दिया, लेकिन ऐसी कोशिशें नाकाम रहीं। अप्रवासन नीति के जानकारों का कहना है कि यह तरीका असरदार भी नहीं लगता है। अप्रवासन के मुद्दे पर ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में अब नई योजना पर सहमति बनी है। इसके तहत अप्रवासियों को अपने यहां न रखने वाले देशों को प्रति अप्रवासी 20 हजार यूरो प्रतिमाह की रकम देनी होगी। यह रकम एक कोष में जाएगी। कोष ब्रसेल्स के अधीन होगा। इसके जरिए अप्रवासियों को अपने यहां रखने वाले देशों को आर्थिक मदद दी जाएगी।
अप्रवासियों के प्रति सख्त रुख अपनाने वाले हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने ईयू के फैसले की आलोचना की है। अपने फेसबुक पेज पर ओरबान ने लिखा, ब्रसेल्स अपनी ताकत का दुरुपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा, यह अस्वीकार्य है। वे ताकत के बूते हंगरी को आप्रवासियों के एक देश में बदलना चाहते हैं।
पोलैंड ने अभी इस पर असहमति जताई है, लेकिन दोनों देशों की आपत्तियां बहुमत वाली मतदान प्रणाली में कमजोर साबित हुर्इं। मानवाधिकार और अप्रवासियों के अधिकारों की वकालत करने वालों ने भी यूरोपीय संघ के इस करार की आलोचना की है। आक्सफैम की विशेषज्ञ श्टेफानी पोप का आरोप है कि कुछ यूरोपीय देश पैसों के बल पर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
यूरोपीय संघ के विदेश मंत्री शरण के आवेदन के लिए एक नई प्रणाली बनाने पर भी सहमत हुए हैं। नई प्रणाली के तहत शरण और वापस भेजने की प्रक्रिया को बदला जाएगा। गलत जानकारी देने वालों या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले लोगों को भी जल्द से जल्द यूरोपीय संघ से बाहर भेजा जाएगा। कम सुरक्षित माने जाने वाले देशों के नागरिक सामान्य तरीके से शरण के लिए आवेदन कर सकेंगे।
इन देशों में सीरिया, बेलारूस, इरीट्रिया, यमन और माली शामिल हैं। इस नई करार पर अब कई दौर की बातचीत होगी और पूरा ढांचा तैयार किया जाएगा। आगे यूरोपीय संघ के सांसद इस पर वोट करेंगे। सारे चरणों में सहमति के बाद 2024 में इन प्रस्तावों के कानून बनने की संभावना है।
भारत सुरक्षित इलाकों की श्रेणी में
वर्ष 2022 में शरण मांगने वाले कुल अप्रवासियों में से सिर्फ 40 फीसद आवेदन सफल रहे। बाकियों को उनके देश वापस भेजने की कवायद तेज की गई। भारत, उत्तरी मैसेडोनिया, मोल्डोवा, वियतनाम, ट्यूनीशिया, बोस्रिया, सर्बिया और नेपाल जैसे देशों को सुरक्षित इलाकों की श्रेणी में रखा गया है. इसका मतलब है कि इन देशों से गैरकानूनी तरीके से यूरोप आने वाले लोगों को शरण देने की गुंजाइश बहुत कम रहेगी।