अभी कोरोना का प्रकोप कम नहीं हुआ है, आए दिन कहीं न कहीं नये वैरिएंट को लेकर कोई न कोई खबर आ ही जाती है। भारत की बात करें तो कोरोना (Corona) महामारी भले ही एंडेमिक स्टेज में पहुंच गई है, लेकिन जाते-जाते अपने पीछे कई अन्य बीमारियों को काफी बढ़ा दिया है। कोरोना काल में सबसे ज्यादा कुछ प्रभावित हुआ है तो वह है रोग प्रतिरोधक क्षमता, इससे लोगों में हार्ट और फेफड़े की बीमारियां बढ़ गई हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना की वजह से अब ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) (Tuberculosis) के मामले भी बढ़ने लगे हैं। फेफड़ों की टीबी सबसे आम संक्रामक बीमारी में से एक माना जाता है। लेकिन टीबी सिर्फ फेफड़े को नहीं बल्कि शरीर के अन्य दूसरे अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। दूसरे अंगों में होने वाली टीबी को एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। हालांकि एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी संक्रामक नहीं होती है। डबल्यूएचओ के मुताबिक इस बीमारी एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी से लगभग 20 से 30 प्रतिशत लोग पीड़ित होते हैं। इसके अलावा एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी का एक रूप पेल्विक टीबी है जिसके कारण महिलाओं में बांझपन की समस्या हो सकती है।

सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि कोरोना के बाद से टीबी के मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें भी सबसे ज्यादा कम उम्र के लोग टीबी के गिरफ्त में आ रहे हैं। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दुनिया भर में टीबी से हर दिन 4100 लोग अपनी जान गंवाते हैं। हर साल 1.22 करोड़ लोग इससे पीड़ित होते हैं। ये बीमारी शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर देती है।

जनसत्ता डॉट कॉम से बात करते हुए दिल्ली के मूलचंद हॉस्पिटल के पल्मोनरी विभाग के डॉक्टर भगवान मंत्री ने बताया कि कोरोना के बाद से अस्पतालों में कई ऐसे मरीज सामने आ रहे हैं जो गंभीर रूप से टीबी से पीड़ित हो चुके हैं लेकिन उम्र काफी कम है। उन्होंने यह भी बताया कि यह बीमारी उनके फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा रही है।

युवाओं में तेजी से पैर पसार रही है यह बीमारी

डॉक्टर भगवान मंत्री ने बातचीत में बताया कि टीबी के ऐसे केसेज पहले युवाओं में बहुत कम आते थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों से 22 से 30 वर्ष के उम्र वाले युवाओं में 15 से 20 मरीज आ चुके हैं। डॉक्टर का कहना है कि खांसी या निमोनिया के लक्षण होने के बावजूद सामान्य सर्दी जुकाम मानकर इलाज कराने वालों में टीबी की बीमारी गंभीर स्थिति में हो गई। उनका कहना है कि कुछ मरीज ऐसे आए जिन्होंने खांसी और जुकाम का इलाज कराया नहीं ठीक हुआ तो मरीज अस्पताल आए; जांच करने पर कि ये टीबी से पीड़ित हैं। डॉक्टर के मुताबिक इन सभी को कई सप्ताह से खांसी आ रही थी।

रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर पड़ने से बढ़े केस

डॉ भगवान के कहा, “कोरोना के बाद से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है, जिससे फेफड़ों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। इस वजह से लोग आसानी से टीबी की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि जो लोग हाल फिलहाल में कोरोना से रिकवर हुए हैं और उनको खांसी बनी हुई है, तो वे अपने फेफड़ों की जांच करा लें।”

टीबी को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी

डॉक्टर भगवान मंत्री ने बताया, “लोगों में टीबी को लेकर जागरूकता की कमी है, लोगों को इसके लक्षणों के बारे में सही जानकारी न होने के कारण, सामान्य फ्लू मानकर एंटीबायोटिक टैबलेट लेने लगते हैं, जिसके कारण भी कई बार आगे चलकर समस्याएं बढ़ जाती हैं। अभी कई मरीज ऐसे आए जिनका लंग्स 30 से 40 प्रतिशत तक डैमेज था, कुछ के कम होते हैं इसीलिए वह लापरवाही करते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि अगर किसी भी व्यक्ति को लगातार दो सप्ताह तक खांसी बनी हुई है, तो ये टीबी का लक्षण हो सकता है। इसलिए अपने नजदीकी अस्पताल में किसी अच्छे पल्मोनोलॉजिस्ट को जरूर दिखाएं।

टीबी के कौन-से लक्षण होते हैं? ( symptoms of TB)

  • थकान
  • बुखार
  • तीन या उससे ज्यादा हफ्तों से खांसी
  • खांसी में खून आना
  • खांसते या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना
  • अचानक वजन घटना
  • ठंड लगना
  • सोते हुए पसीना आना

टीबी के लिए इलाज क्या है?

डॉक्टर भगवान मंत्री के कहा, “पहले तो हमें इसके लक्षणों को पहचनना होगा। कई बार निमोनिया का टेस्ट करने के लिए बलगम का जांच करते हैं, उसमें नहीं पकड़ में आता है तो Bronchoscopy (ब्रोंकोस्कोपी) करना पड़ता है। लेकिन टीबी से बचने का सबसे सही उपाय है कि लगातार दो हफ्ते की खांसी पर नजदीकी अस्पताल में बलगम की जांच करवाएं और टीबी पकड़ आने पर शुरुआती दिनों में डॉक्टर कुछ दवाइयां देते हैं, ये दवाइयां पीड़ित व्यक्ति के शरीर में जाकर टीबी के टिशू को खत्म करती हैं जिससे यह शरीर के अन्य भागों में ना फैले।”

आगे उन्होंने बताया कि टीबी का बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करता है और धीरे-धीरे फेफड़े में चला जाता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण टीबी के बैक्टीरिया तेजी से मल्टीप्लाई होने लगते हैं और धीरे-धीरे दिमाग तक पहुंच जाते हैं। इसके बाद हालत गंभीर होने लगती है।