15 अगस्त… भारतवासियों के लिए यह तारीख हर साल जश्न का दिन होती है। साल 1947 में इसी दिन देश सैकड़ों साल लंबी गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ था लेकिन भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान के साथ ऐसा नहीं है। अफगानिस्तान के लोग शायद ही अभी तक 15 अगस्त 2021 का वो दिन भूल पाए हों जब तालिबानियों (Taliban) ने काबुल पर कब्जा कर लिया था।

काबुल पर तालिबानियों के कब्जे के साथ ही अफगानिस्तान में लड़कियों की पढ़ाई (Girls Education in Afghanistan) भी रोक दी गई लेकिन भारत अपने स्तर पर लगातार कोशिश कर रहा है कि दिल्ली में रह रहे अफगान शरणार्थियों के बच्चे पढ़-लिखकर अपना भविष्य खुद तय कर सके। भारत की राजधानी दिल्ली के भोगल इलाके में बड़ी संख्या में अफगान परिवार रहते हैं। यहीं सैय्यद जमालुद्दीन अफगान हाई स्कूल भी है। यह भारत में रह रहे अफगान शरणार्थियों के लिए बना एकमात्र संस्थान भी है। यह स्कूल भोगल में मस्जिद वाली गली में एक किराए की इमारत में चल रह है।

भारत सरकार कर रही मदद

काबुल में अब भले ही तालिबान की पताका लहरा रही हो लेकिन इस स्कूल (Afghan School in Delhi) में अभी भी वह तीन रंगों का अफगानी परचम फहरा रहा है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से हुई फंड की कमी की वजह से इस स्कूल को चलाए रखना बहुत मुश्किल हो गया था। कक्षा 12 तक के इस स्कूल में 278 बच्चे पढ़ते हैं। फंड की कमी की जब यह स्कूल बंद होने के कगार पर पहुंच गया, तब भारतीय विदेश मंत्रालय मदद के लिए आगे आया।

हालांकि भारत तालिबान को आधिकारिक रूप से अफगानिस्तान सरकार के रूप में मान्यता नहीं देता लेकिन काबुल में मौजूद भारतीय दूतावास (Indian Embassy in Kabul) के जरिए तालिबान से जुड़ा हुआ है।

स्कूल बोर्ड के सदस्य और अफगानिस्तान दूतावास के प्रथम सचिव सैयद जियाउल्लाह हाशिमी बताते हैं कि 15 अगस्त 2021 को तालिबान शासन शुरू होने के बाद से स्कूल ने बहुत कठिनाइयों का सामना किया। हालात ऐसे आ गए कि हमें अपने स्कूल की बिल्डिंग तक खाली करनी पड़ी। हम अपने शिक्षकों को भी सैलरी नहीं दे पा रहे थे। तब हमें लगा कि अब स्कूल बंद करना पड़ेगा। उस समय हमें भारतीय विदेश मंत्रालय ने मदद की। उनकी मदद से हम अपने बच्चों को शिक्षा दे पा रहे हैं।

कितने रुपये खर्च कर रहा MEA

विदेश मंत्रालय और स्कूल प्रशासन ने हालांकि यह नहीं बताया कि स्कूल को चलाने में हर महीने कितना खर्च हो रहा है, हालांकि सूत्रों ने एक अनुमान के मुताबिक बताया कि इसमें तकरीबन 5.5 लाख रुपये महीने का खर्च आ रहा है। भारत में अफगान शरणार्थियों के बच्चों के लिए इस स्कूल की स्थापना साल 1994 में Women’s Federation of World Peace द्वारा की गई थी। इस स्कूल को साल 2008 में एक प्राइमरी स्कूल और 2017 में एक हाई स्कूल के रूप में डवलप किया गया। तब अफगान सरकार ने इसकी फंडिंग शुरू की थी।