नरपतदान चारण
‘शास्त्रोक्त रूप से मनुष्य जीवन में शारीरिक और मानसिक सुस्वास्थ्य सुख का पहला आधार माना गया है। व्यवहारिक जीवन में भी सही अर्थ में देखा जाए तो स्वास्थ्य के बिना धन, संपत्ति, मनोरंजन और अन्य सुविधाएं महत्त्वहीन प्रतीत होती हैं। जो व्यक्ति तन और मन से स्वस्थ होता है, वही संसार का सबसे सुखी प्राणी है। रुग्ण मनुष्य को सब चीजें निराधार लगती हैं। इस लिहाज से सुस्वास्थ्य पहला सुख होता है, लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आप क्या खा रहे हैं, कितना खा रहे हैं, स्वास्थ्य का संबंध केवल इससे नहीं है बल्कि आप क्या सोच रहे हैं और क्या कह रहे हैं स्वास्थ्य का संबंध इससे भी है।
आम तौर पर एक व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट होने पर अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेना कहा जाता है। लेकिन एक व्यक्ति को पूर्णतया स्वस्थ तभी माना जाएगा, जब वह अच्छा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है। यानी लोकप्रिय धारणा के विपरीत स्वास्थ्य का मतलब केवल शारीरिक रूप से फिट और किसी भी बीमारी से मुक्त होना नहीं होता है। इसका मतलब यह भी है कि एक व्यक्ति का समग्र तंदुरुस्त विकास होना चाहिए। इसमें मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत होना, स्वस्थ अंतर-व्यक्तिगत संबंध रखना, अच्छे संज्ञानात्मक कौशल होना और आध्यात्मिक रूप से जागृत होना शामिल है।
स्वस्थ होना एक स्थिति नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है। यह एक प्रक्रिया है। स्वस्थ रहने और अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेने के लिए स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए यह जरूरी है कि खानपान, रहन सहन, स्वच्छता से लेकर मानसिक रूप से सजग रहना होगा। जो लोग सकारात्मकता की सोच से भरे हुए हैं, उनके साथ रहें और अपने आपको परेशानी में डालने की बजाय बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करें। सामाजिक रूप से सक्रिय होने और लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के अलावा अपने भीतर भी झांकना जरूरी है। कुछ समय अपने साथ बिताएं ताकि आप अपनी आवश्यकताओं को बेहतर समझ सकें और सही दिशा में अपना जीवन जी सकें।
उत्तम स्वास्थ्य के कारण जटिल-से-जटिल कार्य भी सरलता से हो सकता है। स्वस्थ मनुष्य में अदम्य साहस, उत्साह और धर्म की भावना प्रचुर मात्रा में भरी होती है। उसमें आत्मविश्वास आता है। जिस कारण उसका हृदय सदैव फूलों के समान खिला रहता है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों के पास स्वास्थ्य रूपी खजाना नहीं होता है, वह धनवान होते हुए भी अपने जीवन को भार समझते हैं। उनके लिए घर में बने स्वादिष्ट व्यंजन जहर के समान होते हैं। वह स्वादिष्ट व्यंजन को खाना तो चाहता है, लेकिन अस्वस्थ होने के कारण खा नहीं पाता।
इस प्रकार यदि सुख के साथ जीना है तो शरीर को स्वस्थ रखना परम आवश्यक है। स्वस्थ रहने के लिए हमें प्राकृतिक चीजों से नाता जोड़ना होगा। अप्राकृतिक चीजों का त्याग करना होगा। स्वस्थ रहने का सबसे आसान मंत्र है- प्रकृति के नियमों का पालन, सद्व्यवहार, कठोर शारीरिक परिश्रम और पौष्टिक, सादा व सात्विक आहार। मद्यपान, अन्य प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन,, दूषित जलवायु में रहना, अनुचित आचरण,तनाव -ये सब चीजें हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। अत: हमें इनसे बचकर अपने जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए। निरोगी काया ही जीवन का पहला सुख माना जाता है।