एक नई पुस्तक में कहा गया है कि हथियारों के जखीरे एवं बहु आयुध मिसाइलों में वृद्धि से चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच त्रिकोणीय परमाणु प्रतिद्वंद्विता बढ़ सकती है। पुस्तक में चेतावनी दी गई है कि इस प्रकार के हथियारों पर प्रतिबंध लगाए जाने की कोई वास्तविक संभावना नहीं है। ‘द ल्यूर एवं पिटफाल्स ऑफ एमआईआरवीएस: फ्रॉम द फर्स्ट टू द सेकंड न्यूक्लियर एज’ शीर्षक वाली पुस्तक में कहा गया है कि चीन डीएफ-5बी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल तैनात करने का काम शुरू कर रहा है। ऐसे में भारत और पाकिस्तान भी अपनी कुछ मिसाइलों पर बहु आयुध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

स्टिम्सन सेंटर के सह संस्थापक एवं पुस्तक के सह संपादक माइकल क्रेपन एवं शेन मेसन ने कहा कि दूसरे परमाणु काल में बहु आयुध ले जाने में सक्षम मिसइलों पर प्रतिबंध लगाने की कोई वास्तविक संभावना नहीं है। चीन ने ऐसी मिसाइलें तैनात करनी शुरू कर दी हैं और भारत एवं पाकिस्तान के भी इसी दिशा में आगे बढ़ने की संभावना है। पुस्तक में कहा गया है कि इन कदमों के पीछे के मकसद यह तय करेगा कि परमाणु हथियारों में किस हद तक इजाफा होगा और हथियारों के जखीरे में इजाफे के प्रभाव कितने घातक हो जाएंगे।

क्रेपन ने कहा, ‘अच्छी खबर यह है कि चीन, भारत और पाकिस्तान अमेरिका और सोवियत संघ की तरह अधिक एमआईआरवी विकसित नहीं करेंगे। बुरी खबर यह है कि सीमित तैनाती के बावजूद एशिया में त्रिकोणीय परमाणु प्रतिद्वंद्विता और जटिल हो जाएगी।’ पुस्तक में चेतावनी दी गई कि यदि मिसाइल सटीकता एवं आयुधों का विकास चीन और नई दिल्ली शक्ति संतुलन की युद्धक रणनीतियों की दिशा में बढ़ते कदमों की ओर संकेत करता है तो दूसरा परमाणु काल कहीं अधिक खतरनाक होगा और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर परमाणु हथियारों की प्रमुखता कम करने की संभावनाएं क्षीण हो जाएंगी।

क्रेपन के अनुसार एशिया में त्रिकोणीय परमाणु प्रतिद्वंद्विता अमेरिका और पहले के सोवियत संघ से काफी अलग होगी।
चीन के अपने शस्त्रागार का निर्माण मध्यम गति से जारी रखने की संभावना है। उसके आगामी 10 से 15 वर्षों में अपने शस्त्रागार में 200 से कम आयुध और जोड़ने की संभावना है। क्रेपन ने कहा कि बहु आयुध मिसाइलों और हथियारों के जखीरे में थोड़े सा विकास भी चीन, भारत एवं पाकिस्तान में त्रिकोणीय परमाणु मुकाबला बढ़ा देगा।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस प्रतिद्वंद्विता को कम करने के लिए संबंधों में सुधार किए जाने और चीन एवं भारत और भारत एवं पाकिस्तान के बीच परमाणु जोखिम कम करने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन एवं भारत परमाणु संबंधी जवाबी रणनीतियों से दूर रह कर एमआईआरवी हासिल करने की लालसा और उससे होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। क्रेपन ने कहा, ‘यदि चीन, भारत एवं पाकिस्तान प्रथम परमाणु काल में अमेरिका और सोवियत संघ के गलत कदमों को दोहराने से बचना चाहते हैं तो वे मिसाइलों के ऊपर बहु आयुध स्थापित करने की गतिविधियों को सीमित करेंगे।’