टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस एक संक्रामक (Infectious) बीमारी है, जो Mycobacterium tuberculosis नामक बैक्टीरिया से होती है। नेशनल ट्यूबरक्लोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम (NTEP) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार ये बीमारी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों जैसे गुर्दे, रीढ़, लिम्फ नोड्स और मस्तिष्क तक भी फैल सकती है। फेफड़ों में टीबी होने पर लगातार खांसी, सीने में दर्द, बुखार, वजन कम होना और रात में पसीना आना जैसे लक्षण दिखते हैं। भारत में टीबी के मरीजों की बात करें तो 2025 तक भारत में लगभग 2.55 करोड़ यानी 25.5 मिलियन टीबी मरीज दर्ज किए गए हैं।

Aster CMI Hospital, बेंगलुरु में लीड कंसल्टेंट  इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी के डॉ सुनील कुमार ने बताया टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो Mycobacterium tuberculosis बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन गुर्दे, रीढ़ और मस्तिष्क तक भी फैल सकती है।

जब ये बीमारी फेफड़ों को प्रभावित करती है तो मरीज को खांसी, सीने में दर्द और बलगम में खून जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। जब यह फेफड़ों से बाहर फैलती है, तो कमर दर्द, जोड़ों की समस्या या मेनिन्जाइटिस जैसे लक्षण हो सकते हैं। डॉ कुमार बताते हैं कि टीबी का इलाज आमतौर पर छह से नौ महीने तक एंटीबायोटिक के कॉम्बिनेशन से होता है। इसलिए दवाएं समय पर लेना और कोई भी डोज़ न छोड़ना बेहद जरूरी है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि टीवी की बीमारी में दवा का सेवन नहीं करने से सेहत पर कैसा असर होता है और इस दवा का कैसा शरीर पर प्रभाव पड़ता है।

टीबी की दवा छोड़ने पर सेहत पर कैसा होता है असर?

अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल की पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ कश्मीरा झाला बताती हैं कि जब टीबी की दवाएं नियमित रूप से नहीं लेते या पूरा कोर्स नहीं करते तो टीबी बैक्टीरिया मरते नहीं हैं। उनमें से कुछ बच जाते हैं और दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं जिसे ड्रग-रेजिस्टेंट टीबी कहते हैं। ये स्थिति टीबी का रूप बहुत कठिन और लंबा इलाज मांगता है, और अधिक साइड इफेक्ट्स वाली मजबूत दवाएं लेनी पड़ती हैं। कई मामलों में दवाएं इंट्रावेनस (IV) देनी पड़ती हैं।

एक्सपर्ट के मुताबिक इस बीमारी को पूरी तरह रिकवर होने पर ही दवा को छोड़ना चाहिए। भले ही लक्षण कम हो जाएं, क्योंकि संक्रमण दोबारा और ज्यादा ताकत के साथ लौट सकता है। डॉ झाला कहती हैं कि अनियमित इलाज संक्रमण को सक्रिय रखता है, जिससे परिवार और अन्य लोग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। अधूरा इलाज रिलेप्स, गंभीर बीमारी और जानलेवा जटिलताएं पैदा कर सकता है।

कैलाश हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ सागर श्रीवास्तव चेतावनी देते हैं अगर कोई टीबी का सही इलाज नहीं करता, तो अंत में उसकी मौत भी हो सकती है। वह कहते हैं कि लोग बीमारी की गंभीरता को समझते नहीं हैं, जबकि समय पर इलाज जीवन बचा सकता है।

आखिरी चरण में दवा छोड़ने पर कैसा होता है असर

डॉ कुमार बताते हैं कि अगर इलाज के आखिरी चरण में एक डोज छूट जाए तो तुरंत बहुत बड़ा खतरा नहीं होता लेकिन शुरुआती दो महीने बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसी समय सबसे ज्यादा बैक्टीरिया नष्ट होते हैं। बाकी महीनों में शरीर में बची हुई टीबी के कीटाणुओं को खत्म किया जाता है ताकि रोग वापस न आए। डॉक्टर बताते हैं कि पूरी बीमारी के दौरान पर्याप्त नींद, भरपूर आराम और पोषक का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। डाइट में प्रोटीन-युक्त डाइट का सेवन करना भी बेहद जरूरी है।

दवा का सेवन करते समय ध्यान दें इस बात पर भी

टीबी की दवाएं भारी होती हैं और कुछ लोगों को खाली पेट लेने पर पेट दर्द या असहजता महसूस हो सकती है। हालांकि दवाएं अक्सर खाली पेट ही लेने की सलाह दी जाती है। यह असहजता कई बार मरीज को दवा छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकती है जो बेहद खतरनाक है। दवा खाने के बाद परेशानी होती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

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