ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसी परेशानी है जो कम उम्र में ही महिलाओं को अपना शिकार बना रही है। देश और दुनियां में 30 से 40 साल की उम्र की महिलाएं इस बीमारी का शिकार हो रही हैं। भारत में, 2018-23 के लगभग 150,000 स्क्रीनिंग के डेटा के अनुसार 25% से अधिक मामले उन महिलाओं के थे जो 40 वर्ष से कम उम्र की थीं। ब्रैस्ट कैंसर उस स्थिति को कहते हैं जहां ब्रैस्ट की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती हैं और एक ट्यूमर यानी गांठ का रूप ले सकती हैं, जो आगे बढ़कर आसपास के लिम्फ़-नोड्स या आस-पास के अंगों तक फैल सकती हैं।

World Health Organization(WHO) के मुताबिक इस बीमारी के  प्रमुख जोखिम-कारक हैं उम्र बढ़ना, फैमिली हिस्ट्री, अनियमित जीवनशैली, मोटापा, अधिक शराब, धूम्रपान, शारीरिक निष्क्रिया। भारत में 30-40 साल की उम्र में ही ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ने लगे हैं जिसके लिए हार्मोनल कारण जैसे देर से शादी, कम-प्रसव, देर से पीरियड होना और देर मे मेनोपॉज़ होना शामिल है।

ब्रैस्ट कैंसर की स्टेज

National Breast Cancer Foundation के मुताबिक 0 से 4 साल में बांटा गया है, जहां स्टेज 0-1 सबसे आरंभिक और स्टेज 4 चौथी स्टेज होती है जिसमें कैंसर बॉडी के दूर के अंगों जैसे हड्डियों, लिवर, फेफड़े, मस्तिष्क तक फैल चुका होता है। इसे मेटास्टैटिक ब्रैस्ट कैंसर कहते हैं। इस स्टेज में 5-साल की सर्वाइवल रेट लगभग 30-32% के आसपास है। अगर ब्रैस्ट कैंसर जल्दी पकड़ लिया जाए तो छोटी उम्र या शुरुआती स्टेज में तो इसका इलाज और बचाव दोनों संभव हो सकता है।

मैक्स हेल्थकेयर, साकेत और गुड़गांव मेडिकल ऑन्कोलॉजी में प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ. भुवन चुग ने बताया अर्ली ब्रेस्ट कैंसर वाली महिलाओं के लिए इलाज सिर्फ बीमारी खत्म करना नहीं, बल्कि जिंदगी की क्‍वॉलिटी बचाना भी है। एक्सपर्ट ने बताया आज की एडवांस थेरेपी से महिलाएं इलाज के दौरान एनर्जेटिक और आत्मविश्वास बनाए रख सकती हैं। महिलाएं इलाज के दौरान खास तरीके अपनाएं तो न सिर्फ बीमारी को मात दे सकती हैं बल्कि मानसिक सेहत को भी दुरुस्त कर सकती है। अगर आप पहली स्टेज में ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोज हुई है तो इन 5 बातों का ध्यान रखें।

इलाज का सही प्लान चुनें

इलाज का सही प्लान बेहद जरूरी है। हर महिला में ब्रेस्ट कैंसर की स्थिति अलग होती है, जो ट्यूमर की बनावट, लिम्फ नोड्स की भागीदारी, उम्र और जेनेटिक कारणों पर निर्भर करती है। रिसर्च के मुताबिक, हर 6 में से 1 महिला में 4 साल के भीतर दोबारा कैंसर लौटने का खतरा होता है। इसलिए डॉक्टर की सलाह से सही इलाज चुनना जरूरी है। नई एडवांस थेरेपी से डॉक्टर थकान, दर्द और डायरिया जैसे साइड इफेक्ट्स को कम कर सकते हैं और दोबारा कैंसर होने का खतरा घटा सकते हैं। ये थेरेपीज़ महिलाओं को इलाज के दौरान भी सक्रिय और सामान्य जीवन जीने में मदद करती हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन से तरीके अपनाकर ब्रेस्ट कैंसर को मात दी जा सकती है। 

आराम और रिकवरी को प्राथमिकता दें

आराम और रिकवरी को प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है। शुरुआती ब्रेस्ट कैंसर का इलाज शरीर और मन दोनों को थका देता है, इसलिए खुद को आराम देना कमजोरी नहीं, बल्कि ठीक होने की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। अपने शरीर की बात सुनें, पर्याप्त नींद लें और बीच-बीच में विराम जरूर दें। हल्की वॉकिंग या योग जैसे सरल व्यायाम करें, ये शरीर में ऊर्जा और मन में शांति बनाए रखते हैं। याद रखें  धीरे-धीरे चलना भी रिकवरी की ओर बढ़ने का एक मजबूत कदम है।

प्रैक्टिकल और इमोशनल सपोर्ट है जरूरी

अगर बीमारी को हराना है, तो अपने सपोर्ट सिस्टम से जुड़े रहना बेहद जरूरी है। परिवार और दोस्त न सिर्फ हौसला बढ़ाते हैं, बल्कि ब्रेस्ट कैंसर से जूझने में मजबूत सहारा बनते हैं। अपनी ज़रूरतों, भावनाओं और सीमाओं के बारे में खुलकर बात करें, ताकि आपको भावनात्मक और व्यवहारिक दोनों तरह का सहारा मिल सके। कभी-कभी बच्चों की देखभाल में मदद, अस्पताल अपॉइंटमेंट पर साथ जाना या बस कुछ पल साथ बिताना बहुत फर्क डाल देता है। मजबूत सपोर्ट सिस्टम से अकेलापन कम होता है और मन में सकारात्मकता बनी रहती है।

इमोशनल हेल्थ का ध्यान रखें

कैंसर का पता चलने पर चिंता, डर और तनाव महसूस करना बिल्कुल स्वाभाविक है। लेकिन जैसे शारीरिक इलाज जरूरी है, वैसे ही भावनात्मक देखभाल भी उतनी ही अहम है। मेडिटेशन, माइंडफुलनेस, थेरेपी या डायरी लिखने जैसी तकनीकें मन को शांत करने में मदद करती हैं। सपोर्ट ग्रुप्स चाहे ऑनलाइन हों या आमने-सामने अपने अनुभव साझा करने, नई coping strategies सीखने और हौसला पाने का बेहतरीन जरिया हैं। अगर महिलाएं शुरुआत से ही अपनी इमोशनल हेल्थ का ध्यान रखें, तो वे इलाज की चुनौतियों का अधिक आत्मविश्वास और नियंत्रण के साथ सामना कर सकती हैं।

खुशी को तलाशें

इलाज के दौरान भी जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को अपनाना बहुत जरूरी है। किताबें पढ़ना, पेंटिंग करना, पसंदीदा संगीत सुनना, बाहर टहलना या अपनों के साथ समय बिताना, ये सब आपको याद दिलाते हैं कि ज़िंदगी सिर्फ बीमारी तक सीमित नहीं है। खुशी को प्राथमिकता देने से सोच सकारात्मक रहती है और मन मजबूत बनता है। अर्ली ब्रेस्ट कैंसर के साथ जीने का मतलब है इलाज और अच्छी जिंदगी के बीच संतुलन बनाना। दोबारा बीमारी के डर को समझकर, सही दवाएं चुनकर, मानसिक सेहत का ख्याल रखकर और अपने सपोर्ट सिस्टम से जुड़े रहकर महिलाएं इलाज पूरा कर सकती हैं और बीमारी को रिवर्स कर सकती हैं। 

हड्डियों को गला देती है ये बीमारी, हाथ-पैरों और दांतों पर भी दिखता है इसका असर, जानिए Osteoporosis की पहचान और बचाव। पूरी जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें।