कार्तिक मास की शुक्ल नवमी को ‘अक्षय नवमी’ और ‘आँवला नवमी’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन जप, दान, तर्पण, स्नानादि करने से अक्षय फल प्राप्त होता है। इस दिन आंवले के पेड़ के पूजन का विशेष महत्व है। आंवले के पेड़ के नीचे कपूर या घी का दीपक जालने से विशेष लाभ मिलता है। आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए फिर स्वयं भोजन करें। शास्त्रों के मुताबिक अक्षय नवमी के दिन दान देना शुभ माना जाता है। इस दिन दान, पूजा, भक्ति, सेवा करने से इनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। माना जाता है कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है। इसलिए अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है और ऐसा करने पर इंसान की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। इस नवमी को आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर इस मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।

मंत्र-  यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च |
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ||

आंवला (अक्षय) नवमी है फलदायी – पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए इस नवमी को बेहद खास माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन घर में आंवला की पूजा करने और घर में आंवले का पौधा लगाने से इंसान के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के पेड़ में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।

अक्षय नवमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:43 से दोपहर 12:22 तक

व्रत की पूजा का विधान – नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आंवला के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं। इसके बाद आंवले के पेड़ की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है। इसके बाद रोली, चावल, धूप दीप से पेड़ की पूजा की जाती है। महिलाएं आंवले के पेड़ की 108 परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।

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आँवला नवमी की कथा – पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आंवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई। इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले के सेवन करने की सलाह दी थी। इसके बाद महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला की पूजा कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।