देश भर के ”गौरक्षक” अंडरग्राउंड हो गए हैं। पहले उन्हें लगता था कि केंद्र में नरेंद्र मोदी और यूपी में योगी आदित्य नाथ का राज आने के बाद वे खुले आम ”गायों की रक्षा” कर सकेंगे। पर कुर्सी संभालते ही दोनों ने जो बयान दिए, वे गौरक्षकों को पसंद नहीं आए। गौरक्षकों ने पीएम मोदी और सीएम योगी के बयानों को अपनी अस्मिता पर हमला बताया। यूपी के नए डीजीपी सुलखान सिंंह का बयान आने के बाद तो गौरक्षक आपे से बाहर हो गए। उन्होंने गुप्त मीटिंग की और मोदी-योगी के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला लिया। पुलिस इस अभियान को रोक नहीं सके, इसलिए सारे गौरक्षकों ने अंडरग्राउंड रहने का भी फैसला किया।
दरअसल, योगी आदित्य नाथ ने जिस दिन सुलखान सिंह को यूपी का पुलिस महानिदेशक बनाए जाने का ऐलान किया, उसके अगले ही दिन डीजीपी साहब ने ऐलान कर दिया कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों को नहीं छोड़ा जाएगा। ऐसा करने वालों ने इस बयान को योगी आदित्य नाथ के एजेंडे के तौर पर लिया और समझा कि सीएम ने अपना यह एजेंडा लागू करवाने के लिए ही सुलखान को पुलिस की कमान सौंपी है। इससे पहले योगी आदित्य नाथ ने कहा था कि गायों की रक्षा के नाम पर हिंसा ठीक नहीं है। तब उनके इस बयान को गौरक्षकों ने गंभीरता से नहीं लिया था। उन्हें लगा था कि यह बयान अल्पसंख्यकों को दिलासा दिलाने भर के लिए है। पर डीजीपी के कड़े तेवर देख कर उन्हें लगा कि वह गलत समझ बैठे थे।
डीजीपी का बयान आने के बाद गौरक्षकों ने पीएम से भी संपर्क साधने की कोशिश की थी, पर संपर्क हो नहीं सका। गौरक्षक पीएम मोदी से भी नाराज हैं क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में वो भी उनका साथ नहीं दे रहे। एक गौरक्षक ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि पीएम मोदी तो अब उनका फोन भी नहीं उठाते। बस रेडियो पर अपने मन की बात करते हैं, हमारे मन की बात तो सुनते ही नहीं। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के इस रुख को गौरक्षक प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए उनके एक बयान से जोड़ कर देख रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा था कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उनके इस बयान के बाद से ही ‘गौरक्षकों’ को लोग शक की नजर से देखने लगे थे।
गौरक्षकों ने समझा कि शायद प्रधानमंत्री पद की मजबूरी के चलते नरेंद्र मोदी ने यह बयान दिया होगा, पर अब उन्हें लग रहा है कि वह ऐसा बयान देकर आदित्य नाथ का सीएम बनने का रास्ता साफ कर रहे थे। उन्हें असल हमदर्दी नेताओं से है, गौरक्षकों से नहीं। आपात और गुप्त बैठक मेें शामिल होने वाले ज्यादातर गौरक्षकों की यही राय थी। इसके मद्देेेनजर उन्होंने ऐसी रणनीति बनाई जिसके तहत किसी राज्य में आगे भाजपा की सरकार बनने से रोका जा सके। फैसला किया कि अब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले वह अपनी सक्रियता कम कर देंगे, ताकि भाजपा नेताओं को ध्रुवीकरण करने में मदद नहीं मिल सके।
गुप्त बैठक में गौरक्षकों ने भाजपा से खुली जंग लड़ने की रणनीति बनाई है और इसके लिए विपक्षी पार्टियों से संपर्क साधने का भी फैैसला हुआ है। गौरक्षकों के अखिल भारतीय संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बैठक में प्रस्ताव दिया कि यूपी पुलिस के सख्त तेवर देखते हुए फिलहाल वह विदेश चले जाते हैं। चार लोगों ने इस पर आपत्ति की, पर उसे दरकिनार करते हुए यह प्रस्ताव स्वीकार हो गया। अध्यक्ष ने यूपी के एक बड़े विपक्षी नेता के जरिए अपनी विदेेश यात्रा का सारा इंतजाम करा लिया है। नेता ने शर्त रखी है कि वह विदेश जाकर मस्ती नहीं करेगा, बल्कि भाजपा की ईंट से ईंट बजाने की ताकत बटोरेगा। अध्यक्ष ने खुशी-खुशी यह शर्त मान ली है।
उधर, सारे गौरक्षकों के अंडरग्राउंड हो जाने के बाद यूपी पुलिस ने राहत की सांस ली है। पुलिस ने राज्य को गौरक्षकों से मुक्त घोषित कर दिया है और कहा है कि योगी आदित्य नाथ की सरकार ने एक महीने में ही गौरक्षकों की गुंडागर्दी खत्म कर दी। खबर है कि पीएमओ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इसका सारा श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है।
(यह खबर आपको हंसने-हंसाने के लिए कोरी कल्पना के आधार पर लिखी गई है। इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है। ऐसी अन्य खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें )