प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया से कहा है कि वह उन देशों को जवाबदेह बनाए जो आतंकियों को पनाह, समर्थन, हथियार और धन देते हैं। उन्होंने आतंकवाद को धर्म से अलग करने की अपनी अपील को भी दोहराया। सोमवार को 37वां सिंगापुर व्याख्यान देते हुए प्रधानमंत्री ने आगाह किया कि आतंकवाद न सिर्फ जिंदगियों को लील रहा है बल्कि यह हमारी अर्थव्यवस्थाओं को भी पटरी से उतार सकता है।

उन्होंने कहा आतंकवाद के खिलाफ ‘राजनीतिक, कानूनी, सैन्य और खुफिया प्रयास हो सकते हैं लेकिन हमें इससे भी अधिक करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, राष्ट्रों को एक दूसरे के साथ और अधिक सहयोग करना चाहिए । समाज एक दूसरे से और अन्यों के साथ जुड़ने चाहिए। हमें आतंकवाद को धर्म से अलग करना चाहिए और हम उन मानव मूल्यों को आगे लाएं जो हर आस्था को परिभाषित करते हैं। मोदी ने कहा कि भर्तियों और अपनी पसंद के लक्ष्यों को निशाना बनाने, दोनों संदर्भो में आतंकवाद का साया समाजों और राष्ट्रों पर फैलता जा रहा है और दुनिया को इसके खिलाफ एक आवाज में बोलना चाहिए और एकीकृत रूप से कार्रवाई करनी चाहिए ।

प्रधानमंत्री ने कहा, उन देशों को जवाबदेह बनाना चाहिए जो आतंकियों को पनाह देते हैं, समर्थन देते हैं, हथियार और धन देते हैं। उन्होंने हालांकि किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन आतंकियों के पनाहगाहों की उनकी टिप्पणी को पाकिस्तान के संदर्भ में देखा जा रहा है जहां लश्करए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क स्थित हैं और वहां के प्रतिष्ठानों द्वारा पोषित किए जा रहे हैं।

दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन और कुछ पूर्वी एशियाई देशों में बने गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री ने आगाह किया कि समु्रद, अंतरिक्ष और साइबर जगत संघर्ष के नए मंच नहीं बनने चाहिए बल्कि इन्हें ‘साझा समृद्धि के अवसर’ के तौर पर विकसित किया जाए । उन्होंने इस दिशा में काम करने की पेशकश की। मोदी ने कहा कि कैसे भारत और चीन अपने दोनों देशों की सीमाओं के सवाल सहित ‘अनसुलझे मुद्दों’ के बावजूद अपने सीमा क्षेत्रों को शांतिपूर्ण और स्थिर बनाए हुए हैं। उन्होंने कहा, हमारे बदलते समय की इस क्षेत्र की सबसे बड़ी जरूरत है कि हम ऐसे नियमों और मानदंडों का पालन करें और उन्हें मजबूत बनाएं जो हमारे सामूहिक आचरण को परिभाषित करते हों।

उन्होंने कहा, हम सबको एक सहयोगात्मक भविष्य के निर्माण के लिए पूर्वी एशिया शिखर और अन्य मंचों पर साथ आना चाहिए जो केवल कुछ की ताकत पर नहीं बल्कि सबकी सर्वानुमति पर आधारित हो। चीन और कुछ पूर्व एशियाई देशों के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर बने गतिरोध की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री ने कहा, भारत इस क्षेत्र और अमेरिका और रूस सहित इसके बाहर के देशों के साथ, हमारे पूर्व एशियाई शिखर साझेदारों के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा कि हमारे समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर जगत जैसे साझा हित, हमारी साझा खुशहाली के अवसर बने रहें और संघर्ष के नए मंच नहीं बनने पाए ।

यह बयान इस मायने में बहुत महत्त्वपूर्ण है जब दक्षिण चीन सागर में अमेरिका भी शामिल हो रहा है और चीन उसे इससे दूर रहने की चेतावनी दे रहा है, जिससे इस क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और चीन अपने संबंधों की पेचीदगियों के बावजूद एक-दूसरे के साथ रचनात्मक ढंग से पेश आएंगे क्योंकि दोनों आश्वस्त और विश्वास से भरे हुए देशों के रूप में अपने हितों और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हैं।

उन्होंने कहा, जिस तरह चीन के उत्थान ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया है, ऐसे में दुनिया वैश्विक और क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को आगे बढ़ाने में मदद के लिए चीन की ओर देख रही है। इस बात को रेखांकित करते हुए कि भारत और चीन पूरी मानवता का 40 प्रतिशत है और विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। मोदी ने कहा, चीन का आर्थिक बदलाव हमारे लिये एक प्रेरणा है।

मोदी ने कहा, ऐसे में जबकि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित करने में लगा है और भारत वृद्धि की रफ्तार पकड़ने की ओर कदम बढ़ा रहा है। हम दोनों एक दूसरे की प्रगति को ताकत दें। और हम अपने क्षेत्र में स्थिरता और खुशहाली को बढ़ाने में सहयोग कर सकते हैं। मोदी ने कहा कि भारत और चीन दोनों मिलकर कारोबार और जलवायु परिवर्तन जैसी साझा वैश्विक चुनौतियों को और प्रभावकारी ढंग से हल कर सकते हैं।

आतंकवाद को धर्म से अलग करने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह न सिर्फ जिंदगियों को लील रहा है बल्कि यह हमारी अर्थव्यवस्थाओं को भी पटरी से उतार सकता है। उन्होंने कहा, राष्ट्रों को एक दूसरे के साथ और अधिक सहयोग करना चाहिए । समाज को एक दूसरे से और अन्य के साथ जुड़ना चाहिए । हमें आतंकवाद को धर्म से अलग करना चाहिए और उन मानव मूल्यों को आगे लाएं जो हर आस्था को परिभाषित करते हैं।

मोदी और रजाक की बातचीत
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को मलेशियाई समकक्ष नजीब रजाक के साथ बातचीत की जो द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने के सिलसिले में थी जिसमें बेहतर भागीदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। मलेशिया दौरे के तीसरे और आखिरी दिन मोदी ने यहां अपने शानदार स्वागत के साथ ही द्विपक्षीय कार्यक्रमों की शुरूआत की।

कुआलालमपुर के बाहरी हिस्से में फैली प्रशासनिक राजधानी पुत्राजया के पेर्डना चौक में मोदी अपनी कार से बाहर निकले, तो नजीब ने गर्मजोशी के साथ उन्हें गले लगा लिया। बंद गले का सूट पहने मोदी ने गार्ड गॉर्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया और नजीब ने मलेशियाई मंत्रियों और अधिकारियों से उनका परिचय कराया। इसके बाद मोदी की उनके साथ आमने-सामने की बैठक हुई।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने ट्वीट किया, ‘दोनों नेताओं के बीच बातचीत शुरू …। मोदी की रजाक के साथ बिना किसी सहयोगी के मुलाकात हो रही है।’
भव्य स्वागत, गार्ड ऑफ ऑनर और मोदी व नजीब के बीच आमने सामने की मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडल स्तरीय बातचीत शुरू हुई। एक ट्वीट में स्वरूप ने कहा, बेहतरीन भागीदारी पर फोकस…। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री नजीब रजाक ने प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता का नेतृत्व किया। रक्षा और सुरक्षा प्रमुख मुद्दे हैं जिनमें दोनों देश द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। मोदी ने बताया कि मलेशिया उनकी सरकार की ‘ऐक्ट ईस्ट’ नीति का प्रमुख अंग है। वर्ष 2010 से मलेशिया के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी है।

प्रशासनिक राजधानी पुत्राजया में नजीब के साथ अपनी बातचीत के बाद संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मोदी ने कहा, सुरक्षा के क्षेत्र में हमारे सहयोग के लिए मैं खास तौर पर आपका आभारी हूं। यह हमारी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में हमारी साझा प्रतिबद्धता रेखांकित करता है। हम इस क्षेत्र में अपने सहयोग लगातार प्रगाढ़ करते रहेंगे। आसियान और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लेने के लिए यहां आए मोदी ने कहा कि भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ लगातार आतंकी हमलों की कोशिश का जिक्र नहीं भी करें तो विभिन्न देशों में हाल ही में हुए हमले इस खतरे की वैश्विक प्रकृति की याद दिलाते हैं।

चरमपंथ और कट्टरपंथ से निपटने में नजीब के नेतृत्व की सराहना करते हुए मोदी ने कहा कि यह इस चुनौती के खिलाफ वैश्विक प्रयासों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू, बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने आतंकवाद को दुनिया का ‘सबसे बड़ा खतरा’ बताते हुए रविवार को कहा था कि इसे धर्म से अलग करना चाहिए।