पिछले कुछ सालों में कोलन कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है, खासकर 50 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में ये बीमारी तेजी से पनप रही है। कुछ सालों पहले तक इसे बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह युवाओं को तेजी से प्रभावित कर रही है। कोलन कैंसर बड़ी आंत (कोलन) में होने वाला कैंसर है, जो पाचन तंत्र के अंतिम भाग में विकसित होता है। यह आमतौर पर पॉलीप्स के रूप में शुरू होता है, जो कोलन की अंदरूनी सतह पर बनते हैं। अगर समय रहते इसका पता नहीं चले तो कुछ पॉलीप्स कैंसर में बदल सकते हैं। इस कैंसर के लिए खानपान की कई आदतें और खराब लाइफस्टाइल जिम्मेदार है। आनुवंशिक कारण और खराब इम्यूनिटी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोपी की जाती है जो काफी तकलीफदायक और असहज महसूस कराती है।

वैज्ञानिकों ने अब कोलन कैंसर का पता लगाना के लिए एक नई तकनीक का इजाद किया है। एक बेहद साधारण ब्लड टेस्ट की मदद से अब कोलन कैंसर का सटीक पता लगाने में मदद मिलेगी। इस ब्लड टेस्ट की मदद से न केवल कोलन कैंसर का प्रभावी रूप से पता लगाया जाएगा बल्कि हेल्दी लोगों में ये बीमारी हो सकती है या नहीं इस बात का भी पता लगेगा। आइए जानते हैं कि ये टेस्ट कैसे असरदार साबित हो सकता है।

कोलन कैंसर का पता लगाने में ये टेस्ट कैसे असरदार है?

ये अध्ययन 2025 अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर संगोष्ठी में प्रस्तुत किया गया है। ये टेस्ट कोलन कैंसर का पता लगाने के पारंपरिक तरीकों से ज्यादा आसान और सुविधाजनक है। ये ब्लड टेस्ट कैसे असरदार है इस बात का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने रिसर्च में कोलन कैंसर से ग्रस्त लोगों को शामिल किया।  रिसर्च के मुताबिक 81% मरीजों में इस टेस्ट की मदद से बीमारी की सटीक पहचान हुई। इस ब्लड टेस्ट से समय रहते कैंसर का पता लगाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

वैज्ञानिकों ने बताया इस खास तरह के ब्लड टेस्ट से ट्यूमर से रक्त प्रवाह में रिलीज किए गए डीएनए का पता लग सकता है। रिसर्च के मुताबिक इस नए टेस्ट को 87% तक सटीक पाया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक ये टेस्ट प्री कैंसर घावों का पता लगाने में कम सफल है। लेकिन इस टेस्ट की मदद से कोलन कैंसर का शुरुआत में ही पता लगाने में काफी मदद मिलेगी।

ब्लड टेस्ट पर रिसर्च में लगी मुहर

येल स्कूल ऑफ मेडिसिन में जीआई मेडिकल ऑन्कोलॉजी की प्रमुख डॉ. पामेला कुंज ने बताया ये टेस्ट कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग के लिए एक नया और आसान विकल्प है।  शोधकर्ताओं ने अमेरिका के 200 स्थानों पर 45 से 85 साल के 40,000 से अधिक लोगों पर अध्ययन किया। रिसर्च में शामिल लोगों का पहले ब्लड टेस्ट किया गया, फिर कोलोनोस्कोपी की गई।

शोधकर्ताओं ने परिणामों की तुलना करके ब्लड टेस्ट की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया। रिसर्च में पाया गया कि 81% मरीजों में इस टेस्ट की मदद से बीमारी की सटीक पहचान हुई। वैज्ञानिकों ने बताया इस खास तरह के ब्लड टेस्ट से ट्यूमर से रक्त प्रवाह में रिलीज किए गए डीएनए का पता लग सकता है। इस ब्लड टेस्ट से समय रहते कैंसर का पता लगाने में मदद मिलने की उम्मीद है। 

पारम्परिक कोलोनोस्कोपी कैसे की जाती है?

कोलोनोस्कोपी काफी असुविधाजनक होती है। इसे करने के लिए मरीज को बाउल प्रिपरेशन से गुजरना पड़ता है। इस टेस्ट को करने के लिए मरीज को बेहोश किया जाता है और फिर कुछ टूल्स की मदद से कैमरे को मलद्वार में प्रवेश कराया जाता है और फिर जांच की जाती है। ये पूरी प्रक्रिया काफी असहज और टाइम टेकिंग है।  ये ब्लड टेस्ट कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग का एक सुविधाजनक और प्रभावी विकल्प प्रदान कर सकता है।

सुबह उठते ही हल्दी और नीम की 2 गोली को खा लें, बॉडी में जमा सारे कीटाणु हो जाएंगे खत्म, गट हेल्थ रहेगी दुरुस्त। इन दोनों हर्ब की पूरी जानकारी हासिल करने के लिए आप लिंक में क्लिक करें।