हारमोनियम (Harmonium) भारत में निर्विवादित रूप से लोकप्रिय एक संगीत वाद्य यंत्र रहा है। बावजूद इसके हारमोनियम के भारतीय होने पर कई दशक तक संदेह रहा, कई समूह आज भी ऐसा मानते हैं। 1900 के दशक की शुरुआत में जब स्वतंत्रता संग्राम गति पकड़ रहा था, तब यह बहस छिड़ गई कि हारमोनियम भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए उपयुक्त है या नहीं?

गांधी के स्वदेशी मूवमेंट के दौरान हारमोनियम के खिलाफ और माहौल बन गया। अंतत: ऑल इंडिया रेडियो के वेस्टर्न म्यूजिक विंग के हेड द्वारा लिखे एक लेख के बाद साल 1940 में AIR पर हारमोनियम करीब तीन दशक के लिए बैन कर दिया गया। यह बैन 1971 में आंशिक रूप से हटा। बाद में पूरी तरह हटा।

भारत में ईसाई मिशनरी लाए हारमोनियम

1700 के दशक में हारमोनियम का आविष्कार यूरोप में हुआ था। कई बदलावों से गुजरने के बाद यह वह उपकरण बन गया जिसे हम आज जानते हैं। ऐसा माना जाता है कि पहला प्रोटोटाइप कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर क्रिश्चियन गोटलिब क्रैटज़ेनस्टीन ने बनाया था। इसके बाद बदलाव कई हुए और 1842 में एलेक्जेंडर डेबेन नाम के एक फ्रांसीसी आविष्कारक ने अपने डिजाइन का पेटेंट कराया और इसे ‘हारमोनियम’ नाम दिया। यह एक फुट-पम्प वाला हारमोनियम था। बाद में हारमोनियम को चर्च ने अपने घरेलू वाद्य यंत्र के रूप में अपना लिया।

19वीं सदी के उत्तरार्ध में पश्चिमी व्यापारियों या मिशनरियों द्वारा हारमोनियम को भारत लाया गया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, भारतीय हैंड-पंप हारमोनियम को 1875 में कोलकाता में द्वारकानाथ घोष द्वारा डिजाइन किया गया था।

1915 तक भारत हारमोनियम का अग्रणी निर्माता बन गया था और यह वाद्ययंत्र भारतीय संगीत का एक अभिन्न अंग बन गया था। आज के हारमोनियम में 12 सुर और 22 श्रुतियां तक बजाई जा सकती हैं।

हालांकि, भारतीय शास्त्रीय संगीत विद्वानों का एक वर्ग इस बात पर ध्यान देता रहा कि हारमोनियम सभी रागों को ठीक से प्रस्तुत करने और सभी शास्त्रीय स्वरों को पूर्णता के साथ प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में हारमोनियम से जुड़े अवगुणों के बारे में बात करते हुए रविंद्र काटोटी (प्रसिद्ध हारमोनियम वादक) कहते हैं, “सीमा एक सार्वभौमिक तथ्य है। हर आवाज़, हर वाद्ययंत्र की अपनी सीमा होती है। जब आप किसी रेस्तरां में जाते हैं तो पूछते हैं कि क्या उपलब्ध है। आप यह मत पूछिए कि मेनू में क्या नहीं है।”

हारमोनियम आज भारत की लगभग हर प्रमुख संगीत शैली में स्थान बना चुका है। इसे सिखों, हिंदुओं, मुसलमानों और अन्य लोगों के भक्ति संगीत से लेकर लोक संगीत, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, बॉलीवुड और यहां तक कि रेलवे प्लेटफार्म पर भिखारियों द्वारा भी बाजया जाता है।

क्यों लगा प्रतिबंध?

हारमोनियम भारतीय है या नहीं, यह भारतीय संगीत के लिए उपयुक्त है या नहीं… इस चर्चा के बीच हारमोनियम को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बहुमुखी प्रतिभा के धनी नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने भी यह मान लिया कि यह वाद्य यंत्र दोलनशील गामाका नोट्स नहीं बजा सकता। यह बात उस टैगोर ने कही जो पूर्वी और पश्चिमी देशों की कलाओं के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते थे।

इसके बाद एक साहित्यकार ने आकाशवाणी कोलकाता को पत्र लिखकर स्टूडियो में हारमोनियम बंद करने की मांग की। ऑल इंडिया रेडियो के वेस्टर्न म्यूजिक विंग के हेड जॉन फोल्ड्स ने अपने एक लेख में बताया कि हारमोनियम माइक्रोटोन पर मूक था जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए बहुत आवश्यक था। प्रसारण नियंत्रक के रूप में लियोनेल फील्डेन फोल्ड्स के तर्क से सहमत हुए और 1 मार्च 1940 को आकाशवाणी ने हारमोनियम पर प्रतिबंध लगा दिया।

संगीतज्ञ अभिक मजूमदार का कहना है कि कला इतिहासकार आनंद कुमारस्वामी और यहां तक कि एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जवाहरलाल नेहरू ने भी हारमोनियम को गैर-भारतीय पाया। मजूमदार कहते हैं कि इस वाद्ययंत्र पर प्रतिबंध, विद्वान गायक वीएन भातखंडे के छात्र रहे सूचना और प्रसारण मंत्री बीवी केसकर के रवैये के कारण आजादी के बाद भी जारी रहा।