नई दिल्ली। अखिल भारतीय (ग़ैर शराबी) नशेबाज़ संघ ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि बेवड़ा समाज की तरह उनको भी देशहित में योगदान करने का अवसर प्रदान किया जाए। संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने गुरुवार की सुबह प्रधानमंत्री के आवास पर जा कर एक ज्ञापन सौंपा। मंडल के अध्यक्ष भोलेलाल बैरागी ने बाद में मीडिया के साथ बातचीत की।
भोले ने कहा आज ग्रोथरेट के निगेटिव होने का ख़तरा आसन्न है और टैक्स वसूली नगण्य है। ऐसे में खज़ाना भरने के लिए सरकार को दारू के साथ अन्य मादक द्रव्यों की दुकानें खोलनी चाहिए ताकि गंजेड़ी, भंगेड़ी, अफीमची, मदकची भी राहत महसूस कर सकें और सूखते राजकोष को सींच सकें।

लेकिन, गांजे पर तो प्रतिबंध है! राइम्स गाव के रिपोर्टर के इस सवाल पर भोलेलाल ने कहा कि अगर अमेरिका के राज्य कैनबीज़ यानी गांजे से रोक हटा सकते हैं तो हम क्यों नहीं। इस पर टाइम्स ऑफ अंधकार के संवाददाता ने कहा कि इससे तो हम जनता की नज़र में पिछलग्गू दिखाई देंगे, क्यों? जवाब में भोलेलाल मुस्कुराए। क्या सोचते हो, इस देश के साधू-महात्मा हज़ारों साल से अमरीका की नकल में दम मार रहे थे!! अरे, पश्चिम को पिछली शताब्दी के 70 के दशक में माटी की चिलम तो हिंदुस्तान ने ही थमाई थी। यक़ीन न हो देवानन्द की हरे रामा हरे कृष्णा देख लेना। क्या दम मारती थी ज़ीनत अमान… दम मारो दम…।

भोलेलाल भावुक होकर भूतकाल में बहने लगे तो कुछ अखबारनवीसों को हंसी आ गई। भोले संयत हो गए। अमरीका की नकल की बात तो इसलिए नहीं पैदा होती कि गांजा और अफीम आदि के सकारात्मक पहलुओं को हमारा आयुर्वेद पहले ही उजागर कर चुका है। नशे की चीज़ों पर रोकटोक तो अंग्रेज़ों ने लगाई। अपने यहां तो फ्री फॉर ऑल था। धार्मिक ग्रंथ पढ़िए। देवी-देवता धडल्ले से सोमपान और मधुपान करते मिल जाते हैं।

भोलेलाल ने लॉकडाउन के कारण अफीम की खेती को हुए नुकसान पर अफसोस जताया और कहा कि इस इस नशे को प्रमोट करने की आवश्यकता है। यदि सरकार ठान ले तो इसकी खेती और कारोबार में हम तालिबान को पीछे छोड़ सकते हैं। इतिहास गवाह है कि जिस किसी ने अफीम का इस्तेमाल किया अथवा खरीद फरोख्त की, कालांतर में वह मालामाल हो गया। अंग्रेज़ों ने चीन को खूब अफीम खिलाई। देखिए आज चीन कहां से कहां पहुंच गया है। चीन तक अफीम पहुंचाने का कारोबार एक भारतीय ने भी किया था। आज उस आदमी की फर्म देश मे टॉप फाइव में आती है।

भोलेलाल ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को देश के माली हालत सुधारने के लिए कोका की खेती का सुझाव भी दिया। पेरू और बोलीविया में एंडीज़ पर्वत शृंखला पर इसकी खूब खेती होती है। गरीब आदमी कोका की पत्तियों को चूने में रगड़ कर खाता है। लेकिन अगर पत्तियों को प्रॉसेस किया जाए तो वे सफेद पाउडर का रूप लेकर कोकेन बन जाती हैं। हम कोकेन की फैक्ट्रियां लगाएंगे और बेचेंगे। चूंकि कोकेन पूरी दुनिया में प्रतिबंधित है, सो भारत पूरी दुनिया के नशेबाज़ का स्वर्ग बन जाएगा। इतने टूरिस्ट आएंगे कि थाईलैंड भी जीवनयापन के लिए वो काम बंद कर के ये काम करने लगेगा।

सत्तू जी की असत्य कथाएं…

भोलेलाल ने सरकार को चेताया कि वह उनकी बिरादरी को दारूबाजों से छोटी आंकने की भूल न करे। उन्होंने कहाकि गैर शराबी नशेबाजों कहीं ज़्यादा है। पर वे शांतिप्रिय हैं। नशा चाहे जितना गहरा हो वे शराबियों की तरह कभी वोकल नहीं होते। सरकार हमें समझे नहीं तो हम संत समाज को इकट्ठा कर देंगे। तब सरकार को मुंह छिपाते न बनेगा। सरकार हमारी ताकत को नहीं जानती। वह तो यह भी नहीं जानती कि शराबियों से ज़्यादा हादसे हम टुन्नीलाल करते हैं। सिर्फ इसलिए कि हम महकते नहीं?!!

भोलेलाल ने अंत में चेताया कि एक हफ्ते में गांजा, भांग, चरस की दुकानें खोली जाएं ताकि विड्रॉल सिन्ड्रोम से परेशान बिरादरी चैन से जी सके और राष्ट्र के उन्नयन में टैक्स के ज़रिए योगदान कर सके। अगर दुकानें खुलने में दिक्कत हो तो हम होम डिलिवरी पर राजी हैं। अन्यथा, हमारे दस हज़ार नशेबाज़ काशी विश्वनाथ के आगे धरने पर बैठ जाएंगे। इतना कहकर भोलेलाल उस गीत की कुछ पंक्तिया भी सुनाई जो काशी में धरने के दौरान गाया जाएगा:

हम महकेंगे हम महकेंगे
लाजिम है कि हम भी महकेंगे
जब चिलम हमारी धधकेगी
गांजे की तरह हम महकेंगे
लाजिम है कि हम भी महकेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)