What is Diabetes Disease: एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 20 साल की आयुवर्ग के युवकों में 65 परसेंट जबकि युवतियों में 56 फीसदी डायबिटीज से पीड़ित होने का खतरा रहता है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक भारत में 9.8 करोड़ लोग टाइप 2 डायबिटीज के घेरे में होंगे। बता दें कि व्यक्ति जो खाना खाते हैं, उसके पचने से शुगर निकलता है। इसी ग्लूकोज से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है, इस प्रक्रिया को पूरी करने में इंसुलिन हार्मोन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पैंक्रियाज से निकलने वाला ये हार्मोन खून में मौजूद ग्लूकोज को प्रभावित करता है, इससे बॉडी सेल्स में ये जमा हो जाते हैं। ब्लड शुगर का स्तर जब शरीर में अनियंत्रित हो जाता है, तो डायबिटीज का खतरा अधिक हो जाता है। इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मददगार होता है लेकिन डायबिटीज के मरीजों के शरीर में इंसुलिन या तो बनता ही नहीं या फिर बॉडी सेल्स इसके प्रति रिस्पॉन्स नहीं दे पाती हैं। ऐसे में खून से सेल्स में शुगर नहीं जा पाता और वहीं रह जाता है।

क्या है टाइप 1 डायबिटीज: बच्चे व बूढ़ों में टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण भी सामने आते हैं। इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन ही नहीं होता है। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के शरीर की कोशिकाएं पैंक्रिएटिक सेल्स जहां इंसुलिन का निर्माण होता है, उन्हें ही खत्म कर देती हैं। इसे ऑटो-इम्युन डिजीज करार दिया जाता है जो कई बार आनुवांशिक कारणों से होती है।

कई बार जन्म से भी लोग टाइप 1 डायबिटीज के मरीज हो सकते हैं, इसे वंशानुगत डायबिटीज भी कहा जाता है। इसके मरीजों को इंसुलिन बाहर से यानि इंजेक्शन के माध्यम से लेना पड़ता है।

डायबिटीज टाइप 2 को ऐसे समझें: मुख्य तौर पर ज्यादातर मामलों में डायबिटीज टाइप 2 मरीज ही दिखते हैं। इस स्थिति में बॉडी सेल्स इंसुलिन को रिस्पॉन्ड नहीं कर पाती हैं, इसके अलावा शरीर में इंसुलिन कम बनना भी डायबिटीज टाइप 2 के कारण हो सकता है। डॉक्टर्स के अनुसार खराब जीवन शैली, मोटापा, ब्लड प्रेशर, स्ट्रेस और नींद की कमी से ये बीमारी लोगों को अपनी चपेट में लेती है।

ज्यादातर व्यस्कों में ही ये बीमारी देखी गई है। इसमें अगर जरूरी हो तो ही इंसुलिन के डोज प्रिस्क्राइब किये जाते हैं, नहीं तो दवाई और स्वस्थ जीवन शैली से भी इसपर काबू पाया जा सकता है।