गप्पू: कल तुमने ब्राह्मण और सत्तू की कहानी सुनाने का वादा किया था…सुनाओ न?
पप्पू: सुना दूंगा…सुना दूंगा। लेकिन, ज़रा दिल पर हाथ रखकर बताओ कि क्या यह वक़्त कहानियां सुनने-सुनाने का है? तुम बच्चे तो नहीं …
गप्पू: क्यों, दिक़्क़त क्या है?
पप्पू: करौना की गति 6000 प्रतिदिन हो गई है..उड़ीसा और बंगाल में तूफान .. और कराची में प्लेन क्रैश।
गप्पू: ओहोहोहो, कराची!! ऐसे बोलते हो जैसे भारत का कोई मोहल्ला हो। कराची से हलवे तक का रिश्ता रखो।
पप्पू: रिश्ता दरअसल तो बड़ा गहरा है। अपने राष्ट्रगान में दर्ज़ है। सिंध। कराची की राजधानी सिंध। सिंध जहां से सिंधु गुज़रती है। उसी के कारण आज हमको हिन्दू नाम मिला है। कालांतर में हिन्दू शब्द ने ही हिंदुत्व को जन्म दिया। सच तो यह है कि शुद्ध भारतीय शब्द तो सिन्धुत्व है। हिंदुत्व तो अरबी-फारसी हुआ न, क्यों?
गप्पू: शत्रु से इतना प्रेम। जा चला जा वहीं। बस जा सिंध में। नहा लेना सिंधु में और बन जाना वही…वही। अरे, चुप हो जा कमबख्त, बदबख्त। क्रोध में मेरे वहां के बाल जल रहे हैं जिसका नाम लेने पर बचपन में पिता जी ने खाल उधेड़ दी थी।
पप्पू: अगली बार से बिकिनी एरिया बोलना। सुनने वाला ही नहीं बाल भी मस्त होकर जलेंगे। वैसे, सिंध के नाम से
आग क्यों लग गई?
गप्पू: मत पूछो..खून खौल उठता है। 712 ईसवी। हमारे प्यारे राजा दाहिर शहीद हुए थे। मुहम्मद बिन क़ासिम, यानी भारत पर हमला करने वाला पहला मुसलमान। कभी चाचनामा पढ़ना। अरबों ने अपनी विजय गाथा दर्ज़ कराई थी इस किताब में। आंसू आ जाएंगे।
पप्पू: इसी से दुखी हो? अरे माटी डालो इतिहास पर। कौन सा देश है जिसने आक्रमण और पराजय नहीं झेली। दूसरों की छोड़ो। अरे, वो अपने आका थे न, लाल मुंह वाले? इतिहास के रंगमंच पर कितनी बार पिटे और किन किन जातियों ने शासन किया, ये बातें वहां के ज़्यादातर लोग जानते ही नहीं। और, जो लोग जानते हैं वे वर्तमान को बेहतर बनाने में लगे हैं। इक्का-दुक्का नफरती लाल हैं भी हैं तो वे जानते हैं कि इतिहास का वे कुछ भी न उखाड़ पाएंगे।

गप्पू: तो हम 12-13 सौ साल की ग़ुलामी को भूल जाएं?
सबको माफ कर दें? इतिहास में कभी हुआ है ऐसा?
पप्पू: इतिहास? अरे, अभी वर्तमान में हुआ है और यह बेमिसाल काम करने वाला भारत रत्न भी है! भारत रत्न नेल्सन मंडेला, जिन्होंने गोरों के एक ऐसे नस्लभेदी शासन का अंत किया, जिसके अत्याचारों की मिसाल नहीं है। अपना चतुर बनिया भी उन्हीं अत्याचारों की खाद पाकर महात्मा बना था।
गप्पू: मंडेला की बात बताओ
पप्पू: मंडेला ने अल्पसंख्यक गोरों के खिलाफ बहुसंख्यक अश्वेतों को कभी नहीं उकसाया कि वे भयभीत होकर साउथ अफ्रीका से यूरोप/अमेरिका भाग जाएं। गोरों की जेल में पूरी जवानी और आधी उम्र काटने वाले इस सन्त ने आततायियों को माफ़ कर दिया। सत्ता में आते ही उसने ट्रुथ एंड रीकंसीलिएशन कमीशन बनाया। आयोग के समक्ष वे गोरे अफसर और नेता पेश होते थे, जिन्होंने सत्ता में रहकर अश्वेतों के प्रति अपराध किए थे। वे गुनाह कुबूल करते थे और उनको माफी मिल जाती थी।
गप्पू: बात तो बढ़िया है पर पप्पू हमारे अपराधी पेश कैसे होंगे? मुहम्मद बिन क़ासिम, सुबुक्तगीन, मुहम्मद ग़ोरी से लेकर औरंज़ेब आदि को कैसे ज़िंदा किया जाएगा?
पप्पू: एक काम हो सकता है। हम इन अपराधियों के उत्तराधिकारियों या सरकारों के नुमाइंदों को तलब कर सकते हैं। मैं देखता हूं। तुम, एक-एक कर के अपराधियों के नाम बताओ। फिर मैं देखता हूं कि क्या किया जा सकता है। सब नहीं तो मेन-मेन तो बता ही दो।
गप्पू: लिखो- मुहम्मद बिन क़ासिम, गोरी, ग़ज़नवी, बाबर, नादिरशाह, अब्दाली।
पप्पू: बिन कासिम की पैदाइश तैफ, सऊदी अरब की। रिक्वेस्ट की जा सकती है। उम्मीद है कि राजकुमार मुहम्मद बिन सलमान किसी शाही नुमाइंदे को भेज देंगे। क्या शानदार मंज़र होगा लालकिले में खुली अदालत होगी और कार्रवाई का लाइव प्रसारण।
हां, अब आगे। मुहम्मद ग़ोरी, ग़ज़नवी, अहमद शाह अब्दाली के लिए अफ़ग़ानिस्तान से कहना होगा। मामला कठिन पड़ेगा। ग़नी भाई तो मान जाएंगे लेकिन तालिबान?
बाकी सब तो ठीक है लेकिन बाबर और उसके वारिसों का क्या किया जाए? फरगना, यानी उज़्बेकिस्तान की पैदाइश था। मुश्किल है क्योंकि बाबर का बड़ा सम्मान है वहां। पर एक आईडिया है सर जी, हम आंग सू की से कह सकते है, क्योंकि विलियम डैलरिम्पिल के मुताबिक़ बहादुरशाह ज़फ़र के दो लड़के पिता की मौत के बाद रंगून में रह गए थे। अब तक तो ज़फ़र का कुनबा सैकड़ों हज़ारों का होगा। सू की बिला हुज्जत भेज देंगी। हो सकता है कि वे रोहिंगिया की श्रेणी में डाल दिए गए हों और यहीं अपने भारत में कहीं छिपे पड़े हों।
क्यों गप्पू, कैसा लग रहा है?
गप्पू: यह आखरी दृश्य तो अद्भुत है। लगता है कि सन 1526 से तड़पते झुलसते दिल पर सावन बरस रहा हो। अहा! मुग़लिया साम्राज्य के जनक की नुमाइंदगी करने वाला एक फटेहाल आदमी, जिसको दुनिया का कोई देश अपनाने को तैयार ही नहीं। पप्पू, आत्मा तर गई यह मंज़र सोचकर। लगता है गाऊं…दिल की ऐ धड़कन ठहर जा मिल गई मंज़िल मुझे…लगता है मन से नफरत खत्म होती जा रही है।
पप्पू: नफरत की आग खत्म हो जाएगी तब तू क्या करेगा गप्पू? खैर, छोड़। मेरे पास एक तरबूज़ है। आओ खाते हैं। ये तरबूज़ बाबर ही हिंदुस्तान लाया था। ले, चाकू पकड़ और उतार दे खंज़र इसके पेट में..

– लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनकी कपोल-कल्पित बातचीत है।