बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय एक नई तरह की मुश्किल का सामना कर रहा है। पहले जहां सीधे हमले या हिंसा देखने को मिलती थी, वहीं अब उनके साथ भेदभाव और धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया है। कट्टरपंथी संगठन उन्हें सामाजिक बहिष्कार, बदनामी और अन्यायपूर्ण रवैये के जरिए निशाना बना रहे हैं। धार्मिक भेदभाव की इस नई लहर ने देश के हिंदू समुदाय में डर और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है।
हिंदुओं के खिलाफ कथित तौर पर फैलाया जा रहा अफवाह
दूसरी तरफ कट्टरपंथी संगठनों ने हाल ही में हिंदुओं को बदनाम करने के लिए कथित तौर पर नया अभियान शुरू कर दिया। इस अभियान का नाम – ‘लव ट्रैप’ है। इस अभियान में वे झूठा आरोप लगाते हुए अफवाह फैला रहे हैं कि हिंदू पुरुष मुस्लिम महिलाओं को लुभाकर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। बांग्लादेश के कई इलाकों में इस मुद्दे पर पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें मुस्लिम महिलाओं से सावधानी बरतने की अपील की गई है। इस तरह का अभियान धार्मिक तनाव को और बढ़ावा दे रहा है और हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा है।
शेख हसीना की सरकार गिरने और मशहूर अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के बांग्लादेश में सत्ता संभालने के बाद हिंसक घटनाओं में काफी अल्पसंख्यकों को उसका शिकार बनना पड़ा था। पिछले कुछ दिनों से अल्पसंख्यकों पर सीधे हमले के बजाए उन्हें नए तरीके से परेशान करने का सिलसिला शुरू हो गया है। ऐसा लगता है कि इस सरकार के कार्यकाल में कट्टरपंथी संगठनों की ताकत और बढ़ गई है। इन संगठनों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने का एक नया अभियान छेड़ दिया है, जिसमें हिंदू समुदाय सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। कट्टरपंथी ताकतों का यह प्रभाव इस कदर बढ़ गया है कि हिंदू समुदाय के लोगों को न केवल धमकियां दी जा रही हैं, बल्कि उन्हें रोजगार से भी बाहर किया जा रहा है।
विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों से लिया जा रहा इस्तीफा
इंडिया टूडे की खबर के मुताबिक सरकारी नौकरियों में हिंदू कर्मचारियों के खिलाफ बर्खास्तगी और जबरन इस्तीफा देने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में हिंदू प्रोफेसरों और शिक्षकों को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। चटगांव विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर रोंटू दास के साथ हाल ही में एक ऐसी घटना घटी। उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गईं, जिससे उन्हें अंततः नौकरी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि किस तरह उन पर भेदभाव के कारण इस्तीफे का दबाव बनाया गया। यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे न सिर्फ समाज में हलचल मची, बल्कि हिंदू समुदाय के प्रति बढ़ते भेदभाव पर चर्चा भी शुरू हो गई।
भेदभाव का यह सिलसिला केवल शिक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि पुलिस बल में भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है। हाल ही में शारदा पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण पूरा करने वाले 252 पुलिस सब इंस्पेक्टरों को अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया। इनमें से 91 सब इंस्पेक्टर हिंदू समुदाय से थे, जिनकी नियुक्ति पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में हुई थी। इस बर्खास्तगी ने हिंदू समुदाय में असुरक्षा और चिंता की भावना को और बढ़ा दिया है।
इसके अलावा शारदा पुलिस अकादमी में 20 अक्टूबर को 60 से अधिक एएसपी रैंक के अधिकारियों की पास-आउट परेड को रद्द कर दिया गया। इसका मतलब है कि इन अधिकारियों की सरकारी भूमिकाओं में नियुक्ति को और टाल दिया गया। इस प्रकार, सरकार में बदलाव के साथ ही कई हिंदू कर्मियों और अधिकारियों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं, जिन्हें नई सरकार के चलते अब नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
असित नाम के एक हिंदू प्रशिक्षु युवक ने अपनी पीड़ा और दर्द को बयां करते हुए कहा, “नाव किनारे पर डूब गई, भगवान! बांग्लादेश में मेरे साथ बिना किसी भेदभाव के भेदभाव किया गया है। मैं केवल इतना कह सकता हूं कि भगवान न्याय करेंगे और इतिहास समय का न्याय करेगा। इतिहास ने कभी किसी को माफ नहीं किया है।”
असित की यह टिप्पणी बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति को साफ बयान करती है, जो अब सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक दबाव का सामना कर रहा है। दुर्गा पूजा के दौरान भी हिंदू मंदिरों और मूर्तियों पर हमले किए गए। मूर्तियों को तोड़ने और मंदिरों को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं सामने आईं, जिसके चलते पुलिस को विभिन्न क्षेत्रों में तैनात करना पड़ा। हालांकि, कट्टरपंथी संगठन इन पुलिस बलों से भी बेपरवाह होकर अपने अभियान में लगे हुए हैं। हिंदू समुदाय का मानना है कि सरकार की ओर से इन्हें समर्थन प्राप्त है, जिससे उनकी गतिविधियां और अधिक खतरनाक होती जा रही हैं।
बांग्लादेश के हिंदू समुदाय का यह कहना है कि नए राजनीतिक हालात के चलते उनकी जिंदगी पहले से कहीं अधिक कठिन हो गई है। वे अपने रोज़गार और अवसरों को खोने का डर महसूस कर रहे हैं, जबकि कट्टरपंथी संगठन यह आरोप लगा रहे हैं कि पिछले शेख हसीना के कार्यकाल में हिंदू समुदाय को विशेष लाभ दिए गए थे। अब, अंतरिम सरकार में सत्ता का संतुलन बदलने के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से हिंदुओं, पर दबाव और भेदभाव का असर साफ देखा जा रहा है।