Gestational diabetes: जब प्रेग्नेंसी के दौरान डाइबिटीज होती है तब उसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। इसमें भी मां के खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। जेस्टेशनल डायबिटीज सिर्फ प्रेग्नेंसी के दौरान ही होती है और बेबी की डिलीवर होने के बाद ब्लड शुगर सामान्य हो जाता है। लेकिन जेस्टेशनल डायबिटीज को अगर बिना इलाज किए छोड़ दिया जाए तो इससे पेट में पल रहे बच्चे और मां दोनों को नुकसान हो सकता है।

अब तक यह समझा जाता था कि प्रेग्नेंसी के बीच में या आखिरी दौर में जेस्टेशनल डायबिटीज होती है लेकिन एक इंटरनेशल स्टडी में यह पाया गया कि जेस्टेशनल डायबिटीज प्रेग्नेंसी के एकदम शुरुआत में ही हो जाती है। अगर सही समय पर इसका टेस्ट करा लिया जाए तो इसको मैनेज बहुत आसानी से किया जा सकता है। इसलिए हर प्रेग्नेंट महिला को पहले के तीन महीनों में ही जेस्टेशनल डायबिटीज की जांच करा लेनी चाहिए।

कब करानी चाहिए जेस्टेशनल डायबिटीज की जांच:

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में प्रेग्नेंट महिलाएं 24 से 28 सप्ताह के अंदर जेस्टेशनल डायबिटीज के लिए जांच कराती हैं लेकिन रिसर्च के आधार पर पाया गया है कि जेस्टेशनल डायबिटीज बहुत पहले भी हो सकती है, इसलिए 20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी होने से पहले ही जेस्टेशनल डायबिटीज के लिए जांच करा लेनी चाहिए।

डॉ. मोहन डायबेट्स स्पेसिएलिटी सेंटर चेन्नई को डॉ. वी मोहन भी इस इंटरनेशल स्टडी का हिस्सा थे। डॉ. वी मोहन ने बताया कि इस अध्ययन में 800 से अधिक प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया गया। इनमें से कई की जांच पहले कर ली गई। अच्छी बात यह रही कि जिन प्रेग्नेंट महिलाओं की जांच पहले हो गई और उनमें जेस्टेशनल डायबिटीज की पहचान कर ली गई तो ऐसी महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज को कंट्रोल करने में बहुत आसानी हो गई।

जेस्टेशनल डायबिटीज में होने वाली परेशानी:

डॉ वी मोहन ने बताया कि अगर जेस्टेशनल डायबिटीज का पता चल जाता है तो उसे मैनेज करने में बहुत आसानी होती है। जेस्टेशनल डायबिटीज भी डायबिटीज है लेकिन ये डायबिटीज प्रेग्नेंसी के दौरान ही होती है। इसमें प्लेसेंटल लेक्टोजेन और कॉर्टिसोल हार्मोन बहुत ज्यादा हो जाता है। ये दोनों हार्मोन मिलकर इंसुलिन को अपना काम करने नहीं देते हैं जिससे शुगर का अवशोषण सही से नहीं हो पाता है। इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है। इस स्थिति में बहुत अधिक इंसुलिन की जरूरत होने लगती है। हालांकि जब बेबी डिलीवर हो जाता है तब अपने आप यह बीमारी खत्म हो जाती है।

जब जेस्टेशनल डायबिटीज होती है तो बच्चे का आकार ज्यादा बड़ा हो जाता है। इस कारण जन्म के समय बच्चा बर्थ केनाल में फंस सकता है, इसमें सिर की जगह पहले शोल्डर बाहर आता है। इस स्थिति में तुरंत आईसीयू में भर्ती कराना होता है क्योंकि इससे मां के वेजाइनल एरिया में कई तरह की जटिलताएं आ जाती हैं। स्टडी में पाया गया कि पहले तीन महीनों के अंदर अगर जेस्टेशनल डायबिटीज का पता चल जाता है तो ऐसी जटिलताओं का जोखिम बहुत कम हो जाता है।

FAQs

क्या जेस्टेशनल डायबिटीज डिलीवरी के बाद ठीक हो जाती है?

महिलाओं में प्रसव के तुरंत बाद मधुमेह दूर हो जाता है ।

जेस्टेशनल डायबिटीज टेस्ट कैसे काम करता है?

आपके कम से कम 8 घंटे तक उपवास करने के बाद ओजीटीटी आपके रक्त शर्करा को मापता है ।