अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज हो चुके तालिबान का सर्मथन करने के लिए चीन की सरकार और राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब अपने ही घर में घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल, एक तरफ तो चीन की सरकार कट्टर इस्लाम और आतंक के खिलाफ जंग छेड़ने जैसी बातें करती है तो वहीं दूसरी तरफ तालिबान से हाथ मिलाने की भी कवायद कर रही है।

भले ही चीन की सरकार तालिबान के इतिहास पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है लेकिन अपने घर में ही लोग सवाल करने लगे हैं कि तालिबान के इतिहास और महिलाओं के प्रति उसके व्यवहार को कैसे भुलाया जा सकता है? गौरतलब है कि चीन लंबे समय तक तालिबान को शिनजियांग प्रांत में हमलों के लिए कसूरवार ठहराता रहा है। चीन अब तक कहता रहा है कि पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन के चलते ये हमले होते हैं।

अब चीन की सरकार द्वारा तालिबान को अफगानिस्तान के लोगों की पंसद बताना आलोचना की वजह बन गयी है। चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से यूजर सवाल करने लगे हैं कि तालिबान कैसे अफगानिस्तान के लोगों की पसंद हो सकता है? कई जानकार बताते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के चलते चीन ने अपनी रणनीति में यू टर्न ले लिया है।

दरअसल चीन को डर है कि अफगानिस्तान में अस्थिरता पड़ोसी देश पाकिस्तान को प्रभावित कर सकती है जहां चीन ने अपनी महत्वकांक्षी योजना के लिए बड़ी पूंजी निवेश की हुई है।

हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि पहले के मुकाबले तालिबान इस बार ज्यादा ‘विवेकशील’ और ‘स्पष्ट’ है। साथ ही साथ चीन का ध्यान अफगानिस्तान में अमेरिका की विफलताओं को गिनाने पर अधिक है।

वहीं चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक वीडियो संदेश जारी किया। जिसमें आतंकवाद का कोई जिक्र नहीं किया गया। चीन के मुताबिक तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी सेना से जंग लड़ी है।

वहीं चीन की सरकारी मीडिया भी तालिबान की एक सुधरी हुई और साफ छवि बनाने की कोशिश कर रही है। चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक अफगानिस्तान में जिंदगी सामान्य होने लगी है और तालिबान ने देश के लोगों से कई वादे किए हैं जिसमें महिलाओं के लिए अधिकार और लोगों के लिए सुरक्षा शामिल हैं।