सरकार ने गुरुवार (22 सितंबर) को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि सीएफएल बल्ब की मियाद या एक्यपायरी के बाद बल्ब को वापस एकत्रित करने की जिम्मादी इन्हें बनाने वाली कंपनियों की होगा ताकि इसका कचरा अनौपचारिक क्षेत्र या अनधिकृत इकाइयों के हाथों में न पहुंचने पाएं। सरकार ने कहा कि नए ई-कचरा प्रबंधन नियमों में यह व्यवस्था की गई है। सरकार ने यह बात मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ के समक्ष कही। पीठ इलेक्ट्रिक बल्ब विनिर्माताआें की उस याचिका की सुनवाई कर रही है जिसमें केंद्र के ई-कचरा प्रबंधन नियमों-2016 को चुनौती दी गई है। ये नियम 23 मार्च को अधिसूचित किए गए। सीएफएल बनाने वाली कंपनियों फिलिप्स लाइटिंग, हैवल्स, सूर्या तथा इलेक्ट्रिक लैंप एंड कम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने इन नियमों को चुनौती दी है।
इनमें नियमों के तहत कंपनियों के लिए मियाद पूरी होेने के बाद सीएफएल को उपभोक्ताआें से एकत्रित करना होगा और फ्लोरेसेंस तथा अन्य मर्करी का निपटान करना होगा। याचिका में कहा गया है कि ‘एंड आफ लाइफ’ काफी अनिश्चित सी चीज है और यह उपभोक्ताआें के हाथ में है। इन कंपनियों का दावा है कि कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लैंप को एकत्रित करना स्थानीय एवं निगम निकायों की जिम्मेदारी है जिसे ‘गैरकानूनी’ तरीके से उन पर थोप दिया गया है।
पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह कुछ उसी तरह से है, जैसे कंपनी पुराने एलईडी या सीएफएल बल्ब को लौटाने पर नए की खरीद में 10 रुपए की छूट देती है। सरकार ने अदालत में दायर संक्षिप्त हलफनामे में कहा, ‘‘नए नियमों में सभी सीएफएल या मर्करी वाले लैंपों के लिए इसी तरह की योजना क्रियान्वित की गई है। इसमें विनिर्माण की तारीख से कोई मतलब नहीं है और इसमें नया सीएफएल या एलईडी खरीदने का मामला भी नहीं है।’
इसमें कहा गया है कि नए नियमों में ‘डिपाजिट रिफंड योजना’ को शामिल किया गया है। इसके तहत कंपनियां इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रानिक उपकरणों की बिक्री के समय अतिरिक्त राशि लेती है और मियाद पूरी होने के बाद उत्पाद लौटाने पर यह राशि ब्याज सहित लौटाती हैं। सरकार की दलील का विरोध करते हुए कंपनियों ने कहा कि उनकी 10 रुपए छूट की योजना का मकसद स्थानीय निकायों को इनके संग्रहण में मदद देना है। याचिका में फ्लोरेसेंट तथा अन्य मर्करी वाले लैंपों को ई-कचरा प्रबंधन नियमों से हटाने की अपील की गई है। कंपनियों का कहना है कि नियमों में मसौदे में यह शामिल नहीं था और बाद में इसे बिना उनसे विचार विमर्श के शामिल कर लिया गया।