शरद पवार ने 2 मई को नेशनल कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा की। 24 साल पहले पवार ने ही NCP का गठन किया था। पवार के फैसले ने पूरे विपक्षी खेमे को अनिश्चितता में डाल दिया है। 82 वर्षीय पवार की दोस्ती विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में है। विपक्षी गठबंधन के किसी भी रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होने की संभावना है।

जब लंबी रेस के घोड़े से डर गई थी कांग्रेस!

अपनी किताब ‘लाइफ ऑन माय टर्म्स- फ्रॉम द ग्रासरूट्स टू द कॉरिडोर्स ऑफ पावर’ में पवार ने लिखा है कि सोनिया नहीं चाहती थीं कि कोई भी ‘स्वतंत्र दिमाग’ वाला कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। यही वजह है कि 1991 में पीवी नरसिम्हा राव को इस पद के लिए चुना गया।

पवार ने लिखा है कि “10 जनपथ के लॉयलिस्ट निजी बातचीत में कहने लगे थे कि शरद पवार के प्रधानमंत्री चुने जाने से गांधी परिवार को नुकसान होगा। शरद पवार की उम्र अभी कम है। वो लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे।”

बाएं से- शरद पवार और पी.वी. नरसिम्हा राव (Express archive photo)

पवार का आरोप है कि एमएल फोतेदार, आरके धवन, अर्जुन सिंह और वी जॉर्ज ने चाल चली। राव को अधिक सुरक्षित माना गया क्योंकि उनकी उम्र अधिक थी। अर्जुन सिंह स्वयं प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक थे और राव की जगह लेना चाहते थे। हालांकि 1991 में जब एक बार सोनिया गांधी की मंडली ने ‘राव लाओ’ तर्क को स्वीकार कर लिया, तो पार्टी में मेरे खिलाफ माहौल बन गया।

पवार बताते हैं कि बाद में पीसी अलेक्जेंडर ने उन्हें राव की सरकार में रक्षा मंत्री बनने के लिए राजी किया क्योंकि वह उनकी क्षमता को जानते थे।

कांग्रेस से निकाले गए थे पवार

कांग्रेस की भविष्य की योजनाओं के लिए पवार का इस तरह मुख्य भूमिका में होना विडंबनापूर्ण है, क्योंकि ग्रैंड ओल्ड पार्टी (कांग्रेस) से निष्कासित होने के कारण ही पवार ने 10 जून, 1999 को एनसीपी का गठन किया था।

कांग्रेस से निकाले जाने और एनसीपी के गठन के बाद भी कांग्रेस और एनसीपी लंबे समय से एक दूसरे के सहयोगी रहे हैं। शरद पवार ने सोनिया गांधी के साथ काम किया है, जिनके खिलाफ उन्होंने कभी विद्रोह किया था। हालांकि, सोनिया के नेतृत्व में पवार पहले हाई-प्रोफाइल नेता थे जिन्हें कांग्रेस से बाहर किया गया। इसके बाद से कई बड़े नेताओं को पार्टी से निकलते देखा गया है।

सोनिया का क्यों किया था विरोध?

पवार ने सोनिया गांधी को कांग्रेस का नेतृत्व करने और विदेशी मूल का होने के बावजूद खुद को पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करने पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद 20 मई, 1999 को पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ पवार को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। तीनों नेताओं ने मिलकर उसी साल 10 जून को NCP की स्थापना कर दी थी।

हालांकि सोनिया के खिलाफ पवार की नाराजगी एक दिन में चरम पर नहीं पहुंची थी, इसकी अपनी एक पृष्ठभूमि है।

सोनिया गांधी ने कम आंका

पवार ने अपनी किताब में बताया है कि 1996-97 के दौरान लोकसभा में कांग्रेस के नेता के रूप में कई मौकों पर सोनिया ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष उनकी क्षमता को कम करके आंका। सोनिया के साथ अपने खराब संबंध पर पवार लिखते हैं, जब मैं कुछ तय करता, तो वह ठीक उसके विपरीत करतीं। अगर मैंने पीसी चाको को पार्टी की ओर से बहस शुरू करने के लिए चुना, तो वह उन्हें सिर्फ इसलिए बदल देंगी क्योंकि वह मेरे ‘करीबी’ हैं।

1986 में कांग्रेस (एस) और कांग्रेस (आई) के विलय के दौरान के घटनाक्रम को याद करते हुए पवार लिखते हैं कि राजीव गांधी ने अपने भाषण में मेरा नाम तक नहीं लिया, “मैं इसका श्रेय गांधी परिवार की मानसिकता को देता हूं। चाहे इंदिरा जी हों, राजीव हों या सोनिया जी, सभी गांधी कांग्रेस को अपनी पारिवारिक जागीर मानते हैं।