बांग्लादेश में सरकार गिरने के बाद डॉ. यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार का गठन हो गया है। लेकिन देश में नई सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह सरकार ऐसे समय में कार्यभार संभाल रही है जब देश में कानून व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है। बांग्लादेश में अशांति का माहौल है। देश के आर्थिक हालात भी तनाव के दौर में है। इसके साथ ही राज्य में सुधार की भी बड़ी जरूरत है। बांग्लादेश में नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं, इसे लेकर कई तरह की चर्चा चल रही है। आइए जानते हैं कि नई सरकार के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं।
कानून और व्यवस्था को ठीक करना
शेख हसीना सरकार गिरने के बाद ढाका के लगभग सभी पुलिसकर्मी गैरमौजूद हैं। वहीं देश के कई इलाकों में पुलिस थानों पर हमले किए गए हैं। लोगों ने मुख्य रूप से कानून और व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों पर लोगों के ऊपर गोलीबारी करने, गिरफ्तारी और यातना देने का आरोप लगाया है। इसी के खिलाफ लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर अपना गुस्सा जाहिर किया है।
बांग्लादेश में एक बार फिर से थाने पर आक्रोशित भीड़ के हमले और इन हमलों में पुलिसकर्मियों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। कुल मिलाकर देश में कानून और व्यवस्था लागू कराने वाली एजेंसियों और आम जनता के बीच भरोसे का संकट साफ तौर पर दिख रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार नदीम कादिर का मानना है कि नई सरकार की सबसे बड़ी चुनौती मौजूदा हालात में कानून-व्यवस्था की स्थिति को सामान्य करना होगा। उन्होंने कहा, यहां अब कानून लागू करने वाली एजेंसियां और लोग; कोई किसी पर भरोसा नहीं कर सकता। दोनों ही खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इनमें जल्द भरोसा बनाना होगा। उनके मुताबिक देश में कानून लागू करने वाली एजेंसियों में भ्रष्टाचार, लोगों को तकलीफ देने का सिलसिला और सेवा भाव की कमी का इतिहास बदला जाना चाहिए। यदि कहीं कोई अनियमितता है और उसे दूर कर लिया जाए तो लोगों का भरोसा लौट आएगा। इसके लिए सबसे पहले सरकार की मानसिकता को बदलना जरूरी है।
सुधार की जरूरत
बांग्लादेश में लोगों ने भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग सहित कई जगहों पर सुधार की जरूरत महसूस की है। कई लोग देश में राजनीतिक सरकार के गठन से पहले इनमें सुधार की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य व्यवस्था में सभी संस्थानों को अब थोड़ा बहुत सुधारना होगा। उनका कहना है, यहां भ्रष्टाचार हमारी बड़ी समस्या है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बने आयोग का क्या होगा, न्यायपालिका में क्या सुधार होगा, रैपिड एक्शन बटालियन को उतारा जाएगा या नहीं, कई बातें स्पष्ट करने की जरूरत है। दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक जुबैदा नसरीन का मानना है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं में सुधार किया जाना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। तब यह राज्य को सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार जैसी चीजों से दूर रखेगा।
अर्थव्यवस्था में जल्द नतीजे जरूरी
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में आर्थिक संकट की वजह से सार्वजनिक जीवन में असंतोष धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा था। छात्र आंदोलन में हर तरह के लोगों की भागीदारी के पीछे यह एक बड़ी वजह बनकर उभरी है। देश की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे खराब हो रही है, वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, मुद्रास्फीति असहनीय हालात की तरफ जा रही है।
पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक अहसान एच मंसूर का मानना है कि अगर नई सरकार को जनता का भरोसा बरकरार रखना है, तो उसे शुरू में मुद्रास्फीति और जरूरी वस्तुओं की कीमतों को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, दो से तीन महीने के भीतर अर्थव्यवस्था के कुछ पहलुओं में स्थिरता लानी चाहिए. चार-पांच महीने में महंगाई कम हो जानी चाहिए।
नई सरकार का कार्यकाल कितना
बांग्लादेश में छात्र और नागरिक समाज जिस सुधार की मांग कर रहे हैं उसके लिए पर्याप्त समय की जरूरत है, लेकिन राजनीतिक दल देश में जल्द चुनाव की मांग कर रहे हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने तो तीन महीने के भीतर चुनाव कराने की मांग की है। ऐसी चर्चा है कि अंतरिम सरकार के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए तीन महीने का समय पर्याप्त नहीं हैं। अहसान एच मंसूर का कहना है कि कोई भी सरकार थोड़े समय में जरूरी सुधार नहीं कर पाएगी और यदि सुधार नहीं होगा तो राज्य व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। उनका कहना है, अगर सरकार तीन महीने या छह महीने के लिए रहे तो सुधार का कोई मतलब नहीं है।