नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अगुआई में जबसे भाजपा (BJP) की सरकार बनी है, नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) पर बीजेपी का फोकस काफी बढ़ गया है। इस साल (2023) नेताजी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक म्यूजियम के मॉडल (Model Of Proposed Memorial) का उद्घाटन किया। सुभाष चंद्र बोस को समर्पित यह म्यूजियम अंडमान (Andamans) निकोबार में रॉस आइसलैंड पर बनाया जाएगा। इस आइसलैंड को भी 2018 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप का नाम दिया गया था। बीजेपी के अन्य नेता भी नेताजी की जयंती पर कार्यक्रमों में शरीक होते हैं और बयान देते हैं कि आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों ने नेताजी के योगदान को भुला दिया।
नेताजी और नरेंद्र मोदी
- 2014 में जब नरेंद्र मोदी केंद्रीय राजनीतिक फलक पर आए तो लोकसभा चुनाव के वक्त उन्होंने मार्च 2014 में वादा किया कि सत्ता में आऊंगा तो नेताजी की अस्थियों को भारत लाऊंगा।
- प्रधानमंत्री बनने के बाद 14 अक्तूबर 2015 को नेताजी के परिवारजनों को पीएम आवास बुला कर नेताजी से जुड़े गुप्त दस्तावेज सार्वजनिक करने का वादा किया और 2 मार्च, 2016 को सरकार ने सदन में बताया कि सभी 304 फाइलें सार्वजनिक कर दी गई हैं।
- 21 अक्तूबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद हिंद सरकार के गठन के 75 साल पूरे होने पर लाल किले से तिरंगा फहराया। इससे पहले 15 अगस्त के अलावा किसी और मौके पर कभी लाल किले पर किसी प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय झंडा नहीं लहराया था।
- 2018 में ही 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने अंडमान के हैवलॉक आइसलैंड का नाम स्वराज द्वीप और नील आइसलैंड का नाम शहीद द्वीप व रॉस आइसलैंड का नाम सुभाष चंद्र बोस द्वीप कर दिया।
- 2019 में सालाना 51 लाख रुपए का सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार शुरू किया।
- 2021 में 23 जनवरी को नेताजी की 125वीं जयंती वर्ष शुरू होने पर उनकी तस्वीर वाला 75 रुपए का सिक्का भी लॉन्च किया गया।
- नेताजी की 125वीं जयंती भव्य तरीके से मनाई गई। इसके लिए प्रधानमंत्री ने 85 सदस्यों की भारी-भरकम समिति बनाई थी। 2021 में सरकार ने
- नेताजी के जन्म दिन (23 जनवरी) को हर साल पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
- 2022 में इंडिया गेट पर नेताजी की 23 फीट ऊंची काले ग्रेनाइट पत्थर की प्रतिमा का अनावरण 2022 से गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत 23 जनवरी से ही की जाने लगी, ताकि नेताजी का जन्मदिन भी इस समारोह का हिस्सा बन जाए।
- 2023 में अंडमान निकोबार में बनने वाले नेताजी को समर्पित म्यूजियम के मॉडल का प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन किया।
बीजेपी के आरोप
बीजेपी के नेता कहते रहे हैं कि सुभाष चंद्र बोस को आजादी के बाद से ही सरकारों ने भुलाने की कोशिश की। इस बार भी नेताजी की जयंती पर केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बयान दिया-
आजादी के बाद की तमाम सरकारों ने नेताजी को भुला देने की कोशिश की। उनके योगदान का जिक्र कभी नहीं किया गया।
बीजेपी के आरोपों में कितना दम?
यह तथ्य है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बतौर प्रधानमंत्री लाल किले से अपने पहले भाषण में ही सुभाष चंद्र बोस के योगदान का जिक्र किया था। यही नहीं, 1947 में देश की आजादी के तुरंत बाद तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी और बेटी की आर्थिक मदद के लिए पहल की थी। तब नेताजी का परिवार विएना में था। 1952 से 1954 के बीच उनकी मदद के लिए सरकार में काफी पत्राचार हुआ था। 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने जो दस्तावेज सार्वजनिक किए, उनसे ये बातें सामने आईं। 12 जून, 1952 को नेहरू ने वित्त व विदेश मंत्रालयों की राय पूछते हुए सुभाष चंद्र बोस की पत्नी को विएना में मदद भेजने का प्रस्ताव भेजा था। वित्त मंत्रालय ने इसे मंजूर कर लिया था। सौ पाउंड देने का फैसला हुआ था।
बेटी को शादी तक मिली मदद
नेता जी की बेटी अनीता बोस की मदद के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया था। पं. नेहरू और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम बीसी रॉय उसके ट्रस्टी थे। अनीता बोस के 21 साल होने पर ट्रस्ट की ओर से मदद की रकम उन्हें सौंपी जानी थी।1966 की एक चिट्ठी से पता चलता है कि अनीता बोस को 1965 में उनकी शादी होने तक कांग्रेस की ओर से मदद भेजी जाती रही, जबकि उनकी मां ने मदद लेने से इनकार कर दिया था। अनीता जब चार हफ्ते की थीं, तब पिता सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें देखा था। यही उनके लिए बेटी की पहली और आखिरी झलक साबित हुई।
25 साल बाद पं. नेहरू ने पहना बैरिस्टर वाला गाउन
1945 में पांच नवंबर को जब ब्रिटिश सेना ने सुभाष चंद्र बोस की अगुआई वाली इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के पकड़े गए सिपाहियों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने खुद उनकी ओर से मुकदमा लड़ा था। करीब 25 साल बाद नेहरू ने इस केस के लिए बैरिस्टर वाला गाउन पहना था। आईएनए के शाहनवाज खान, प्रेम सहगल और गुरबख्श ढिल्लन पर राजा के खिलाफ जंग छेड़ने और कत्ल के आरोपों में मुकदमा चला। लाल किला के एक बैरक की दूसरी मंजिल पर एक विशाल कमरे में अदालत लगी। कांग्रेस के भूलाभाई देसाई और बैरिस्टर तेज बहादुर सप्रू जैसे नेता आईएनएए की ओर से लड़ने वाली वकीलों की फौज में शामिल थे।
नामकरण भी ढेर सारे
नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर पश्चिम बंगाल, दिल्ली, ओड़िशा, असम समेत कई राज्यों में मोहल्ले, मेट्रो स्टेशन, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, पुल, कॉलेज, सड़क, स्टेडियम आदि के नाम रखे गए हैं।