रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बुधवार को कज़ान एक्सपो सेंटर में शुरू हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र में विश्व नेताओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इस बैठक में ब्रिक्स के विस्तार पर चर्चा होगी, साथ ही संगठन की दक्षता बनाए रखने पर भी ध्यान दिया जाएगा। पुतिन ने बताया कि 30 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान भी शामिल हुए। दोनों नेताओं को पारिवारिक फोटो के बाद आपस में चर्चा करते देखा गया। इस मुलाकात को दोनों देशों के आपसी संबंधों के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच बैठक महत्वपूर्ण

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक द्विपक्षीय बैठक होने को लेकर विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर नाथ सचदेव ने कहा कि यह दोनों देशों के बीच बातचीत और सहयोग की आवश्यकता को दर्शाता है। दोनों देशों ने मिलकर काम करने की इच्छा जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार सत्ता में आने के बाद चीन के साथ संबंध सुधारने पर जोर दिया। मोदी सरकार ने आर्थिक और क्षेत्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ संवाद को फिर से शुरू करने की जरूरत महसूस की। इसके तहत, दोनों देशों ने धीरे-धीरे उच्च स्तरीय कूटनीति में कदम बढ़ाए। जुलाई में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।

सचदेव ने यह भी कहा कि चीन ब्रिक्स बैठक को सफल बनाने के लिए भारत के साथ सहयोग करने को तैयार है। उनका मानना है कि भारत और चीन के बीच एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तनाव को कम करने की दिशा में यह बैठक एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे दोनों देशों के बीच फिर से गश्त शुरू करने का भी समझौता हुआ है।

इस बैठक का वैश्विक संदेश यह है कि भारत और चीन, पश्चिमी देशों की सोच के विपरीत, दुश्मन नहीं बने रहेंगे। सचदेव ने कहा कि यह बैठक यह साबित करती है कि गैर-पश्चिमी देश भी अपने आपसी संबंधों को सुधारने और समायोजन की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

उन्होंने कहा, “यह बैठक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि गैर-पश्चिमी देश भी समायोजन की तलाश में हैं। ऐसा नहीं है कि भारत और चीन स्थायी दुश्मन होंगे। हम सह-अस्तित्व में रह सकते हैं और मुझे लगता है कि यह इस घटनाक्रम से निकलने वाला बड़ा संदेश है जिसे अमेरिका और यूरोप द्वारा नोट किया जाएगा। उनके अनुमान के अनुसार, भारत और चीन को ध्रुवीय विरोधी होना चाहिए, जबकि यह घटनाक्रम (द्विपक्षीय बैठक) सुनिश्चित करता है कि भारत और चीन के बीच कामकाजी संबंध हो सकते हैं।”