कुछ महीने पहले इस खबर के साथ प्रिंट और डिजिटल मीडिया में कई लेख आए कि बंगलुरु में भारत का पहला ‘वर्टिकल फॉरेस्ट अपार्टमेंट’ बना है। इसके साथ ही यह बहस भी चल पड़ी कि यह कोशिश क्या ऐसी है कि जिसे गंभीरता के साथ लिया जाए। पर ज्यादातर लेखकों-विशेषज्ञों की राय यही है कि यह न सिर्फ सामयिक दरकार पर खरी उतरनी वाली पहल है बल्कि कई ऐसी चिंताओं से निपटने की दिशा में नवाचारी कदम भी है जिससे शहर और वन का सहअस्तित्व बना रहेगा। जाहिर है कि यह पहल देश में अत्याधुनिक स्थापत्य की समझ को सैद्धांतिक और नीतिगत स्तर पर बदलने का दबाव डाल रही है।

बंगलुरु के सरजापुर मुख्य सड़क पर ‘माना फॉरेस्टा’ नाम से खड़ा चौदह मंजिला ‘वर्टिकल फॉरेस्ट टावर’ एक ऐसी मिसाल बन गया है, जिसमें बहुत खूबसूरती के साथ वनस्पति विज्ञान, जैव निरंतरता और पर्यावरण का एक साथ समावेश करने की कोशिश की गई है। यह आवासीय परियोजना भारतीय शहरों में घरों को लेकर बनी परंपरागत धारणा में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में तारीखी पहल साबित हो सकती है।

‘माना फॉरेस्टा’ एक ऐसी आवासीय बहुमंजिला इमारत है, जो पत्तों, झाड़ियों, पेड़ों और लताओं से हर तरफ से सुसज्जित है। यह अपार्टमेंट इस सोच के साथ बनाया गया है कि इंसान और प्रकृति को ज्यादा से ज्यादा एक-दूसरे के नजदीक लाया जा सके। आधुनिक युग में इन दोनों के बीच टूट चुके संबंधों के कारण परेशानियां इस कदर बढ़ गई हंै कि साल के कुछ महीनों में खासतौर पर लोग महानगरों से दूर पर्यावरण के लिहाज से बेहतर स्थान पर चले जाने को मजबूर हो रहे हैं।

ऐसा देखा गया है कि हम शहरों में अपनी दिनचर्या में से 90 फीसद समय ऐसे घरों के अंदर रहकर बिताने को मजबूर होते हैं, जहां न तो ठीक से सूरज की रोशनी पहुंचती है और न ही स्वच्छ हवा आती है। हरियाली तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ती। यह बीमारियों को सीधे-सीधे न्योता तो है ही, इससे हमारे विचारों में भी नकारात्मकता पैदा होती है। ‘माना फॉरेस्टा’ ने ऐसी तमाम समस्याओं से निजात का रास्ता दिखाया है, जो जीवन और प्रकृति को तो साथ-साथ लाता ही है, साथ ही इस तरह की आवासीय परियोजना शहरी जीवनशैली पर बड़े बदलाव का आकस्मिक बोझ भी नहीं डालता है।