How To Overcome Trauma: हम अक्सर सोचते हैं कि ट्रामा यानी किसी पुराने दर्द या झटके का असर सिर्फ दिमाग पर होता है। लेकिन सच यह है कि हमारा शरीर भी उस ट्रॉमा को अपने अंदर सहेज लेता है। किसी हादसे, रिश्ते की टूटन, या गहरी चोट के बाद मन के साथ-साथ शरीर भी उस दर्द को याद रखता है। यही कारण है कि कई बार बिना किसी शारीरिक वजह के भी शरीर में थकान, जकड़न या बेचैनी महसूस होती है। इसे ही कहा जाता है, ‘बॉडी में स्टोर हुआ ट्रॉमा।’ गेटवे ऑफ हीलिंग की एमडी (एएम), मनोचिकित्सक डॉ. चांदनी तुगनैत के अनुसार, ट्रॉमा गहरा मानसिक या शारीरिक आघात होता है। इसे समय रहते कंट्रोल करना बेहद जरूरी है वरना ये किसी बड़ी बीमारी का रूप ले लेता है। कई बार हमें पता ही नहीं चलता है कि हम ट्रॉमा से गुजर रहे हैं। इसके बारे में शरीर समय-समय पर संकेत देता रहता है जिन्हें समय रहते जान लें। इसके साथ ही इन्हें कंट्रोल करें। आइए जानते हैं एक्सपर्ट डॉ. चांदनी से ट्रॉमा होने पर शरीर में कैसे दिखते हैं लक्षण। इसके साथ ही जानिए सदमा से कैसे करें बचाव…
डॉ. चांदनी कहती हैं कि शरीर और मन का गहरा रिश्ता होता है। जब हम किसी डर, सदमे या तनाव से गुजरते हैं, तो हमारा नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) उस स्थिति को ‘फाइट या फ्लाइट’ मोड में दर्ज कर लेता है। अगर उस समय भावनाएं पूरी तरह व्यक्त नहीं हो पातीं, तो वे शरीर के किसी हिस्से में जमा हो जाती हैं, जैसे छाती में भारीपन, गर्दन या कंधे में जकड़न।
ट्रॉमा के शरीर पर दिखते हैं ये संकेत ( Sign of trauma)
बहुत से लोग बताते हैं कि उन्हें बिना वजह थकान, सिरदर्द, पीठ दर्द, नींद न आना या पेट में दर्द रहता है। कई बार ये ट्रॉमा के फंसे हुए एनर्जी पॉइंट होते हैं, जिन्हें समझे बिना सिर्फ दवा से ठीक नहीं किया जा सकता। इसके अलावा कई लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं या फिर उनके अंदर की भावनाएं बिल्कुल शून्य हो जाती है। इतना ही नहीं कई लोगों के सामने ये ट्रामा एक फिल्म की तरह आपके सामने चलने लगती हैं। ऐसे में आपकी घबराहट बढ़ जाती है। आपके सामने ये तस्वीरें और आवाजें कभी-कभी या फिर हमेशा चली रहती है। इसे PTSD (Post-Traumatic Stress Disorder) कहा जाता है।
ट्रॉमा से उबरने के तरीके (How To Overcome Trauma)
हीलिंग की शुरुआत
ट्रॉमा से बाहर आने की शुरुआत तब होती है जब हम उसे नज़रअंदाज़ करने के बजाय महसूस करना सीखते हैं। शरीर में जो भी जकड़न या बेचैनी है, उसे स्वीकार करें और धीरे-धीरे उसके साथ साँस लें। ध्यान, योग और बॉडी अवेयरनेस प्रैक्टिस इसमें बहुत मददगार साबित होती हैं।
टच और मूवमेंट की ताकत
हल्के स्ट्रेच, डांस, या धीमे मूवमेंट्स शरीर में फंसे भावनात्मक ऊर्जा को बाहर लाने में मदद करते हैं। कई लोग सॉमैटिक थेरेपी या बॉडी हीलिंग सेशन के ज़रिए अपने भीतर के बोझ को रिलीज़ करना सीखते हैं।
खुद के साथ दयालु रहना
हीलिंग कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है। जब आप अपने शरीर की बात सुनना शुरू करते हैं, तो धीरे-धीरे ट्रॉमा की पकड़ ढीली पड़ने लगती है। अपने प्रति दया और धैर्य रखना इस सफर का सबसे ज़रूरी हिस्सा है।
ट्रामा सिर्फ एक याद नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो शरीर में दर्ज रहता है। जब हम अपने शरीर के संकेतों को समझना और उन्हें सम्मान देना सीख जाते हैं, तो असली हीलिंग शुरू होती है। शरीर सिर्फ दर्द को नहीं, बल्कि उसे छोड़ने की ताकत भी अपने अंदर रखता है बस ज़रूरत है, उससे जुड़ने की।
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