बांग्लादेश में हिंसा अब कुछ कम हो चुकी है, स्थिति फिर पटरी पर आती दिख रही है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि बांग्लादेश में कई महीनों के संघर्ष के बाद एक अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है। यह अलग बात है कि अब देश की राजनीति में शेख हसीना एक सक्रिय भूमिका नहीं निभा रही हैं, वे तो अभी सिर्फ किसी देश में शरण लेने की कवायद में दिख रही हैं।

बांग्लादेश हिंसा: BNP नेता का फुल इंटरव्यू

अब शेख हसीना के लिए तो आगे की राह कुछ मुश्किल रहने वाली है, लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि आवामी लीग की कट्टर विरोधी बीएनपी का अब क्या रुख रहने वाला है। जिस पार्टी को चीन का दोस्त समझा जाता है, अब उसका रुख क्या रहने वाला है। उसी रुख को समझने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने बीएनपी के बड़े नेता अब्दुल मोईन खान से खास बातचीत की है। उस बातचीत में पाकिस्तान, भारत की विदेश नीति और पीएम मोदी को लेकर मोईन ने काफी कुछ बताया है।

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BNP को भारत सरकार की पॉलिसी में दिख रही खोट

इस समय बीएनपी नेता भारत की विदेश नीति को लेकर थोड़ा असहज नजर आ रहे हैं। वे इसे एक बड़ा ब्लंडर मानते हैं कि भारत ने शेख हसीना को अपने देश में पनाह दी हुई है। जोर देकर कहा गया है कि रिश्ते दो देशों के बीच में होते हैं नाकि दो लोगों के बीच में। मोईन कहते हैं कि साउथ ब्लॉक ने एक बड़ी चूक तो की है। उनकी तरफ से सारा फोकस सिर्फ एक तरफ ही शिफ्ट कर दिया गया। कोई इस बात को नहीं नकार सकता कि बांग्लादेश को भारत की मदद से ही आजादी मिली। वरनान 9 महीने के अंदर में हम एक आजाद मुल्क नहीं बन पाते। लेकिन अगर भारत उस मुहिम के लिए सिर्फ एक पार्टी को श्रेय देने की सोच रहा है, यह गलत है। उस आंदोलन का श्रेय तो बांग्लादेश के लोगों को देना चाहिए। आवामी लीग ने तो ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की थी कि एक तरफ शेख मुजीब खड़े हैं तो दूसरी तरफ बाकी सारे। नहीं भूलना चाहिए ज्यादातर लोग ही बांग्लादेश के पक्ष में थे, सिर्फ कुछ लोगों ने ही विरोध किया होगा।

भारत से कैसे रिश्ते चाहती है BNP?

वैसे मोईन यह जरूर मानते हैं कि भारत, बांग्लादेश का सबसे जरूरी साथी रहा है, लेकिन उनके मुताबिक समय आ गया है कि अब रिश्तों को नई दिशा दी जाए। इस बारे में वे कहते हैं कि हम तो भारत के साथ दोस्ती करने में ही विश्वास रखते हैं, दिन और रात हो, भारत ही तो है। आखिर क्यों नहीं हम उससे अच्छे रिश्ते चाहेंगे? लेकिन अब भारत की पॉलिसी में बदलाव हुआ है। इस मुश्किल समय की जरूरत है कि भारत और बांग्लादेश के बीच में जो पॉलिसी चल रही थी, उस पर फिर वर्क किया जाए।

मोदी ने नहीं की हसीना से मुलाकात, BNP नेता खुश

वैसे मोईन को इस बात की संतुष्टि जरूर हो रही है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अभी तक शेख हसीना से एक बार भी मुलाकात नहीं की है। वे मानते हैं कि भारत ने उन्हें अपने देश में जगह जरूर दी है, लेकिन सबसे बड़े नेता ने अभी तक आगे आकर हसीना से कोई बात नहीं की है। मोईन ने इस बात पर भी जोर दिया है कि बांग्लादेश आज भी पाकिस्तान का समर्थन नहीं करता है, वो सिर्फ उस मुल्क के साथ सामान्य रिश्ते चाहता है। चीन को लेकर भी मोईन ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उनके मुतबिक चीन को लेकर हसीना सरकार की नीति तो साफ थी, वो सिर्फ चेकबुक डिप्लोमेसी करने में व्यस्त रहीं, सिर्फ पैसों के लिए वहां रिश्ता बनाया गया।

अंतरिम सरकार का कैसा काम?

बांग्लादेश में जो अंतरिम सरकार बनी है, उसको लेकर भी बीएनपी ने अपना रुख साफ किया है। मोईन का मानना है कि इस अंतरिम सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं। फिर चाहे हसीना काल के समय के अधिकारियों को बदलना होगा या फिर सलमान रहमान और अनिसुल हक जैसे लोगों को गिरफ्तार करना हो। जोर देकर कहा गया है कि अभी तक तो एक तानाहशाह का शासन चल रहा था, अब फिर लोकतंत्र की बहाली होनी चाहिए।

वैसे बांग्लादेश की सेना इस बार भी विवादों में है, ऐसा माना जा रहा है कि हसीना को हटाने में उनकी भूमिका भी रही है। इस बारे में मोईन भी कहते हैं कि बांग्लादेश में सेना ने एक सक्रिय भूमिका हर बार निभाई है। मैं तो मानता हूं कि यह अंतरिम सरकार भी सेना की मदद से ही बनी है। विरोध कर रहे छात्रों ने जो अपना संगठन बनाया था, उसका भी अहम रोल दिख रहा है।

जमात ए इस्लामी से रिश्तों पर BNP

इंटरव्यू के दौरान जमात ए इस्लामी को लेकर भी कुछ सवाल हुए थे। असल में इस बार के विरोध प्रदर्शन को लेकर ऐसी खबरें आईं कि हिंसा करवाने में जमात ए इस्लामी का हाथ भी रहा। लेकिन बीएनपी नेता तो मानते हैं कि बांग्लादेश में जमात कोई बड़ी ताकत नहीं है, उसकी इतनी क्षमता नहीं कि वो किसी को डरा सके, धमका सके। भारत जरूर ऐसी धारण रख सकता है, लेकिन यह भी सच है कि जो बाहरी लोग होते हैं, वो चीजों को जरूरत से ज्यादा ही जज कर लेते हैं।

Shubhajit Roy की रिपोर्ट