शनिदेव को एक बेहद ही शक्तिशाली देवता माना जाता है। कहा जाता है कि इन्हें न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है। इसलिए यह सभी को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनिदेव के जन्म को लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। कहा जाता है कि उनके संबंध कभी अपने पिता सूर्य के साथ अच्छे नहीं रहे। वैसे तो सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा को माना गया है लेकिन शनिदेव को तो छाया पुत्र कहकर संबोधित किया जाता है। कैसे हुआ शनिदेव का जन्म और क्यों उनके पिता से उनके संबंध हमेशा खराब रहे जानें यहां…
स्कंदपुराण के काशीखंड में वर्णित एक कथा के अनुसार सूर्य भगवान का विवाह राजा दक्ष की बेटी संज्ञा से हुआ था। सूर्य के तेज को उनकी पत्नी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी। वक्त के साथ सूर्य देव की तीन संताने मनु, यमराज और यमुना हुई। लेकिन उसके बाद भी संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पा रही थी। परेशान होकर संज्ञा ने तपस्या के जरिए सूर्य देव की ऊर्जा को सहने का मार्ग निकाला। इस दौरान उन्होंने अपनी छाया को अपना रूप देकर सारी जिम्मेदारियां उसे सौंप दी। जहां संज्ञा सूर्य देव के तेज से परेशान होती थी तो वहीं छाया को इस तरह की कोई परेशानी नहीं झेलनी पड़ी। सूर्यदेव और छाया की भी तीन संतानें हुई जिनमें से एक थे शनिदेव।
शनिदेव के रंग को लेकर भी कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब शनि अपनी माता के गर्भ में थे तब उनकी माता ने भगवान शिव की काफी कठोर तपस्या की थी। वह बिना खाए-पिए भगवान की अराधाना में लगी रहीं। इसका असर गर्भ में पल रहे शनिदेव पर हुआ। और इस कारण उनका रंग काला हो गया।
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शनिदेव के जन्म के समय उनके रंग को देखकर सूर्यदेव क्रोधित हो गए और शनि और उनकी मां छाया का खूब अपमान किया। पिता का ऐसा स्वभाव देखकर शनिदेव की दृष्टि जैसे ही उनके पिता पर पड़ी उनका रंग काला हो गया। जिस कारण पूरा संसार अंधकारमय होने लगा। परेशान होकर सूर्य भगवान ने भगवान शिव की शरण ली और भगवान शिव ने उन्हें अपनी गलती का अहसास दिलाया। फिर सूर्य देव ने शनि भगवान से क्षमा मांगी जिससे उन्हें अपना असली रूप हासिल हुआ। लेकिन इस दिन के बाद दोनों के बीच के संबंध कभी ठीक नहीं हो पाए।