चीन के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की चीनी भाषा की पाठ्यपुस्तकों में पारंपरिक संस्कृति पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए संशोधन किया गया है। चीन में पारंपरिक संस्कृति माओ युग, खासकर एक दशक तक चली सांस्कृतिक क्रांति के दौरान व्यापक रूप से नष्ट हो गई थी। सांस्कृतिक क्रांति के पचास साल इस साल मई में ही पूरे हुए, हालांकि सरकार ने इसमें बहुत अधिक रुचि नहीं दिखाई।

शरद ऋतु से हुनान, हेनान, गुआंग्डोंग, लिओनिंग और अन्य प्रांत स्तरीय क्षेत्रों में पहली और सातवीं के 40 लाख से अधिक छात्र नई पुस्तकों का इस्तेमाल शुरू करेंगे। शिक्षा मंत्रालय के अधीन भाषा और संस्कृति प्रेस के अध्यक्ष वांग जूमिंग ने कहा कि पिछले संस्करण की 40 फीसद से अधिक पाठ्यसामग्री बदल दी गई है। उन्होंने बताया कि माध्यमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में पारंपरिक सामग्री को 40 फीसद तक बढ़ाया गया है जबकि प्राथमिक स्कूलों में यह संशोधन 30 फीसद तक किया गया है।

माध्यमिक स्कूल पाठ्यपुस्तकों की वरिष्ठ संपादक झू ने कहा, ‘हमने अभिभावकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसा किया जो चाहते हैं कि उनके बच्चे पारंपरिक संस्कृति के बारे में अधिक सीखें।’ उन्होंने कहा कि अब भी अनेक लोग प्राचीन चीनी पुस्तकों की भाषा को नहीं समझ पाते और इसीलिए माता-पिता अपने बच्चों को पारंपरिक शिक्षा पढ़ाने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों में भेजते हैं। पाठ्यपुस्तकों में संशोधन ऐसे समय हुआ है जब इस महीने माओ की सांस्कृतिक क्रांति को 50 साल पूरे हुए। इसे चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना (सीपीसी) ने काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया, जो उनकी कट्टरपंथी कम्युनिस्ट विचारधारा से अलग हो गई।

साल 1966 के बाद के 10 साल चीन में सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण से उथल-पुथल रहे। इसमें व्यापक सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन हुआ। इसमें अनगिनत नेताओं और बुद्धिजीवियों को मौत का सामना करना पड़ा, सशस्त्र संघर्ष में नागरिक मारे गए और सांस्कृतिक प्रतीक और कलाकृतियां नष्ट हो गईं।

सरकार संचालित ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने सांस्कृतिक क्रांति के 50 साल पूरे होने पर अपने संपादकीय में लिखा, ‘सांस्कृतिक क्रांति के युग का अंत हो गया है…हम सांस्कृतिक क्रांति को विदाई दे चुके हैं। हम आज एक बार फिर यह कह सकते हैं कि सांस्कृतिक क्रांति वापस नहीं आ सकती और न वापस आएगी। आज के चीन में इसके लिए कोई जगह नहीं है।’