Syed Munir Khasru
बांग्लादेश में आम चुनाव होने वाले हैं। उसकी आज़ादी के 52 साल बाद बांग्लादेश आर्थिक और भूराजनीतिक रूप से एक निर्णायक मोड़ पर है। इसके बढ़ते आर्थिक महत्व ($400 बिलियन की अर्थव्यवस्था जो 2022 में 7.1% की दर से बढ़ी) ने प्रमुख शक्तियों के हित को आकर्षित किया है जो देश की वृद्धि और स्थिरता और इसके साथ साझेदारी को दक्षिण एशिया के रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
7 जनवरी को होने वाले बांग्लादेश के चुनाव भारत और चीन के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं। भारत की बफर स्टेट प्राथमिकताओं से लेकर चीन की बेल्ट एंड रोड विज़न तक, संयुक्त राज्य अमेरिका के रणनीतिक हितों से लेकर रूसी बुनियादी ढांचे के हितों तक, कई मायनों में ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना अगर जीतती हैं तो वह चौथी बार देश की कमान संभालेंगी। इससे पहले 2014 और 2018 के आम चुनाव अनियमितताओं के आरोपों से घिरे थे।
भारत और चीन के साथ बांग्लादेश के संबंध
भारत और चीन दोनों के लिए चुनाव महत्वपूर्ण है। न केवल बांग्लादेश के साथ दोनों देशों के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों के कारण, बल्कि क्षेत्र में उनकी व्यापक प्रतिद्वंद्विता के मद्देनजर भी। बांग्लादेश दो एशियाई देशों से साझेदारी की अपेक्षाओं को कैसे मैनेज करता है, यह महत्वपूर्ण है, और इस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर रखी जाएगी।
1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भारत ने उसे समर्थन दिया था तो चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। लेकिन अब भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ बांग्लादेश के संबंध अच्छे हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 15 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया। भारत बांग्लादेश को एक महत्वपूर्ण पूर्वी बफर के रूप में मान्यता देता है, और राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक बंदरगाहों और पावर ग्रिड को लेकर महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।
दूसरी ओर चीन के साथ बांग्लादेश का दोतरफा व्यापार 2022 में 25 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया। बांग्लादेश रणनीतिक रूप से चीन के साथ जुड़ गया है, जो मेगा परियोजनाओं के माध्यम से अपने परिदृश्य को बदलने में मदद कर रहा है। बीआरआई-वित्तपोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीनी निवेश 10 अरब डॉलर से अधिक हो गया है।
बांग्लादेश सरकार का अपनाया गया दृष्टिकोण
बांग्लादेश भारत के साथ सामाजिक-आर्थिक, व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों का लाभ उठाता है, लेकिन चीन के साथ इसके महत्वपूर्ण सैन्य संबंध हैं। बांग्लादेश चीनी हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। भारत ने भी रक्षा आयात के लिए बांग्लादेश को 500 मिलियन डॉलर का लोन दिया है। चीन और भारत ने बांग्लादेश में पर्याप्त निवेश किया है, जो क्षेत्रीय गतिशीलता में देश की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री शेख हसीना का कई साझेदारियों को संभालने में निपुणता रही है। उनका रणनीतिक स्वायत्तता सिद्धांत छोटे पड़ोसियों को प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों के साथ सहयोग के माध्यम से सशक्तिकरण के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रदान करता है। रोहिंग्या शरणार्थी संकट जैसे वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण ने भी बांग्लादेश को भारत और चीन के साथ खड़ा कर दिया है।
भू-राजनीति और अर्थशास्त्र का
2041 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने के प्रयास में बांग्लादेश ने उभरती आर्थिक शक्ति के बीच संबंधों को संतुलित करते हुए भारत और चीन दोनों की आर्थिक और तकनीकी शक्तियों का रणनीतिक रूप से उपयोग किया है। इसने बीआरआई और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार कॉरिडोर (BCIM) के बैनर तले मोंगला बंदरगाह में आधुनिकीकरण को बढ़ावा देते हुए दोनों देशों को बंदरगाह तक पहुंच प्रदान की है। पायरा बंदरगाह के लिए इसी तरह की सहकारी वृद्धि की गई थी, लेकिन एक चीनी कंपनी को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप दिए जाने के कारण भारत पीछे हट गया।
बांग्लादेश भारतीय बिजली का आयात करता है जो वर्तमान में 1,160 मेगावाट है। बिजली की बढ़ती मांग ने आपूर्ति के विस्तार की आवश्यकता पैदा कर दी है।
7 जनवरी का चुनाव भारत और चीन के लिए क्यों मायने रखता है?
मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनावों का बहिष्कार किया है। उसकी एक मांग को अवामी लीग (AL) ने खारिज कर दिया है। बीएनपी सत्तारूढ़ दल के लिए भारतीय समर्थन को लेकर आशंकित है। दूसरी ओर अवामी लीग बीएनपी को भारत विरोधी के रूप में चित्रित करता है। बांग्लादेश की स्थिरता में गहराई से किए गए निवेश के कारण भारत और चीन दोनों ही चुनाव के बाद राजनीतिक और आर्थिक जोखिमों से सावधान हैं। चीन की 38 अरब डॉलर का बीआरआई निवेश अवामी लीग शासन की निरंतरता पर निर्भर करता है। अगर प्रधानमंत्री शेख हसीना हारती हैं तो भारत को वैकल्पिक रणनीतियां तलाशनी होंगी।