अमेरिका और यूरोपीय देशों ने टीका बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगा दी है। इस फैसले से भारत के टीकाकरण कार्यक्रम को झटका लगने की आशंका है। कोवीशील्ड बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला ने कहा है कि जिन चीजों का निर्यात रोका गया है, उनका उत्पादन भारत में शुरू करने में छह महीने लग सकते हैं।
फिलहाल उन चीजों की आपूर्ति के लिए अमेरिका और यूरोपीय समुदाय के देशों से होने वाले निर्यात पर निर्भर है।
भारत में टीका बनाने के लिए जरूरी सामग्रियों- ‘बैग’, ‘फिल्टर’, ‘एडजुवेंट’ और ‘प्रिजर्वेटिव’ का निर्यात अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों से किया जाता है। टीका बनाने के लिए ये एक तरह से कच्चा माल है। इन्हीं चीजों के निर्यात पर यूरोपीय देशों ने प्रतिबंध लगा दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इन सबमें सबसे ज्यादा जरूरी एडजुवेंट है। बैग और फिल्टर का उत्पादन कुछ समय में भारत में ही शुरू किया जा सकता है या इन्हें किसी दूसरे निर्माता से लिया जा सकता है, लेकिन एडजुवेंट के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता।
दरअसल, परीक्षण के वक्त जो एडजुवेंट इस्तेमाल किया गया था, उसका टीका बनाने की पूरी प्रक्रिया के दौरान एक-सा रहना जरूरी है। अगर एडजुवेंट बदला जाता तो टीके के लिए परीक्षण नए सिरे से करने होंगे और फिर से मंजूरी लेनी होगी। एडजुवेंट एक रसायन होता है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की प्रतिक्रिया को बढ़ा देता है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर टीके के प्रभाव को बढ़ाने के लिए होता है। यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने में मदद करता है, जो एंटीजन से लड़ता है।
अमेरिका और यूरोप ने ये बैन क्यों लगाया? इसके दो कारण हैं।
पहला, कोरोना की दूसरी लहर में हर दिन रिकॉर्ड नए मामले सामने आ रहे हैं। इस वजह से इन देशों में टीके की मांग बढ़ी है। दूसरे, हर देश जल्द से जल्द अपनी ज्यादा से ज्यादा आबादी को टीके देना चाहता है। यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप ने वैक्सीन के कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगा दी है, ताकि पहले उनके देश में ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण हो सके। अमेरिका ने इसके लिए ‘डिफेंस प्रोडक्शन’ कानून लागू कर दिया है। इस कानून के द्वारा अमेरिकी सरकार आपातकालीन स्थितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर औद्योगिक उत्पादनों की सप्लाई और प्रोडक्शन को कंट्रोल कर सकती है।
सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने हाल ही में कहा कि भारत छह महीने में नई वैक्सीन चेन विकसित कर सकता है, लेकिन हमें जरूरत अभी है। छह महीने बाद हम टीका निर्माण के लिए किसी भी देश पर निर्भर नहीं होंगे, लेकिन उसके लिए समय लगेगा। उनका कहना है कि अमेरिका निर्यात पर लगा बैन हटा लेता है तो हमारी उत्पादन क्षमता में 50 फीसद की वृद्धि हो सकती है।
भारत में इस समय कोवैक्सिन और कोवीशील्ड के साथ ही रूसी वैक्सीन स्पुतनिक- वी को भी मंजूरी दे दी गई है। कोवैक्सिन और कोवीशील्ड का रोज का उत्पादन 25 लाख खुराक के करीब का है, जबकि इस समय देश में औसतन 32 लाख खुराक दिए जा रहे है। स्पुतनिक-वी को मंजूरी मिलने के बाद ये आंकड़ा बढ़ सकता है। भारत में रूसी वैक्सीन को डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरी विकसित कर रही है। इसके साथ-साथ हिटरो बायोफार्मा और ग्लैंड फार्मा में भी उत्पादन होगा। भारत में 35.2 करोड़ खुराक सालाना उत्पादन हो सकेगा।