Fatty Liver during Pregnancy: प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं की अपनी सेहत के प्रति जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है। इसका कारण है कि उनको खुद के साथ अपने गर्भ में पल रहे शिशु का भी ख्याल रखना पड़ता है। गर्भावस्था के समय महिलाओं में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कई बदलाव आते हैं। उन्हें कुछ-कुछ समय के अंतराल पर खाने की क्रेविंग होती रहती है। इस क्रेविंग को मिटाने के लिए अगर महिलाएं अनहेल्दी खाना खाती हैं तो इससे प्रेग्नेंसी या लेबर के समय कॉम्प्लिकेशन का खतरा बढ़ता है। इस दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है फैटी लिवर की परेशानी। आइए जानते हैं कैसे प्रेग्नेंट महिलाओं को अपने चपेट में लेती है ये बीमारी और क्या हैं इससे बचने के तरीके-

तीसरी तिमाही में होता है अधिक खतरा: गर्भावस्था की तीसरी तिमाही यानि कि 35 या 36वें हफ्ते में कई महिलाएं लिवर की परेशानियों से पीड़ित हो जाती हैं। इन्हीं में से एक है एक्यूट फैटी लिवर ऑफ प्रेग्नेंसी। नैशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे के डाटा के अनुसार 2007 से 2012 के बीच में महिलाओं में लिवर संबंधित बीमारी होने का खतरा 18.1 प्रतिशत तक बढ़ा है। एक अध्ययन के अनुसार अगर इस बीमारी की पहचान शुरुआती चरणों में ही हो जाती है तो प्रसव के दौरान जटिलताओं की संभावना 18 से 23 प्रतिशत तक कम हो जाती है। पेट में दर्द, कम भूख लगना, वजन कम होना, वोमिटिंग, थकान और त्वचा का पीला पड़ जाना इस बीमारी के कुछ आम लक्षण हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान फैटी लिवर की समस्या होने पर शिशु के विकास पर भी बुरा असर पड़ता है।

कैसे कराएं फैटी लिवर की जांच: अगर आपको शरीर में लगातार फैटी लिवर के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो डॉक्टर की सलाह पर आप ब्लड टेस्ट करवा सकते हैं। अगर इस टेस्ट में लिवर एंजाइम नॉर्मल से ज्यादा है तो उसका एक कारण फैटी लिवर भी हो सकता है। वहीं, कई बार डॉक्टर्स आपके पेट को देखने के बाद फैटी लिवर कंफर्म करने के लिए अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या फिर सीटी स्कैन कराने की सलाह भी देते हैं। अगर आपके लिवर में अतिरिक्त वसा मौजूद होगा तो इन जांच के जरिये पता चल जाएगा। साथ ही, इससे ये भी पता चलेगा कि एक्स्ट्रा फैट की वजह से लिवर कितना प्रभावित हुआ है। इसके अलावा, कई मामलों में डॉक्टर लिवर बायोप्सी कराने की सलाह भी देते हैं।

ये हैं बचाव के तरीके: फैटी लिवर को कंट्रोल करने के लिए कोई दवा या सर्जरी नहीं होती, इसे केवल अपनी जीवन-शैली में बदलाव लाकर ही कम किया जा सकता है। हेल्दी डाइट को फॉलो करें और क्रेविंग होने पर जंक फूड के बजाय फल व मेवों का सेवन करना फायदेमंद रहेगा। फैटी लिवर के खतरे को कम करने के लिए वजन को नियंत्रित करना भी जरूरी है। इसके अलावा, अपनी डाइट में हल्दी को जरूर शामिल करें। हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं। ये सभी गुण लिवर को हेल्दी और बीमारियों से दूर रखने में मददगार हैं।