दुनिया के कई हिस्सों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। कुछ देश बहुत ज़्यादा प्रदूषण स्तर से जूझ रहे हैं जबकि कुछ देशों में स्वच्छ और ताज़ी हवा अभी भी है। भारत के कई शहर भी दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर की लिस्ट में आते हैं। देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र में हवा का स्तर इतना खराब है कि लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। वहीं, कई ऐसे भी देश हैं जिन्होंने प्रदूषण पर अच्छे तरीके से निजात पाई है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही शहरों के बारे में जिन्होंने वायु प्रदूषण पर तमाम उपायों को लागू कर नियंत्रण किया।

2024-25 की IQAir रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत शीर्ष 5 सबसे प्रदूषित देशों में शामिल हैं। बांग्लादेश दूसरे, पाकिस्तान तीसरे और भारत पाँचवें स्थान पर है। 2025 तक, चाड 91.8 μg/m³ PM2.5 कन्संट्रेशन के साथ दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है, जिसके बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और कांगो का स्थान है। वैश्विक वायु-गुणवत्ता समीक्षा के अनुसार दुनिया के टॉप 5 सबसे प्रदूषित शहर हैं-

1 चाड- 91.8 µg/m³

2 बांग्लादेश- 78.0 µg/m³

3 पाकिस्तान- 73.7 µg/m³

4 कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DR कांगो)- 58.2 µg/m³

5भारत- 50.6 µg/m³

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दुनिया के 5 सबसे कम प्रदूषित देश

देश- अनुमानित औसत PM2.5

1 बहामास- 2.3 µg/m³

2 फ्रेंच पोलिनेशिया

3 बारबाडोस- PM2.5 3–4 µg/m³

4 आइसलैंड

5 न्यूज़ीलैंड

इन देशों ने वायु प्रदूषण पर किया प्रभावी नियंत्रण

कई वर्षों से चीन गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहा है, खासकर बीजिंग जैसे बड़े शहरों में। लगभग 2013-2014 से, चीन ने वायु प्रदूषण के विरुद्ध युद्ध की एक आक्रामक शुरुआत की है। चीन में पुराने, अत्यधिक प्रदूषणकारी कारखानों (कोयला आधारित बिजली, भारी उद्योग, सीमेंट, इस्पात) को बंद किया गया या उनका रेनोवेशन किया गया. साथ ही घरों पर सख्त सीमाएँ लागू की गयीं जैसे, कोयला बॉयलर से प्राकृतिक गैस या बिजली पर स्विच करना और इलेक्ट्रिक वाहनों (विशेषकर सार्वजनिक परिवहन) को बढ़ावा देना।

शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) के शोध के अनुसार, चीन ने 2014 और 2023 के बीच औसत PM2.5 के स्तर में लगभग 41% की कमी की है। प्रदूषण में कमी से सिर्फ़ चीन को ही मदद नहीं मिली बल्कि दक्षिण कोरिया जैसे पड़ोसी देशों में भी सीमा पार वायु प्रदूषण में कमी देखी गई।

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मेक्सिको सिटी कभी दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था, जिसका मुख्य कारण तेज़ जनसंख्या वृद्धि, बड़े पैमाने पर मोटरीकरण, औद्योगीकरण और वायु प्रदूषकों को सोखने वाला इसका भौगोलिक बेसिन था। इसके जवाब में, सरकार ने कई सुधार लागू किए: उन्होंने गैसोलीन से सीसा हटा दिया, वाहनों में उत्प्रेरक कनवर्टर अनिवार्य कर दिए, डीज़ल में सल्फर की मात्रा कम कर दी, औद्योगिक और बिजली उत्पादन को भारी ईंधन तेल से हटाकर स्वच्छ प्राकृतिक गैस की ओर मोड़ दिया, और हीटिंग और खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाली एलपीजी को फिर से तैयार किया।

मेक्सिको ने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को बंद या स्थानांतरित भी किया और पुराने, अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के उपयोग को कम या प्रतिबंधित किया। साथ ही जैसे “नो-ड्राइव डे” जैसे कार-उपयोग प्रतिबंध भी लागू किए गए। लगभग 20 वर्षों में, इन उपायों के परिणामस्वरूप मेक्सिको सिटी में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) में लगभग 86% की कमी, ओज़ोन में लगभग 53% की गिरावट और पार्टिकुलेट मैटर (PM) के स्तर में लगभग 32% की गिरावट आई।

कई यूरोपीय शहर यातायात, औद्योगिक उत्सर्जन और आवासीय हीटिंग के कारण वायु प्रदूषण से जूझ रहे थे लेकिन पिछले एक दशक में पेरिस की वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

इस सुधार के लिए पेरिस ने स्वच्छ वाहनों को अपनाया और पुराने उच्च-उत्सर्जन वाले वाहनों को रेगुलेट किया, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, साइकिलिंग को बढ़ावा देना, पैदल यात्री क्षेत्र बनाना, प्रदूषणकारी वाहनों पर प्रतिबंध लगाना (जैसे कम-उत्सर्जन वाले क्षेत्र), आवासीय हीटिंग का सख्त नियमन (बेहतर इन्सुलेशन, स्वच्छ हीटिंग सिस्टम), और शहरी क्षेत्रों में ग्रीन फील्ड में वृद्धि की गयी। परिणाम: 2010 और 2024 के बीच, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर लगभग 45% कम हुआ और सूक्ष्म कण पदार्थ का स्तर लगभग 35% कम हुआ।

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