उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति में कई तरह के बदलाव आते हैं। शरीर कमजोर होने लगता है और याददाश्त कम होने लगती है। उम्र के 50 साल पार करने के बाद मानसिक और शारीरिक सेहत में तेजी से गिरावट आने लगती है। बात करें मानसिक स्थिति की तो उम्र बढ़ने का सबसे ज्यादा असर याददाश्त पर पड़ता है। याददाश्त का कमजोर होना अल्जाइमर (Alzheimer’s disease) या  डिमेंशिया (dementia) हो सकता है, लेकिन किसी की याददाश्त कमजोर है और साथ ही बॉडी की मूवमेंट स्लो हो रही है, शरीर में कंपकपी आ रही हैं तो ये लक्षण पार्किंसन डिजीज के हो सकते हैं।

आप जानते हैं कि बुजुर्गों में पनपने वाली ये बीमारी जो आमतौर पर 60 साल के बुजुर्गों को होती है वो अब 40 साल की उम्र के युवाओं में तेजी से पनप रही है।

पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease) आमतौर पर डोपामिन नामक रसायन की कमी के कारण होती है जिसमें मस्तिष्क की गति और शरीर की गति धीमी हो जाती हैं। शरीर में  कंपन (tremors) बढ़ जाती है और संतुलन बनाने में परेशानी होती है। आइए जानते हैं कि पार्किंसन डिजीज क्या है और इसके लक्षण कौन-कौन से है और ये युवाओं में तेजी से क्यों पनप रही है।

पार्किंसन रोग का एक लक्षण हो सकता है

  • याददाश्त कमजोर होना
  • हाथों या पैरों में कंपकंपी
  • मांसपेशियों की कठोरता
  • चाल में बदलाव
  • संतुलन में कमी
  • छोटे-छोटे काम करने में दिक्कत होना
  • मूड और मानसिक बदलाव
  • चेहरे पर हंसी या फिलिंग की कमी
  • भाषा में बदलाव
  • नींद में परेशानी होना, नींद में हाथ-पैर मारना,गंदे सपने देखना, बार-बार नींद खुलना
  • अगर किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिख रहे हैं तो न्यूरोलॉजिस्ट से जांच कराने की दरकार है।

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पीएन रंजन ने बताया उनके पास पार्किंसन बीमारी के ऐसे मरीज भी आ रहे हैं जिनकी उम्र सिर्फ 40 साल है। इस स्थिति को यंग-ऑनसेट पार्किंसन डिज़ीज़ (YOPD) कहा जाता है, जो सभी पार्किंसन मामलों में लगभग 10-20% होती है। पार्किंसन की बीमारी के अधिकांश मामलों में लक्षण 60 साल की उम्र के बाद सामने आते हैं, शुरुआत में लक्षण हल्के हो सकते हैं।

युवा लोगों में पार्किंसन क्यों बढ़ रहा है?

युवाओं में पार्किंसन रोग का कारण अनुवांशिक (genetic) या फैमिली हिस्ट्री हो सकती है। 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग 50 साल से पहले पार्किंसन से पीड़ित होते हैं, उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं जन्म से ही असामान्य हो सकती हैं जो सालों तक पता नहीं चलतीं।

कुछ खास जीन जैसे PARK2, PINK1 और DJ-1 में बदलाव (म्युटेशन) को शुरूआती अवस्था के पार्किंसन से जोड़ा गया है। लेकिन इन म्युटेशन के होने पर भी जरूरी नहीं कि बीमारी हो ही जाए। इस बीमारी के लिए पर्यावरणीय कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे कि कीटनाशकों के संपर्क में रहना, इंडस्ट्रियल केमिकल, सिर पर बार-बार चोट लगना भी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है। लाइफस्टाइल से जुड़ी कुछ आदतें जैसे धूम्रपान और शराब का सेवन भी बीमारी का जोखिम बढ़ा सकता हैं।

युवाओं में पार्किंसन की बीमारी के लक्षण

युवाओं में पार्किंसन की बीमारी होने पर कब्ज, थकान, चिंता,डिप्रेशन, गंध में कमी होना, नींद के पैटर्न में बदलाव होना शामिल हैं। अचानक से मूड में बदलाव होना, हाथ-पैरों में अकड़न और बॉडी में सुस्ती जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं।  

युवाओं में होने वाली इस परेशानी का इलाज क्या है?

युवावस्था में होने वाला पार्किंसन, बुजुर्गों में होने वाले पार्किंसन की तुलना में अधिक धीरे-धीरे बढ़ता है। युवा अवस्था में होने वाले पार्किंसन में मरीज लंबे समय तक काम कर सकता है और उसे मनोभ्रंश जैसी संज्ञानात्मक समस्याएं कम होती हैं। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन आप दवा, फिजियोथेरेपी और देखभाल के साथ इस परेशानी पर काबू पा सकते हैं। 

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