Saint Martin Island: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी सरकार के पतन के बाद पहली बार प्रतिक्रिया दी है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने देश में अशांति फैलाने और उनकी सरकार को गिराने के लिए अमेरिका को कठघरे में खड़ा किया है। हसीना ने आरोप लगाया कि अमेरिका को सेंट मार्टिन द्वीप नहीं दिया। इसी वजह से उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। शेख हसीना के बयानों की वजह से एक बार फिर से सेंट मार्टिन द्वीप चर्चा का विषय बन गया है। अब सवाल यह है कि सेंट मार्टिन द्वीप आखिर क्या है और अमेरिका शेख हसीना से इसकी मांग क्यों कर रहा था।
सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी हिस्से में एक छोटा सा आइलैंड है। हजारों सालों पहले यह द्वीप टेकनाफ प्रायद्वीप का ही हिस्सा होता था। टेकनाफ प्रायद्वीप का हिस्सा बाद के टाइम में डूब गया था और इसके बाद उसका दक्षिणी भाग बांग्लादेश की जमीन से कट गया और फिर एक नया द्वीप बन गया। वहीं अब इसे बसाने की बात करें तो सबसे पहले इसे अरब के व्यापारियों ने 18वीं सदी में बसाया था। सबसे पहले इस आइलैंड को नाम जजीरा दिया गया था। जब ब्रिटिश का राज हुआ तो इस द्वीप का नाम बाद में जजीरा से बदलकर चटगांव के डिप्टी कमिश्नर सेंट मार्टिन के नाम पर रख दिया गया।
सेंट मार्टिन द्वीप कितना जरूरी?
अब सेंट मार्टिन की जरूरत की बात करें तो इस द्वीप की खासियत ही यह है कि इस पर दुनिया में कही से भी समुद्र के रास्ते आसानी से पहुंचा जा सकता है। सेंट मार्टिन से बंगाल की खाड़ी और आसपास के पूरे समुद्री इलाके पर पैनी नजर रखी जा सकती है। यह दूसरे देशों के साथ व्यापार करने में एक सेतु का काम करता है। अगर कभी भी देश में युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाएं तो इस क्षेत्र से संपर्क साधना काफी आसान हो जाएगा। यही वजह है कि शक्तिशाली देश इसकी तरफ नजर गड़ाए हुए हैं। इस द्वीप का भारत के लिए भी काफी महत्व है। अमेरिका इसमें अपनी ज्यादा दिलचस्पी इस वजह से भी दिखा रहा है क्योंकि वह यहां से पूरे क्षेत्र को कंट्रोल कर सकता है। इतना ही नहीं वह भारत और चीन पर नजर भी बना सकता है।
काफी समय से सियासी मुद्दा रहा
सेंट मार्टिन का मुद्दा कोई आज या कल का नहीं है। यह विवाद सबसे पहले 1960 के दशक में सामने आया था। उस समय के पूर्वी पाकिस्तान छात्र लीग के स्टूडेंट्स और कुछ वामपंथियों ने आरोप लगाया था कि जनरल अयूब खान ने भारत को चुनौती देने के लिए मिलिट्री बेस बनाने के लिए द्वीप को अमेरिका को पट्टे पर दे दिया है। हालांकि, साल 1971 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ और उस समय यह विवाद खत्म हो गया। हालांकि, बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई। बांग्लादेश बनने के बाद विवाद और भी ज्यादा गहराता चला गया। यह जिया उर रहमान और मोहम्मद इरशाद के टाइम भी सामने आया।
शेख हसीना की सरकार के दौरान भी उठा मुद्दा
इस द्वीप का मामला शेख हसीना की सरकार के दौरान भी उठा था। साल 2023 में पूर्व पीएम शेख हसीना ने कहा था कि बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी देश को बेचकर या सेंट मार्टिन को बेचकर सत्ता पर काबिज होना चाहती है। जब इस मामले पर विवाद थोड़ा गहराता चला गया तो अमेरिका की तरफ से इस मामले पर सफाई भी दी गई। अमेरिकी विभाग के प्रवक्ता ने उस समय कहा था कि वॉशिंगटन ने सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने के बारे में किसी भी तरह का जिक्र नहीं किया।
अमेरिका की तरफ से क्यों उठ रही थी इस द्वीप की मांग
अब सभी के सामने एक सवाल यह खड़ा है कि अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप की मांग शेख हसीना से क्यों कर रहा था। इसका जवाब देते हुए शेख हसीना ने क्लियर किया कि अमेरिका को इस द्वीप के मिलने के बाद बंगाल की खाड़ी में उसका प्रभुत्व काफी बढ़ जाता। इस द्वीप को कब्जाने के बाद अमेरिका यहां पर अपना मिलिट्री बेस को बनाकर तैयार करता। इससे उसे अमेरिका के खिलाफ रणनीति तैयार करने में काफी मदद मिलती। इतना ही नहीं वह भारत पर भी अपनी नजर बनाकर रख सकता था। संबंधित खबर के लिए यहां क्लिक करें…