भारत में मुस्लिमों की कैसी हालत है, भारत में मुस्लिमों के पास क्या अधिकार हैं, इस बार में जितना खुद भारत नहीं सोच पाता है, उससे ज्यादा दूसरे मुल्क इसकी चिंता करते हैं। कई मौकों पर तो सर्टिफिकेट बांटने का काम भी होता है। जिस तरह से मानवाधिकारों को लेकर अमेरिका हर साल भारत को सलाह देने का काम करता है, अब ईरान भी उस दिशा में आगे बढ़ चुका है। उसने कह दिया है कि अगर भारत के मुसलमानों को लेकर दूसरे मुसलमान चिंता नहीं करेंगे तो वे सच्चे मुस्लिम नहीं होंगे।

ईरान के सुप्रीम लीडर ने भारत पर क्या बोला?

असल में ईरान के सुप्रीम लीडर आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट वायरल है। उस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि हम खुद को असली मुस्लिम नहीं मान सकते अगर हम उन मुस्लिमों के दर्द को नहीं समझ सकते जो म्यांमार, गाजा, भारत या फिर किसी दूसरी जगह पर रह रहे हैं। अब क्योंकि खामेनेई ने भारत का नाम प्रमुखता से लिया, उन्हें जवाब भी उतना ही मुंहतोड़ मिला। विदेश मंत्रालय की तरफ से इस बयान पर आपत्ति तो जताई ही गई, आईना दिखाने का काम भी हुआ। दो टूक कहा गया कि अल्पसंख्यकों पर बयानबाजी करने वाले देशों को अपना खुद का रिकॉर्ड भी देखना चाहिए।

अब भारत का यह बयान ही बताने के लिए काफी है कि दूसरे देशों में मुस्लिमों के जैसे हालात हैं, उसे देखते हुए हिंदुस्तान में तो इस समुदाय को ज्यादा अधिकार भी हैं, आजादी भी है और सुरक्षा तो मिल ही रही है। अब इस पूरे मामले को तथ्य के साथ समझना जरूरी हो जाता है। तथ्य वो हैं जिन्हें आंकड़ों के जरिए साबित किया जा सके। ऐसे में सबसे पहले यह जानते हैं कि आखिर मुस्लिमों के खिलाफ सबसे ज्यादा हेट क्राइम के मामले में किस देश में देखने को मिलते हैं? यहां यह जरूर समझ लीजिए कि भारत इस लिस्ट में काफी नीचे आता है।

‘हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते’, ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई का भारतीय मुस्लिमों को लेकर बयान

मुस्लिमों के खिलाफ कहां सबसे ज्यादा हेट क्राइम

दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका इतने सालों बाद भी मुस्लिमों को वो सुरक्षा नहीं दे पाया है जिसकी उम्मीद यह समुदाय लगाए बैठा है। जानकार मानते हैं कि 9/11 अटैक के बाद से ही अमेरिका में ‘इस्लामोफोबिया’ काफी ज्यादा बढ़ चुका है, आलम यह है कि मुस्लिमों के साथ तरह-तरह का भेदभाव होता है। Council of American-Islamic Relations की पिछले साल की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत और हेट क्राइम में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली है। यहां भी हमास और इजरायल के युद्ध के बाद से तो मुस्लिमों को और ज्यादा निशाने पर लिया गया है।

अमेरिका का हाल कर देगा हैरान

आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में CAIR को पिछले साल कुल 8061 शिकायतें मिली थीं। सबसे ज्यादा शिकायतें तो इमिग्रेशन और असायलम को लेकर रहीं, इसके बाद रोजगार में हो रहे भेदभाव को लेकर भी शिकायत की गई। दावा तो यहां तक हुआ कि शिक्षा संस्थानों में भी मुस्लिमों को समान अधिकार नहीं मिल पा रहे। 7.5 प्रतिशत कंप्लेन ऐसी रहीं जहां दावा हुआ कि मुस्लिमों को हेट क्राइम का शिकार बनाया गया। अब यह सबकुछ भारत में नहीं अमेरिका में हुआ है, वहां पर लगातार इस समुदाय की तरफ से शिकायत की गई हैं।

अब अमेरिका में CAIR एक काफी पुरानी संस्थान है जो लंबे समय से मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों का रिकॉर्ड रख रही है। अगर उसकी तमाम रिपोर्टों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि सबसे ज्यादा मुस्लिमों के साथ भेदभाव, उनके खिलाफ हेट क्राइम बाइडेन प्रशासन के दौरान हुआ है। असल में बिल क्लिंटन के समय में सिर्फ 80 ऐसे मामले सामने आए थे, ज्वार्ज बुश के कार्यकाल में 2753 ऐसी शिकायतें देखने को मिलीं, ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए 5650 मामले सामने आए, ट्रंप प्रशासन के वक्त 6720 शिकायतें मुस्लिमों के द्वारा की गईं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि बाइडेन प्रशासन में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा दर्ज किया गया है, वर्तमान में मुस्लिम समाज ने CAISR को 8061 शिकायतें कर डाली हैं। यह बताने के लिए काफी है कि अमेरिका में हालात चिंताजनक हैं, यहां पर मुस्लिमों को सुरक्षित माहौल नहीं मिल पा रहा है।

विकसित ब्रिटेन भी मुस्लिमों के लिए सुरक्षित नहीं

अब अमेरिका के बाद ब्रिटेन की बात भी करनी चाहिए क्योंकि यह देश भी खुद को विकसित देश के रूप में देखता है। यहां भी वर्ल्ड क्लास सुविधाएं हैं, लेकिन मुस्लिमों को सुरक्षा देने के मामले में यह भी पिछड़ चुका है। यहां भी मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम के रिकॉर्ड मामले सामने आए हैं। तमाम रिपोर्ट इस बात की पुष्टि कर रही हैं कि ब्रिटेन भी इस समाज के लिए इतना सुरक्षित नहीं। आंकड़ा ज्यादा पुराना नहीं है, 2021 तक इंग्लैंड और वेल्स में सबसे ज्यादा हेट क्राइम मुस्लिमों के खिलाफ सामने आए हैं। दूसरे नंबर पर यहूदी समाज के लोग आते हैं जिन्हें यहां पर नफरत, हिंसा का सामना करना पड़ा है।

ब्रिटेन के ही गृह मंत्रालय ने बताया था कि मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच में हेट क्राइम 9 फीसदी तक बढ़ गए थे और कुल शिकायतें 124,091 दर्ज की गईं। यहां भी अगर सिर्फ मुस्लिमों की बात करें तो 45 फीसदी हेट क्राइम वाली शिकायतें तो उनकी तरफ से ही आई थीं। यानी कि 6,377 मामले सिर्फ इस समुदाय ने रिकॉर्ड करवाए थे। इसी तरह अगर 2022 से 2023 के रिकॉर्ड को खंगाला जाए तो आंकड़ा और डराने वाला सामने आआ है, अकेले मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम के 3400 मामले सामने आ चुके हैं।

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ईरान में मुस्लिम महिलाओं की हालत खराब

अब हैरानी की बात यह है कि ईरान के सुप्रीम लीडर को भारत दिखाई देता है, लेकिन वे अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ बोलने की जहमत नहीं दिखा पाते। ईरान का तो आईना दिखाना इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि एक इस्लामिक देश होने के बावजूद भी वहां मुस्लिमों की हालत काफी पतली है, इसके ऊपर महिलाओं को तो जिस तरह से नियमों की बंदिशों में बांधकर रखा जाता है, उससे पता चलता है कि भारत कितना खुले विचारों वाला है, वहां पर किस तरह से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को समान अधिकार दिए गए हैं। ईरान में आज भी मुस्लिम महिलाओं को अगर घर से बाहर निकलना है तो उन्हें हिजाब पहनना ही पड़ेगा। भारत में भी मुस्लिम महिलाएं कई मौकों पर हिजाब पहनती हैं, लेकिन उन पर कोई बाध्यता नहीं है। ईरान में ऐसे कानून चल रहे हैं जिस वजह से हर मोर्चे पर मुस्लिम महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।

ईरान में हर मोर्चे में मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव

उदाहरण के लिए ईरान में अगर किसी मुस्लिम महिला को नौकरी करनी है, तो उन्हें अपने पति से इजाजत लेना जरूरी है। जब तक पति हां नहीं बोल देता, पत्नी वहां काम ही नहीं कर सकती। अब ईरान इसे भेदभाव मानता है या अपने धर्म का हिस्सा, इसका फैसला उसे खुद करना है। वैसे ईरान में तो मुस्लिम महिलाएं आसानी से अपनी पति से डिवोर्स भी नहीं ले सकती हैं। उन्हें अगर अपने पति से अलग होना भी है तो उन्हें कोर्ट जाना पड़ेगा, अगर वहां से आदेश आया तब जाकर प्रक्रिया पूरी होगी। वही पति तो सिर्फ मुंह से बोलकर ही अपनी पति से अलग हो सकता है। दूसरी तरफ भारत में तो ट्रिपल तलाक की प्रथा पर ही रोक लगा दी गई है, यहां पर पति-पत्नी के लिए डिवोर्स के भी समान अधिकार चल रहे हैं।

हैरानी की बात यह है कि ईरान में आज भी मुस्लिम पति तो चार शादियां कर सकता है, लेकिन पत्नी को सिर्फ एक निकाह करने की मंजूरी रहती है। वहां भी जब तक महिला को अपने पिता की इजाजत नहीं मिल जाती, वो लड़क से शादी नहीं कर सकती। ईरान में एक मुस्लिम पति किसी दूसरे धर्म की लड़की से भी निकाह कर सकता है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ अपने धर्म में ही शादी करने की इजाजत रहती है।

इसके ऊपर ईरान में मुस्लिम महिलाओं के साथ टॉर्चर होता है, उसका जिक्र कहीं नहीं हो रहा। अगर महिला ने ईरान में हिजाब नहीं पहना है, तो उस पर जुर्माना तो लगेगा ही, 74 बार कोड़े मारने का भी प्रावधान है। अब यह सब कुछ भारत में अगर होने लगे तो तुरंत केस भी होगा और सख्त सजा भी मिलेगी।

जितनी ईरान की आबादी, उससे ज्यादा मुसलमान भारत में

अब यह सब बताने के लिए काफी है कि ईरान खुद अपने मुस्लिम लोगों का ठीक से ध्यान नहीं रख पा रहा है, वहां की महिलाओं को ना के समान अधिकार दिए जा रहे हैं। लेकिन क्योंकि किसी पर तो अंगुली उठानी है तो भारत को टारगेट करने की कोशिश हो रही है। वैसे एक आंकड़ा तो यह भी बताता है कि जितने ईरान की इस समय जनसंख्या है, उससे ज्यादा मुस्लिम भारत में रहते हैं। दुनिया की जितनी मुस्लिम आबादी है, उसकी 11 फीसदी अकेले भारत में रहती है। इसके ऊपर भारत में तो मुस्लिमों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वही पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में जो अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं, उनकी आबादी बस घटती जा रही है। ऐसे में भारत में तो तमाम विवादों के बावजूद भी मुस्लिम समाज आराम से रह रहा है, लेकिन खुद को मुस्लिम देश बताने वाले मुल्क ही अपने समाज को असल न्याय नहीं दे पा रहे।