अमेरिका ने यूक्रेन को क्लस्टर बम देने की घोषणा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को क्लस्टर बम देने का बचाव किया है और इसे कठिन फैसला बताया है। लेकिन नाटो के ही कई देश और कई यूरोपीय सहयोगी देश विरोध में हैं। बमों के इस्तेमाल में आम नागरिकों की मौत का इतिहास रहा है। नाटो में शामिल देशों में भी दो-तिहाई से ज्यादा ने क्लस्टर बमों पर प्रतिबंध लगा रखा है।
लिथुआनिया में नाटो की अहम बैठक से ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने फैसले पर मुहर लगाई है। उनके यूरोपीय सहयोगी देशों ने पूछना शुरू कर दिया है कि आखिर जिस विवादित हथियार को 100 से ज्यादा देशों ने खारिज किया है, उसे यूक्रेन को देने का फैसला क्यों किया गया।
यूक्रेन इन बमों की मांग काफी दिनों से कर रहा था और उसने वचन दिया है कि इनका इस्तेमाल रूसी जमीन पर नहीं होगा। वह सिर्फ अपने इलाकों में घुस आए रूसी लोगों को वहां से हटाने के लिए ही इनका इस्तेमाल करेगा। शहरी इलाकों में इन बमों का इस्तेमाल नहीं करने का यूक्रेन ने अमेरिका को लिखित रूप से भरोसा दिया है।
जो बाइडेन ने अमेरिकी समाचार चैनल सीएनएन से अपने फैसले को लेकर कहा, ‘ऐसा करने के लिए खुद को तैयार करने में मुझे थोड़ा वक्त लगा।’ बाइडेन का कहना है कि पर रक्षा विभाग की सलाह और सहयोगियों से संसद में चर्चा करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे। बाइडेन ने कहा, ‘यूक्रेनी लोगों के पास गोला-बारूद खत्म हो रहा है और क्लस्टर बम आगे बढ़ते रूसी टैंकों को अस्थायी रूप से रोकने में मददगार होगा।’
अमेरिका में इस मुद्दे पर कई महीने से बहस जारी है। बाइडेन के फैसले को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सांसदों ने इसका विरोध किया है। दूसरी तरफ विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के कुछ सांसद इसका समर्थन कर रहे हैं। क्लस्टर बम अमेरिका की तरफ से यूक्रेन को मिलने वाले 80 करोड़ डालर के नए सैन्य सहायता पैकेज का हिस्सा हैं।
इस पैकेज में बख्तरबंद गाड़ियां, कई तरह के गोला-बारूद- जैसे होवित्जर के गोले और राकेट प्रणाली शामिल हैं। जाहिर है, रूस को इस फैसले पर आपत्ति होगी। रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इस फैसले पर सख्त नाराजगी जताई है। हालांकि, रूस खुद इन बमों का इस युद्ध में बार-बार इस्तेमाल करता आया है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया साखारोवा का कहना है कि अमेरिका का मकसद यूक्रेन में संघर्ष को ज्यादा से ज्यादा लंबा खींचना है।
यूरोपीय देशों में स्पेन ने भी बम देने के फैसले की आलोचना की है। वह क्लस्टर बमों के खिलाफ संरा घोषणा में शामिल है। स्पेन की रक्षा मंत्री मार्गरीटा रोबल्स ने मैड्रिड में कहा, स्पेन की यूक्रेन के साथ पूरी प्रतिबद्धता है, लेकिन साथ ही इस बात के प्रति भी कि कुछ हथियार और बम किसी भी हाल में नहीं दिए जाने चाहिए। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का कहना है कि वह उस समझौते में शामिल है, जो क्लस्टर बमों के उपयोग को हतोत्साहित करता है।
जर्मनी में भी क्लस्टर बमों पर प्रतिबंध है। जर्मनी का कहना है कि वह यूक्रेन को ऐसे बम नहीं देगा, लेकिन वह अमेरिका की स्थिति को समझता है। जर्मन सरकार के प्रवक्ता ने कहा है, हम इस बात के लिए निश्चिंत हैं कि अमेरिकी दोस्तों ने इस तरह के गोला-बारूद देने का फैसला हल्के में नहीं लिया होगा। हमें यह याद रखना होगा कि रूस पहले ही बड़े पैमाने पर क्लस्टर बमों का इस्तेमाल कर चुका है।
क्या है ‘क्लस्टर बम’
क्लस्टर बम ऐसे बम होते हैं, जिन्हें दागे जाने पर इनके अंदर से कई सारे छोटे-छोटे बम निकलते हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवान ने कहा है कि अमेरिका क्लस्टर बमों के ऐसे संस्करण भेजेगा, जिनकी ‘डूड रेट’ बहुत कम होगी। इसका मतलब है कि इसमें ऐसे छोटे-छोटे बम बहुत कम निकलेंगे, जो फटेंगे नहीं। न फटने वाले बम अक्सर युद्ध क्षेत्र में बिखर जाते हैं और ऐसे लोगों की जान के दुश्मन बनते हैं, जो निशाने पर नहीं होते। इन बमों का इस्तेमाल न करने के कन्वेंशन पर 120 देशों ने सहमति जताई है। अमेरिका, रूस और यूक्रेन इन देशों में शामिल नहीं हैं।