दाल भारतीय आहार का अहम हिस्सा है। आमतौर पर दिन में एक समय घर में दाल जरूर बनती है और इसे लोग बड़े चाव से भी खाते हैं। दाल सिर्फ खाना नहीं, बल्कि सेहत और तृप्ति का प्रतीक है। यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर,  विटामिन और मिनरल्स का खजाना है। नियमित रूप से दाल का सेवन करने से सेहत के साथ-साथ कई बीमारियों में भी फायदा मिलता है, लेकिन दाल सही समय, सही मात्रा और सही तरीके से पकाकर ही शरीर को पूरा पोषण और आराम देती है। पोषण विशेषज्ञ के मुताबिक, दाल शरीर में गैस नहीं करती, बल्कि इसे पकाने और खाने का तरीका गैस का कारण बनता है।

डायबिटीज एजुकेटर और होलिस्टिक न्यूट्रिशनिस्ट खुशी छाबड़ा ने बताया कि दाल का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन इसे पकाने और खाने के सही समय का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, क्योंकि दाल को पकाने और खाने का तरीका उसकी पौष्टिकता और पाचन पर बड़ा असर डालता है।

अरहर/तुअर दाल

न्यूट्रिशनिस्ट खुशी अरहर की दाल को खाने से पहले कम से कम एक घंटे के लिए भिगोने की सलाह देती हैं और इसे हल्दी और हींग के साथ पकाने की सलाह देती हैं। इसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का संतुलित अनुपात होता है और यह आसानी से पचने वाली होने के कारण सभी के लिए सुरक्षित है। पोषण विशेषज्ञ के अनुसार, इसे खाने का सबसे अच्छा समय दोपहर का भोजन है। सांभर या रसम बनाने के लिए यह सबसे अच्छी दाल है। खुशी के अनुसार, अरहर की दाल को कच्चा या अधपका नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा इसे बहुत अधिक तेल में पकाने से भी बचने की सलाह देती हैं, क्योंकि इससे इसके स्वास्थ्य लाभ कम हो सकते हैं। इसके अलावा डायरिया, लूज मोशन और IBS के मरीज इस दाल का सेवन करने परहेज करें।

हरी साबुत मूंग दाल

हरी साबुत मूंग दाल का उपयोग करने का सबसे अच्छा तरीका है कि इसे रात भर भिगोए, बेहतर पाचन के लिए अंकुरित करें और हमेशा अच्छी तरह पकाएं। यह वजन घटाने, शुगर और बुजुर्गों के लिए सबसे अच्छी दाल है। साबुत दालों में यह पचाने में सबसे आसान है और जब इसे अंकुरित रूप में खाया जाता है, तो यह गैस को कम करने के लिए जानी जाती है। हालांकि, दस्त, लूज मोशन या आईबीएस से पीड़ित हैं, तो पोषण विशेषज्ञ इसका सेवन करने से सावधान करते हैं। इसे दोपहर या रात के खाने के लिए भी खाया जा सकता है। पाचन क्षमता के अनुसार, डेली आधे से एक कप के बीच सीमित होना चाहिए।

उड़द दाल

पोषण विशेषज्ञ के अनुसार, उड़द की दाल को रात भर भिगोकर, किण्वित करके अदरक या हींग के साथ पकाना चाहिए। यह पचने में भारी होती है और पाचन संबंधी समस्याओं वाले लोगों में पेट फूलने का कारण बन सकती है। इसलिए अदरक या हींग भारीपन को कम करने और पाचन शक्ति बढ़ाने में मदद करती है। इसे दोपहर के भोजन और रात के खाने में डोसा के रूप में खाया जा सकता है, लेकिन इसे ग्रेवी के रूप में खाने से परहेज करना चाहिए। यह उन लोगों के लिए बहुत अच्छी है, जो हड्डियों और जोड़ों की मजबूती के साथ-साथ सहनशक्ति भी बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन पेट की समस्याओं वाले और बुजुर्गों को इससे परहेज करना चाहिए।

चना दाल

चना दाल को कम से कम दो से तीन घंटे के लिए भिगोना चाहिए, हो सके तो रात भर और खाने से पहले अच्छी तरह पकाना जरूरी है। यह पचाने में मध्यम से भारी होती है और अगर अधपकी हो तो पेट फूल सकता है। इसलिए सेवन करते समय सावधान रहें। यह शुगर और वजन कंट्रोल के लिए सबसे अच्छा काम करती है। इसमें कम जीआई और हाई फाइबर होता है। इसे पचाना मुश्किल होता है, इसलिए इसे दोपहर के भोजन में खाना चाहिए। चना खाने का सबसे अच्छा तरीका चना दाल लौकी, ढोकला और चिल्ला के रूप में है। इसे बिना भिगोए नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे गैस बनती है।

पीली मूंग दाल

यह सबसे हल्की और पेट के लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित दाल है और इसे बच्चे, बुजुर्ग और बीमार सभी खा सकते हैं, क्योंकि यह पेट के लिए आसान होती है। इसे दिन में किसी भी समय खाया जा सकता है और इसे एलर्जी वाले लोगों को छोड़कर सभी के लिए सुरक्षित माना जाता है। यह बीमारी के बाद ठीक होने के लिए सबसे अच्छी है और इसे दाल तड़का, सूप, चीला और मूंग दाल हलवे के रूप में खाया जा सकता है। मूंग दाल को ज्यादा घी या तेल में नहीं पकाना चाहिए और पके हुए रूप में रोजाना एक कप तक ही सीमित रखना चाहिए।

मसूर दाल

खुशी के अनुसार, इस दाल को हमेशा अच्छी तरह धोकर और हल्का पकाकर ही खाएं। यह पचने में हल्की होती है, लेकिन मूंग दाल के मुकाबले थोड़ी ज्यादा गैस बनाती है। यह वजन प्रबंधन और आयरन के लेवल को बढ़ाने की चाहत रखने वाली महिलाओं के लिए सबसे अच्छा काम करती है। इसे दोपहर और रात के खाने दोनों में खाया जा सकता है, लेकिन किडनी की पथरी वाले लोगों को इसके नियमित सेवन से बचना चाहिए।

काली उड़द दाल

पोषण विशेषज्ञ के अनुसार, यह दाल हड्डियों को मजबूत बनाने और शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी है। यह सबसे भारी दाल है, जिसमें प्रोटीन और फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है। इसकी पाचन शक्ति भी कम होती है और इसे बुजुर्गों, बच्चों और आईबीएस व कमजोर पाचन वाले लोगों को नहीं खाना चाहिए। इसे 10 से 12 घंटे भिगोकर धीमी आंच पर तब तक पकाना चाहिए, जब तक यह नरम न हो जाए। इसे खाने का सबसे अच्छा समय दोपहर का भोजन है। इसे रात के खाने में खाने से बचें, क्योंकि यह पचने में मुश्किल होती है।

वहीं, फिटनेस ट्रेनर नवनीत रामप्रसाद के अनुसार, सिर्फ लंबी वॉक करना 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को मजबूत बनाने के बजाय और भी कमजोर कर सकता है।