अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद से हालात तेजी से बदल रहे हैं। जो बाइडेन के लिए उनके कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी परेशानी खत्म नहीं हो रही है। 50 से अधिक अमेरिकी सांसदों ने जो बाइडेन को पत्र लिखकर अपील की है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के लिए वह पाकिस्तान की सरकार पर दबाव बनाएं। इमरान खान की रिहाई राजनीतिक कैदियों की तरह समय से पहले की जाए। इस पत्र में पाकिस्तान में हुए चुनाव को लेकर भी कई तरह के आरोप लगाए गए हैं।
इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की अमेरिकन विंग द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक जानकारी साझा की गई है। इसमें अमेरिका के 46 सांसदों ने जो बाइडेन को एक पत्र लिखा है। जिनमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों के सदस्य शामिल हैं। इस पत्र में इमरान खान की रिहाई की मांग की गई है। पोस्ट के मुताबिक पत्र का नेतृत्व सुसान वाइल्ड और जॉन जेम्स ने संयुक्त रूप से किया था। यह पत्र एक महीने से भी कम समय में दूसरी बार भेजा गया है। इस पत्र पर साइन करने वाले 46 में से 20 रिपब्लिकन हैं। इस पत्र में फरवरी 2024 के चुनावों के बाद पाकिस्तान की “बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति” पर प्रकाश डाला गया है।
सांसदों ने जताई चिंता
जियो टीवी के मुताबिक सांसदों ने कहा कि उनकी चिंता का केंद्र बिंदु पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान की गैरकानूनी हिरासत है। पिछले साल अगस्त से उन्हें भ्रष्टाचार से लेकर आतंकवाद तक के कई मामलों में जेल में बंद किया गया है। यह भी नोट किया गया कि पीटीआई से जुड़े कई कार्यकर्ता, जिनमें यास्मीन राशिद और शाह महमूद कुरेशी जैसे वरिष्ठ पार्टी नेता शामिल हैं, एक साल से अधिक समय से हिरासत में हैं। इस मामले में जियो टीवी की ओर से एक बयान में कहा गया कि अमेरिकी सांसदों ने कहा कि इन चिंताजनक घटनाक्रमों को देखते हुए, हमारा मानना है कि इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास में दृष्टिकोण में बदलाव की तत्काल आवश्यकता है।
अमेरिका सांसदों ने क्या कहा?
पत्र में अमेरिकी सांसदों द्वारा ‘एच. रेस. 901’ का हवाला दिया गया है। दरअसल जून 2024 में एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इसमें अमेरिकी कार्रवाई के लिए एक रूपरेखा तौर पर देखा जाता है। पत्र में आरोप लगाया गया कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने चुनावों से पहले पीटीआई को इससे बाहर कर दिया। इसके अलावा चुनाव परिणामों में धांधली भी की गई जो पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों के पक्ष में थे। वहीं अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे कि कॉमनवेल्थ ऑब्जर्वर ग्रुप और यूरोपीय संघ की चुनाव निगरानी रिपोर्टों को भी दबा दिया गया।