पंजाब और हरियाणा के तकरीबन 300 से अधिक युवकों को अवैध तरीके से अमेरिका में दाखिल होने का सपना बेहद भारी पड़ गया। अवैध तस्करी, बीमारी और भूख-प्यास से लड़ते हुए 300 से ज्यादा कठिन जंगल यात्रा के बाद मेक्सिको पहुंचे, जिसके बाद उन्हें वहां से डिपोर्ट करके वापस हिंदुस्तान भेज दिया गया। वीजा एजेंट्स द्वारा 15 से 20 लाख रुपये मांगने पर किसान परिवारों से ताल्लुक रखने वाले बेरोजगार युवक सिर्फ यू-ट्यूब देखकर और उन लोगों की बातें सुनकर रवाना हो गए, जो अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचने में सफल रहे थे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को जालंधर के रहने वाले 26 साल के किसान सेवक सिंह ने बताया, “मैंने यात्रा का वीडियो यू-ट्यूब पर देखा था। यह इतना डरवाना नहीं लगा था। मुझे नहीं पता था कि हमें बिना भोजन-पानी के जंगल में चलना होगा।” सेवक सिंह 29 जुलाई को भारत से अमेरिका के लिए रवाना हुए थे। गौरतलब है कि दिल्ली स्थित ‘इंदिरा गांधी इंटरनेशन एयरपोर्ट’ पर शुक्रवार को 311 व्यक्तियों को मैक्सिको सरकार की तरफ से डिपोर्ट किया गया। ये लोग अवैध तरीके से अमेरिका जाने की कोशिश कर रहे थे।
जालंधर के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले 23 साल के दीप सिंह बताते हैं कि ”वीजा एजेंट्स” की तलाश बेहद आसान थी। दीप ने बताया, “हमारे कई साथी अब अमेरिका में हैं। हम उनसे सिर्फ इन एजेंट्स के बारे में पूछते हैं। जालंधर में कई वॉट्सऐप फॉरवर्ड होते हैं, जो यह आइडिया युवकों तक पहुंचाने का काम करते हैं।” युवक ने बताया, “हमें सिर्फ पंजाब से दिल्ली जाना था और फिर हमें टिकट मिल गए थे, जिसमें यह जानकारी थी कि कहां जाना है। हमें कुछ भी पूछने की भी जरूरत नहीं हुई, एजेंटों को पता होता है।”
इक्वेडोर की फ्लाइट लेने के बाद, इन लोगों को सड़क या फ्लाइट के जरिए कोलंबिया, ब्राजील, पेरू, पनामा, कोस्टा रिका, निकारागुआ, होंडुरस, ग्वाटेमाला और अंत में मैक्सिको ले जाया गया। इन्होंने सस्ते होटलों में एक सप्ताह बिताया। एक व्यक्ति ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, “यात्रा के कई पड़ाव पर बंदूक से लैस पांच से 6 लोग हमारे साथ थे।”
लेकिन, पनामा में भयानक यात्रा की उम्मीद युवकों को बिल्कुल नहीं थी। उन्हें घंने जंगलों में पांच से सात दिनों तक खुद से चलने के लिए कहा गया था। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट 22 साल के सोनू बताते हैं, “रास्ते (जंगल में) बने हुए थे और प्लास्टिक बैक के जरिए मार्क भी स्थापित किए गए थे। तीन दिनों तक हमें पानी तक नसीब नहीं हुआ। हम अपने शर्ट से पसीना तक निचोड़ के पी गए। खाना भी नहीं था। जंगल में जानवर थे और हममें से बहुत से लोग बीमार पड़ गए।” जब लोग मैक्सिको पहुंच गए तब उन्हें वहां के प्रशासन ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें एक कैंप में बंद कर दिया, जो कि किसी जेल की तरह था। सेवक ने बताया कि उन्हें विशेष समय पर बाहर निकाला जाता था और दिन में दो बार खाना दिया जाता था।