मधुमेह के मरीजों को राहत देने के लिए वैज्ञानिक कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ का परीक्षण कर रहे हैं। इससे खासतौर पर उन मरीजों को राहत मिलेगी जो टाइप-2 मधुमेह के मरीज हैं और जिन्हें किडनी के डायलिसिस की जरूरत है। कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ की मदद से मधुमेह के मरीज अपने शरीर में उच्च और निम्न स्तर की शर्करा की मात्रा को नियंत्रित कर सकेंगे। मरीज को अलग से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह परीक्षण कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और स्विटजरलैंड की यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल आॅफ बर्न के वैज्ञानिक कर रहे हैं।
शोध के क्रम में 13 महीने तक 26 मरीजों पर परीक्षण किया गया। शोधकर्ता डॉ. शेरलोट बॉगटन का कहना है, ‘शरीर में उच्च और निम्न स्तर की शर्करा की स्थिति में सबसे ज्यादा खतरा मधुमेह और किडनी के मरीजों को रहता है। इससे निपटने के लिए कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ को तैयार किया गया है।’
इसके ट्रायल के लिए अक्तूबर 2019 और नवंबर 2020 के बीच मधुमेह के 26 ऐसे मरीजों को चुना गया जो डायलिसिस पर थे। इनमें से 13 मरीजों में कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ लगाया गया। वहीं, अन्य 13 को इंसुलिन थैरेपी दी गई। दोनों तरह के मरीजों की तुलना की गई। 20 दिन बाद देखा गया कि मरीजों में शर्करा की बढ़ी हुई मात्रा नियंत्रित हो गई। जर्नल ‘नेचर मेडिसिन’ में छपे शोध के मुताबिक, कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ को एक सॉफ्टवेयर की मदद से संचालित किया जाता है।
यह सॉफ्टवेयर उपयोक्ता के स्मार्टफोन में मौजूद रहता है और मरीज में इंसुलिन नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ को संकेत भेजता है। ग्लुकोज मॉनिटर की मदद से मरीज में रक्त शर्करा का स्तर चेक किया जाता है और उसके मुताबिक सिग्नल भेजे जाते हैं। अब स्वस्थ किडनी वाले मरीजों में परीक्षण हो रहा है। यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल आॅफ बर्न की शोधकर्ता डॉ. लिया बेली कहती हैं, कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ की मदद से मरीज अपनी गंभीर बीमारी को खुद नियंत्रित कर सकेंगे। अब इसका परीक्षण ऐसे लोगों पर किया जा रहा है जो मधुमेह से तो पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें डायलिसिस की जरूरत नहीं है। जल्द ही इसके नतीजे जारी हो सकते हैं।
मधुमेह के रोगियों के मामले में ‘इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की अन्य एक शोध में पाया गया है कि बाजरे के इस्तेमाल से 15 फीसद तक रक्त शर्करा घटा सकते हैं। यह स्वस्थ लोगों में भी टाइप-2 मधुमेह का खतरा कम करता है। ऐसे लोग, जो स्वस्थ हैं और बाजरे को खानपान में शामिल करते हैं उनमें इस बीमारी की आशंका कम हो जाती है। यह दावा इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी एसिड ट्रॉपिक ने अपने हाल के शोध में किया है। ‘फ्रंटियर्स इन न्यूट्रिशन’ जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, बाजारा का औसत ‘ग्लाइसीमिक इंडेक्स’ 52.7 होता है।
यह चावल और रिफाइंड गेहूं के मुकाबले 30 फीसद तक कम होता है। वहीं, मक्के के मुकाबले भी बाजरे का ग्लाइसीमिक इंडेक्स कम होता है। किसी चीज का ग्लाइसीमिक इंडेक्स जानकर पता लगाया जा सकता है वो चीज ब्लड शुगर लेवल कितना बढ़ाएगी और कितने समय में बढ़ाएगी। इसीलिए चावल, गेहूं और मक्के का ग्लाइसीमिक इंडेक्स बाजरे से ज्यादा होने के कारण इनसे ब्लड शुगर बढ़ने का खतरा ज्यादा है।
इंडियन नेशनल बोर्ड आॅफ न्यूट्रीशन के प्रतिनिधि और शोधकर्ता डॉ. राज भंडारी का कहना है, शोध के दौरान अनाज को उबालकर, बेक करके और भाप में पकाकर देखा गया है। इसके बाद सामने आए नतीजों को पेश किया गया है। इंसान का खानपान मधुमेह को नियंत्रित करने में अहम भूमिका अदा करता है।
वैज्ञानिकों ने कृत्रिम ‘पैंक्रियाज’ विकसित किया है। यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करेगा और बार-बार इंसुलिन का सुई लेने से मिलेगी मुक्ति। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और स्विटजरलैंड की यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल आॅफ बर्न के वैज्ञानिकों ने इसे विकसित किया है। इसकी मदद से मधुमेह के मरीज अपने शरीर में उच्च और निम्न स्तर की शर्करा की मात्रा को नियंत्रित कर सकेंगे।