केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) की सुधार समिति का हिस्सा रहे अभिनेता कमल हासन ने कहा कि वह सेंसरशिप के खिलाफ हैं, लेकिन उन्हें प्रमाणन से कोई परहेज भी नहीं हैं, जो एक वैधानिक चेतावनी के समान होना चाहिए । हासन (61) ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में छात्रों के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा कि सेंसर के खिलाफ जंग एक सकारात्मक स्थिति में है। सेंसरशिप प्रक्रिया को जारी रखने की बात पर कायम रहते हुए अभिनेता ने कहा, ‘सबसे पहले मैं यह साफ करना चाहता हूं कि सेंसर के खिलाफ जंग एक सकारात्मक स्थिति में है। इसलिए उसे अब सेंसर बोर्ड नहीं कहना चाहिए। वह एक प्रमाणन बोर्ड है । प्रमाणन एक वैधानिक चेतावनी के समान होना चाहिए।’

अभिनेता की 2013 में आई फिल्म ‘विश्वरूपम’ को शुरू में 15 दिन के लिए तमिलनाडु में प्रतिबंधित कर दिया गया था और कुछ दृश्यों को हटाने के बाद ही इसे दिखाया जा सका था। इसे लेकर अभिनेता पहले सेंसर बोर्ड के दिशानिर्देशों के बारे में आपत्ति भी जता चुके हैं।
बहरहाल, हासन ने कहा कि उन्हें बोर्ड के लोगों से कोई समस्या नहीं है। सरकार को भी फिल्म उद्योग के साथ सम्मान और गरिमा के साथ बर्ताव करना चाहिए। अभिनेता ने बताया कि वह अपने तीन अमेरिकी दोस्तों के साथ एक फिल्म की पटकथा पर काम कर रहे हैं, जो अंग्रेजी में होगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि वह इस फिल्म का निर्देशन करेंगे।

इस बीच, बोस्टन में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में आए बॉलीवुड अभिनेता इमरान ने सेंसर बोर्ड के मुद्दे पर अपना विचार रखते हुए भारतीय छात्रों से कहा कि भारत में आज सेंसरशिप की बहुत दहशत है। इमरान ने कहा, ‘मैंने यह महसूस किया है कि खासकर पिछले कुछ साल में सेंसरशिप की बहुत दहशत रही है क्योंकि थिएटर के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर बहुत प्रतिबंध हैं। क्या दिखाया जाए, किस बारे में बात कर सकते हैं, इस बात का आपको हमेशा डर सताता है।’

अभिनेता (33) ने 2011 की अपनी फिल्म ‘डेल्ही बेली’ के कड़वे अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह एक लड़ाई है जिसे हम हरेक फिल्म के लिए लड़ रहे हैं। जो फिल्म हम करते हैं उसके लिए जबर्दस्त लड़ाई लड़नी पड़ती है… यह प्रतिबंधात्मक है। यह प्रगति के खिलाफ है… और साफ तौर पर कहूं तो यह बदतर होता जा रहा है।’

असहिष्णुता पर विचार जाहिर करने पर समाज के एक तबके द्वारा बॉलीवुड सुपरस्टार ने अपने मामा आमिर खान की आलोचना को लेकर किए गए एक सवाल पर कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग हमेशा से आसान निशाना रहा है। असहिष्णुता को लेकर चल रही बहस से खुद को अलग करते हुए हासन ने कहा है कि वह सहिष्णुता शब्द के खिलाफ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि देश को बंटने से बचाने के लिए सभी समुदायों को एक दूसरे को स्वीकार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश पहले ही अपने दो हाथ – बांग्लादेश और पाकिस्तान- गंवा चुका है और अब सारे प्रयास एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए किए जाने चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘मैं सहिष्णुता शब्द के खिलाफ हूं। बर्दाश्त नहीं करें, एक दोस्त को स्वीकार करें। आप सब कुछ बर्दाश्त क्यों करें? यह एक विचार है कि या तो आप स्वीकार करें या नहीं स्वीकार करें? आखिर आप बर्दाश्त क्यों करें? असहिष्णुता इसलिए है क्योंकि आप इसे सहन कर रहे हैं। सहन नहीं करिए । मुस्लिमों या हिंदुओं को अपने सह नागरिकों की तरह स्वीकार कीजिए। उन्हें सहन नहीं कीजिए। यही सहिष्णुता की समस्या है। उन्हें (मुस्लिमों को) स्वीकार कीजिए क्योंकि आप अपने भारतीय झंडे से हरे रंग को बाहर नहीं निकाल सकते हैं।’

अन्य रंगों के बीच हरे रंग के धागों में बुने बिना बाजू के स्वेटर का जिक्र करते हुए हासन ने कहा, ‘यह (भारत) एक स्वेटर की तरह है जो पहले से ही हरे रंग के धागों (अन्य रंग की ऊन के बीच) से बुना हुआ है। आप इसे (हरे धागे को) हटा नहीं सकते हैं। इसके बाद कोई स्वेटर बचा नहीं है। हम लोग पहले ही इस स्वेटर के बाजू गंवा चुके हैं — बांग्लादेश और पाकिस्तान जा चुके हैं। यह बिना बाजू का एक स्वेटर है, इसलिए इसे बनाए रखिए क्योंकि ठंड लग जाएगी।’