गरीब और प्रवासी बच्चों के बारे में अगर समय रहते न सोचा गया तो यह एक पूरी पीढ़ी के भविष्य से सीधा खिलवाड़ होगा। इन बच्चों की संभाल में उनके माता-पिता, सामाजिक व्यवस्था और सरकार सबकी साझी भूमिका है। बच्चों के समुचित पोषण और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और इस दिशा में सरकारी मदद लंबे समय तक के लिए सुनिश्चित होनी चाहिए। इसके लिए कोरोना से सुरक्षा के नियमों का पालन करते हुए देशभर के आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार की व्यवस्था करना एक अच्छा और कारगर विकल्प हो सकता है।

सामुदायिक रसोई की सहायता से भी ऐसे बच्चों के पोषण की व्यवस्था की जा सकती है। वो पढ़ाई से दूर न हों इसके लिए विद्यालयों के माध्यम से उन तक किताबें पहुंचनी चाहिए। ऐसे समय में चलंत पुस्तकालय की भूमिका भी अहम हो सकती है, जो बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के साथ-साथ उनका मनोरंजन भी करेगा। साथ ही स्थानीय शासन द्वारा बच्चों के भीतर सृजनात्मकता के विकास के लिए अलग से ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों तक संक्रमण की मार को देखते हुए उनके स्वास्थ्य के लिए भी वैकल्पिक व्यवस्था करनी जरूरी है।