डिंपल कपाड़िया अपने ज़माने की कामयाब अदाकारा रह चुकी है। साल 1973 में बॉबी फिल्म से लोगों के दिलों पर अपनी छाप कायम करने वाली हीरोइन ने फिक्की फ़्लो जयपुर चैप्टर के साथ बातचीत में बताया कि जब वो किशोरी थीं, वह उस समय कुष्ठ रोग (leprosy) से पीड़ित थीं। डिंपल को 12 साल की उम्र में कोहनी पर लेप्रोसी हुआ था। अदाकारा ने बताया कि इस बीमारी को उस समय अछूत माना जाता था। डिंपल ने बताया कि उनके पिता बहुत सामाजिक आदमी थे जिसके फिल्मों में कई बड़े लोग दोस्त थे।
एक दिन एक दोस्त घर पर आए और बोले कि वह उसे (लेप्रोसी की वजह) से स्कूल से निकलवा देंगे। मैंने पहली बार यह बात सुनी थी तब मैं इस बीमारी के बारे में जानती भी नहीं थी कि इसकी वजह से किसी का सामाजिक बहिष्कार हो जाता है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये बीमारी क्या है जिसे अछूत माना जाता था। आपको बता दें कि लिप्रेसी या कुष्ठ रोग कोई अछूत बीमारी नहीं है बल्कि बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रमण है। हालांकि ये रोग अब पूरी तरह खत्म हो चुका है। लेप्रोसी ऐसा क्रोनिक संक्रमण है जो आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम लेप्रे या माइकोबैक्टीरियम लेप्री मैटोसिस बैक्टीरिया के कारण होता है। आइए जानते हैं कि लेप्रोसी रोग क्या है और इस बीमारी के लक्षण कौन-कौन से हैं और इसका उपचार कैसे किया जाता है।
लेप्रोसी रोग क्या है और यह क्यों होता है?
ग्लेनीगल्स हॉस्पिटल हैदराबाद में एचओडी इंटरनल मेडिसिन में वरिष्ठ सलाहकार चिकित्सा डॉ.हरिचरण ने बताया कि लेप्रोसी रोग किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ लंबे समय तक निकट संपर्क के कारण होता है। WHO के मुताबिक ये रोग मुंह के ड्रॉप्लेट्स के जरिए फैलता है। लेप्रोसी या कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। ये बीमारी माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण होने वाला एक क्रॉनिक संक्रामक रोग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार यह रोग स्किन, पेरीफेरल नर्वस, ऊपरी श्वसन पथ की श्लैष्मिक झिल्ली और आंखों को प्रभावित करता है। लेप्रोसी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सभी उम्र में होता है। इस रोग का इलाज प्रारंभिक अवस्था में कर लिया जाए तो आसानी से इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
लेप्रोसी के लक्षण
डॉ. हरिचरण के अनुसार लेप्रोसी के लक्षणों की बात करें तो इस बीमारी में स्किन पर बदरंग धब्बे होने लगते हैं। प्रभावित हिस्सों में सुन्नपन रहता है और मांसपेशियों में कमजोरी होने लगती है। इस बीमारी में नसें बढ़ने लगती हैं। गंभीर मामलों में यह विकृति पैदा कर सकता है खासतौर पर हाथ, पैर और चेहरे में। ये रोग अंधापन का कारण भी बन सकता है। इस रोग की पहचान बॉडी में दिखने वाले लक्षणों के आधार पर की जाती है। स्किन की बायोप्सी और लेबोरेटरी टेस्ट के जरिए इसकी पुष्टि की जाती है।
उपचार एवं रोकथाम
एक्सपर्ट के मुताबिक इस बीमारी का उपचार मल्टी ड्रग थेरेपी के जरिए होता है जिसमें डैपसोन, रिफैम्पिसिन और क्लोफाजिमिन जैसे एंटीबायोटिक्स शामिल होते हैं। ये दवा बीमारी की गंभीरता के आधार पर छह महीने से एक साल या उससे अधिक समय तक दी जाती है।