मौसम में बदलाव के चलते वायरल इंफेक्शन या फिर खेलकूद करते हुए कोई चोट लगने पर सबसे पहले टिटनेस का इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों लगवाना चाहिए और अगर टिटनेस का टीका समय रहते नहीं लगवाया जाता तो शरीर पर क्या असर होता है। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद, रेजिडेंट डॉक्टर, डॉ. मनीष जैन ने बताया कि टिटनेस का इंजेक्शन क्यों कब और किस स्थिति में लगवाना चाहिए।
डॉ. मनीष जैन ने बताया कि अक्सर लोग मामूली कट, खरोंच या जंग लगे लोहे से लगी चोट को नजरअंदाज कर देते हैं और अपने आप सही हो जाएगी मान कर छोड़ देते हैं, लेकिन लोगों को नहीं पता कि यही लापरवाही टिटनेस जैसी जानलेवा बीमारी की वजह बन सकती है। उन्होंने बताया कि टिटनेस एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो Clostridium tetani नामक बैक्टीरिया से होता है और यह शरीर की नसों और मांसपेशियों को प्रभावित करता है। ऐसे में कोई भी कट या खरोंच लगने पर समय रहते टीका नहीं लगवाया गया, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।
Tetanus का इंजेक्शन कब लगवाना चाहिए?
डॉ. मनीष जैन ने बताया कि जंग लगे या गंदे लोहे से चोट लगने पर टिटनेस का टीका तुरंत लगवाना चाहिए। जैसे ही कोई व्यक्ति लोहे की कील, तार, औजार या किसी गंदे धारदार वस्तु से कट जाए, तो जल्दी से जल्दी टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए। इसके अलावा खून निकलने वाले गहरे घाव या जलने पर प्राथमिक उपचार के बाद 24 घंटे के अंदर इंजेक्शन लगवाना चाहिए। ऐसे किसी भी जानवर के काटने पर भी सबसे पहले टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए। खासकर कुत्ते या बिल्ली के काटने पर टिटनेस इंजेक्शन आवश्यक होता है।
इसी तरह गर्भावस्था के दौरान 2 डोज टिटनेस के लगाए जाते हैं, जिससे मां और नवजात शिशु संक्रमण से सुरक्षित रह सकें। टिटनेस का टीका लगवाने के इंफेक्शन का खतरा बहुत कम हो जाता है। बच्चों को भी 5 साल की उम्र तक 5 बार और किशोरावस्था में बूस्टर डोज दी जाती है ताकि संक्रमण से बचाव हो सके।
टिटनेस का टीका लगवाने में देरी करने से क्या होगा?
डॉ. मनीष जैन ने बताया कि टिटनेस के इंजेक्शन में देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जितनी देरी होती है संक्रमण का उतना ही खतरा बढ़ता है। टिटनेस का टीका देरी से लगवाने पर मांसपेशियों में तेज ऐंठन, खासकर जबड़े और गर्दन में हो सकती है। शरीर में अकड़न, जिससे चलना-फिरना मुश्किल हो सकता है, सांस लेने में तकलीफ, और गंभीर स्थिति में सांस रुकने का खतरा। इसे नजरअंदाज करने पर मरीज को आईसीयू में भर्ती करने तक की नौबत आ सकती है। इसका समय पर इलाज न मिले, तो ये मौत का कारण भी बन सकता है।
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