कुमार कृष्णन
21 जून को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला योग दिवस एक अद्भुत वैश्विक घटनाक्रम है, भारत की प्राचीनतम विद्या शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक सद्भाव बढ़ाने में कारगर है। इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2023 की थीम वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत के साथ वन वर्ल्ड, वन हेल्थ रखी गई है।
योग को वैश्विक धरातल पर स्थापित करने में बिहार योग पद्धति का महत्त्वपूर्ण योगदान है। बिहार योग पद्धति की व्यापकता पूरी दुनिया में है। फ्रांस में तो किंडर गार्डन से लेकर स्रातकोत्तर के पाठ्यक्रम में बिहार की यह पद्धति शामिल है। बिहार योग परंपरा विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती एवं उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस निरंजनानंद सरस्वती द्वारा विकसित एवं प्रतिपादित योग की प्रणाली है।
जो प्राचीन सन्यास परंपरा से प्राप्त सांख्य, वेदांत, योग और तंत्र के बाडंमय पर आधारित है। बिहार योगप्रणाली की जड़ें हिमालय की तराई में अवस्थित ऋ षिकेश में है, जहां प्रख्यात योगगुरु स्वामी शिवानंद ने योग की सामंजस्यपूर्ण अवधारणा की शिक्षा दी। स्वामी शिवानंद के आदेश और प्रेरणा के स्वरूप मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की 1963 में स्थापना की।
बिहार योग प्रणाली, योग की ऐसी परंपरा है जो शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है। बिहार योग में ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, हठयोग राजयोग, कुण्डलिनी योग और क्रियायोग के प्रति समेकित दृष्टिकोण है, जिसके आधार पर योगाभ्यासी जीवन के विभिन्न पहलुओं को सुगठित कर सकता है।
दरअसल में सकारात्मक परिवर्तन एक स्वभाविक प्रकिया है, जो नियमित अभ्यास से घटित होता है। बिहार योग पद्धति शास्त्रानुगत हठयोग और राजयोग की तकनीकों द्वारा शारीरिक एव मानसिक संतुलन एवं स्वास्थ्य के विकास में सहायक होता है। वही प्रत्याहार, घारणा, ध्यान, मंत्रयोग, कर्मयोग, राजयोग एवं भक्तियोग के क्रमवद्ध विकास द्वारा मानसिक एवं भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है। शास्त्रीय क्रियाओं और कुडलिनी योग द्वारा आत्मान्वेषणत्मक और अंत:जागरण में सक्षम बनाने में सहायक होता है।
एक सामान्य व स्वस्थ व्यक्ति के लिए कुछ ही आसन पर्याप्त है। पहला है ताड़ासन। ताड़ासन के अभ्यास से अस्थियों और मेरूदंड में जमा तनाव और दबाव मुक्त हो जाता है। यह खिंचाव का अभ्यास है, जिससे विभिन्न प्रकार के जोड़ों से दबाव दूर होता है। दूसरा आसन निर्यक् ताड़ासन है। यह एक सरल पर बेहद लाभदायक अभ्यास है। इसमें पीठ की एक तरफ तो खिंचाव होता है और दूसरी ओर दबाव पड़ता है, जिससे दोनों तरफ का तनाव मुक्त हो जाता है।
तीसरा आसन है कटि-चक्रासन, जिसमें हम अपने मेरूदंड को मोड़कर शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को निचोड़ते हैं। इससे शरीर के प्रत्येक अंग, पेशी और जोड़ में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है। चौथा अभ्यास है सूर्य नमस्कार, जिसमें मुख्यत: आगे और पीछे झुकने वाले आसन हैं। इन चार अभ्यासों द्वारा हम शरीर को पांच तरह की अवस्थाओं में लाते हैं झ्र सीधा तानना, पार्श्व की ओर झुकना, मोड़ना, आगे झुकना और पीछे झुकना।
इन सब अभ्यासों के बाद केवल एक ही आसन करने की जरूरत रहती है झ्र शरीर को उल्टा करने वाला आसन। यह शरीर पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को विपरीत करने के लिए किया जाता है। लेकिन इस समूह के आसन थोड़े कठिन होते हैं।
पांच आसनों के अभ्यास के बाद प्रतिदिन दो प्राणायाम जरूरी हैं। पहला है नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसमें दोनों नासिकाओं से बारी-बारी से श्वास लिया और छोड़ा जाता है। यह तंत्रिका प्रणाली की गतिविधियों को संतुलित करने के लिए बहुत प्रभावशाली अभ्यास है, क्योंकि इसके द्वारा अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में संतुलन आता है और प्राणिक अवरोध दूर होते हैं।