कोरोना महामारी की वजह से कई देशों में पाबंदियां लगाई गई थी जिसकी वजह से वैश्विक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई थी। इन्हीं कारणों से प्रदूषण का स्तर भी काफी कम हो गया था। लेकिन अब पाबंदियों में छूट मिलने के बाद इसका स्तर फिर से बढ़ने लगा है। इस वर्ष वैश्विक कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर महामारी से पूर्व के काल पर ही पहुंचने की आशंका है।
यह अहम रिपोर्ट ऐसे वक्त में सामने आई है जब दुनिया भर के नेताओं ने सीओपी 26 वार्ता के लिए ग्लासगो में बैठक की। इसका मकसद ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करना और उसपर अमल करना है। यह विश्लेषण ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ द्वारा किया गया था। जो दुनिया भर के वैज्ञानिकों का एक समूह है और यह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस के बारे में जानकारी एकत्र करता है।
रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2020 में पहले वर्ष की तुलना में 5.4 प्रतिशत कम हुआ। लेकिन इस वर्ष इसमें 2020 के स्तर से 4.9 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होने की आशंका है। इसका कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के खुलने की वजह से ईंधन की मांग में बढ़ोतरी है।
चीन से उत्सर्जन अन्य देशों की तुलना में तेजी से हुआ है। यह उन कुछ देशों में से है जहां 2020 में उत्सर्जन में 1.4 प्रतिशत तक वृद्धि हुई। भारत में इस वर्ष चीन के मुकाबले तेज गति से उत्सर्जन होने का अनुमान है। अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों में भी इस वर्ष उत्सर्जन 7.6 प्रतिशत बढ़ने के आसार हैं।
कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण को अपनाया जाता है। जिसका असर कई देशों पर भी देखा गया। साल 2012-14 के बीच ऑस्ट्रेलिया में इसे अपनाया गया था और वहां कार्बन उत्सर्जन में कमी देखी गई। लेकिन साल 2019 के बाद इसमें फिर से वृद्धि होने लगी। बीते दिनों हुए सीओपी 26 सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कटौती करने की प्रतिबद्धता जताई है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करेगा। भारत अब से 2030 के बीच अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कटौती करेगा। (भाषा इनपुट्स के साथ)