धरती तप रही है, तापमान रिकॉर्ड लेवल पर बढ़ रहा है और लोग गर्मी से त्रस्त चल रहे हैं। ये बात कोई सिर्फ इस गर्मी की नहीं है, यूएन की नई रिपोर्ट बताती है कि बीते आठ साल सबसे ज्यादा गर्म रहे हैं। ग्लेशियर तेजी से पिघला है और समुद्री जलस्तर बढ़ता जा रहा है। पिछले एक दशक के भीतर ही जलस्तर वार्षिक औसत के लिहाज से 4.62 मिलिमीटर तक बढ़ गया है।
रिपोर्ट में क्या बताया गया है?
जानकारी के लिए बता दें कि शुक्रवार को वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2015 से 2022 तक सबसे ज्यादा गर्म रहे, यानी कि आठ सालों में गर्मी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी। रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि पिछले साल हीटवेव की वजह से अकेले यूरोप में 15000 से ज्यादा मौतें दर्ज की गई थीं। रिपोर्ट में एक और चिंताजनक ट्रेंड को लेकर विस्तार से बताया गया है। अक्टूबर 2021 से अक्टूबर 2022 के बीच ग्लेशियर 1.3 मीटर तक पिघल गया। असल में क्योंकि ग्रीनहाउस गैस लगातार वातावरण में बढ़ती जा रही है, उस वजह से ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं और ग्लोबल वॉर्मिंग भी बढ़ रही है।
ग्रीनहाउस गैस का असर तो पिछले कुछ सालों में इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि CO2 से लेकर नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। आंकड़े बताते हैं कि मीथेल 2021 में 262 फीसदी तक दर्ज की गई थी, वहीं नाइट्रस ऑक्साइड 124 प्रतिशत तक पहुंच गई। अब इस स्थिति से निपटने के लिए दुनिया के कई देशों ने पेरिस समझौता किया था. संयुक्त राष्ट्र के तहत यह समझौता सन 2015 में हुआ था। दुनिया के एक सौ छियानवे देशों ने पेरिस समझौते की शर्तों पर सहमति जताई थी।
पेरिस समझौता क्या है, कितना असरदार?
इसका मुख्य मकसद जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन की एक सीमा तय करना था, ताकि पृथ्वी के बढ़ते तापमान को रोका जा सके। पेरिस समझौते का लक्ष्य था कि 2025 तक हर साल जलवायु परिवर्तन रोकने के काम के लिए सौ अरब डालर जुटाए जाएंगे। अभी इस समय कई देश पेरिस समझौते के तहत कदम उठा रहे हैं, भारत ने भी इस दिशा में कई काम किए हैं। सरकार द्वारा आने वाले सालों के लिए कई बड़े लक्ष्य निर्धारित कर दिए गए हैं।