बॉलीवुड के गलियारों से बीते गुरुवार यानी 14 दिसंबर की शाम को एक शॉकिंग खबर सामने आई। दरअसल, अभिनेता श्रेयस तलपड़े (Shreyas Talpade) अपनी अपकमिंग फिल्म ‘वेलकम टू द जंगल’ की शूटिंग कर घर लौटे थे, तभी अचानक उन्हें सीने में तेज दर्द का अहसास हुआ और वे बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। इसके बाद आनन-फानन में अभिनेता को मुंबई के अंधेरी पश्चिम में बेलव्यू अस्पताल ले जाया गया, जहां पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। खबरों की मानें तो हार्ट अटैक के बाद एक्टर को सांस लेने में बेहद तकलीफ हो रही थी, जिसे देखते हुए उनकी एंजियोप्लास्टी की गई। इस ट्रीटमेंट के बाद अभिनेता की हालत में सुधार आया और फिलहाल उनकी स्थिति बेहतर बताई जा रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर एंजियोप्लास्टी होती क्या है और इस उपचार की जरूरत कब पड़ती है-

क्या होती है एंजियोप्लास्टी?

एंजियोप्लास्टी दरअसल एक तरह की सर्जरी है। इसकी मदद से हार्ट की मांसपेशियों तक ब्लड सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाओं (Blood Vessels) को खोला जाता है। मेडिकल भाषा में इन रक्त वाहिकाओं को कोरोनरी आर्टरी (Coronary Artery) कहते हैं। आसान भाषा में समझें तो जब किसी शख्स की आर्टरी में प्लाक जमा हो जाता है, तब इस स्थिति में रक्त प्रवाह में दिक्कत आने लगती है। ऐसे में हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में इस प्लाक को हटाने और नसों को चौड़ा करने के लिए एंजियोप्लास्टी सर्जरी का सहारा लिया जाता है। एंजियोप्लास्टी करने से ब्लॉकेज खुल जाता है और इसके कारण धमनी में रक्त आसानी से प्रवाहित होता है।

कब की जा सकती है ये सर्जरी?

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दिल का दौरा पड़ने के बाद एक से दो घंटे के भीतर मरीज की एंजियोप्लास्टी हो जानी चाहिए। यानी इसे जितना जल्दी किया जाए, उतना ही पेशेंट की जान जाने के खतरे को कम किया जा सकता है।

एंजियोप्लास्टी तीन प्रकार की होती है। बैलून एंजियोप्लास्टी, लेजर एंजियोप्लास्टी और एथेरेक्टॉमी। आइए जानते हैं इन तीनों प्रकार के बारे में विस्तार से-

बैलून एंजियोप्लास्टी

बैलून एंजियोप्लास्टी के दौरान डॉक्टर मरीज की बांह या जांघ के पास हल्का सा चीरा लगाते हैं। इसके बाद इस चीरे से एक पलती सी ट्यूब को ब्लॉक हो चुकी धमनी में डाला जाता है। बता दें कि मेडिकल भाषा में इस ट्यूब को ‘कैथेटर’ कहा जाता है। कैथेटर के बॉडी के अंदर जाने पर डॉक्टर एक्स-रे या वीडियो की मदद से वाहिकाओं की मॉनिटर करते रहते हैं। वहीं, कैथेटर के धमनी तक पहुंचते ही उसे फुलाया जाने लगता है, जिससे ये एक बैलून की तरह काम करने लगती है और इससे प्लाक दबकर चपटा हो जाता है। ऐसा होने पर धमनी चौड़ी हो जाती है और पेशेंट का ब्लड सर्कुलेशन एक बार फिर बहाल हो जाता है।

लेजर एंजियोप्लास्टी

लेजर एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया भी लगभग इसी तरह की होती है, हालांकि इसमें कैथेटर के बॉडी के अंदर जाने पर बैलून की जगह लेजर की मदद की जाती है। लेजर की मदद से प्लाक तक पहुंचा जाता है और फिर ब्लॉक हो चुकी धमनी को वेपराइज कर एक बार फिर खोला जाता है।

एथेरेक्टॉमी

वहीं, बैलून एंजियोप्लास्टी और लेजर एंजियोप्लास्टी के काम न करने की स्थिति में एथेरेक्टॉमी का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान धमनी से प्लाक को काटकर पूरी तरह से हटा दिया जाता है।

बरतें ये सावधानियां

बता दें कि एंजियोप्लास्टी होने के बाद डॉक्टर कैथेटर को बॉडी से बाहर निकाल देते हैं और सर्जरी टीम कट से ब्लीडिंग को रोकने के लिए जरूरी ट्रीटमेंट कर उस जगह पर बैंडेज लगा देती है। कुछ समय के लिए उस घाव का खास ख्याल रखने की सलाह दी जाती है और समय के साथ कट लगने वाले हिस्से पर खरोंच जैसा निशान रह जाता है।

Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।