सर्दियां दस्तक देने वाली हैं। मौसम के लिहाज से सांस के रोगियों के लिए यह सचेत हो जाने का समय है। दरअसल, सर्दियों में अस्थमा के मामले बढ़ जाते हैं। इन दिनों ठंडी हवा में सांस लेने के दौरान सांस की नली थोड़ी संकीर्ण हो जाती है।
ठंड के दिनों में बंद कमरे में रहने और हीटर के इस्तेमाल से हवा शुष्क हो जाती है। इससे अस्थमा रोगियों की परेशानी बढ़ जाती है। अस्थमा ऐसा दीर्घकालिक रोग है, जो आसानी से ठीक नहीं होता है। अगर इसका समुचित इलाज न हो, तो मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है।
ठंडी हवाओं के जोखिम
गर्मी और उमस के बाद सर्दियों का मौसम सभी को अच्छा लगता है। इस मौसम में हवाएं बेशक अच्छी लगें, लेकिन सांस के रोगियों के लिए यह सजा बन जाती है। शुष्क और सर्द हवाएं श्वास नलियों में संक्रमण पैदा करती हैं। ऐसे में अगर हवाओं में प्रदूषक तत्त्व घुले हों, तो फिर अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है।
सर्दी से बचने के लिए गांवों में लोग अक्सर आग जलाते हैं, वहीं शहरों में हीटर का इस्तेमाल किया जाता है। अगर कमरे से गर्म हवाओं को निकलने का रास्ता नहीं मिलता, तो सामान्य लोगों के साथ सांस रोगियों के लिए ये खतरनाक साबित होती हैं। धूल के कण गर्म और नम वातावरण में ही पनपते हैं। यह वही समय है जब अस्थमा रोगियों को सतर्क हो जाना चाहिए।
प्रदूषण भी जिम्मेदार
पिछले दो-तीन दशकों में लगातार शहरीकरण और वाहनों की बढ़ती संख्या से वायु प्रदूषण बेतहाशा बढ़ा है। इसी के साथ अस्थमा के मरीज भी बढ़े हैं। मगर इन परिस्थितियों में भी कोई धूम्रपान कर रहा है, तो वह एक तरह से फेफड़े को दोहरी सजा दे रहा है।
ऐसी हालत में अस्थमा होना तय है। यों धूल-मिट्टी के साथ पशु-पक्षियों के बालों से भी समस्या बढ़ सकती है। सर्दियों में सांस फूलने को सामान्य नहीं मनाना चाहिए। इस मौसम में खांसी लगातार बनी रहे, तो सचेत हो जाना चाहिए। इस भ्रम में न रहें कि यह साधारण खांसी है।
लक्षणों पर निगाह
अस्थमा के लक्षण हर मरीज में अलग-अलग होते हैं। शुरुआती दौर में यह आसानी से पकड़ में नहीं आता और समय पर उपचार न होने से रोगी अस्थमा की चपेट में आ जाता है। शुरुआत में खुद मरीज को पता नहीं होता कि वह अस्थमा की चपेट में आ गया है।
किसी चीज से एलर्जी होने पर समझ में आता है कि समस्या गंभीर हो गई है। यों सांस लेते समय घरघराहट और सीटी की आवाज आना भी लक्षण है। मरीज को बोलने में कठिनाई होती है। मरीज थका हुआ महसूस करता है। उसके होंठ नीले पड़ने लगते हैं। रोगी सीने में जकड़न महसूस करता है। उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। अगर ध्यान न दिया जाए, तो निमोनिया का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए सर्दियों में हर उम्र के लोगों को ठंड से बचाव करना चाहिए।
बचाव के रास्ते
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल पटपड़गंज के वरिष्ठ डॉ. प्रवीण कुमार पांडे के मतुबाकि, जहां तक संभव हो मरीज धूल-धुएं और प्रदूषण से दूर रहे। उनका कमरा साफ-सुथरा होना चाहिए। बिस्तर और तकिए पर धूल नहीं होनी चाहिए। कमरे में गद्दा और कालीन पुराना न हो, क्योंकि इनमें जमा धूल अस्थमा मरीजों की तकलीफ बढ़ा देती है। बिस्तर और तकिए साफ-सुथरे हों। मरीज का कमरा हवादार होना चाहिए। वहां जरूरत के हिसाब से गुनगुना या सामान्य तापमान रहे। कमरे में कोई धूम्रपान न करे और न ही वहां कोई छिड़काव किया जाए।
अस्थमा मरीज को घर का बना पौष्टिक और गरम भोजन मिलना चाहिए। आहार में ऐसी कोई चीज न दी जाए जो बलगम बढ़ाते हों। चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवाइयां समय पर दी जानी चाहिए। यों अब बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं। चिकित्सक से परामर्श कर इसे लगवाया जा सकता है। मरीज जब भी घर से बाहर निकले, वह दवाइयां खास तौर से ‘इनहेलर’ अपने पास रखे। अधिक सांस फूलने या अस्थमा का दौरा पड़ने पर तत्काल उपचार में यह काम आता है।
