‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी’ की सफलता के बाद डायरेक्टर हंसल मेहता (Hansal Mehta) अब ‘स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’ लेकर आ रहे हैं। इस वेब सीरीज़ का ट्रेलर चार अगस्त को रिलीज हो चुका है। स्कैम 1992 की तरह हर्षद मेहता की यह सीरीज़ भी भारत के प्रसिद्ध वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में से एक को स्क्रीन पर उकेरेगी। यह सीरीज़ अब्दुल करीम तेलगी पर केंद्रित है, जिसने हजारों करोड़ का ‘स्टांप घोटाला’ किया था।
हर्षद मेहता ने यह सीरीज़ पत्रकार संजय सिंह द्वारा लिखी किताब ‘रिपोर्टर की डायरी’ के आधार पर बनाई है।
कौन था अब्दुल करीम तेलगी?
तेलगी का जन्म 1961 में कर्नाटक के एक छोटे से पंचायत शहर खानापुर में हुआ था, जो महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है। तेलगी के पिता रेलवे में काम करते थे। परिवार निम्न-मध्यम वर्गीय था। पिता की मृत्यु के बाद तेलगी को ट्रेनों में खाने-पीने का सामान बेचने सहित छोटे-मोटे काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जब इन सब से काम नहीं चला तो वह पैसा कमाने सऊदी अरब चला गया।
वापस लौटने पर, उसने कथित तौर पर नकली पासपोर्ट बनाने में अपना हाथ आजमाया और फिर नकली स्टांप पेपर बनाना शुरू कर दिया। भारत में कानूनी दस्तावेजों को प्रमाणित करने के लिए स्टांप पेपर का उपयोग किया जाता है और सरकार उन्हें पंजीकृत विक्रेताओं के माध्यम से बेचती है। इनकी लागत 10 रुपये, 100 रुपये, 500 रुपये आदि होती है। स्टांप का पैसा सरकार के खाते में जाता है।
कैसे हुआ स्टांप पेपर घोटाला?
उन दिनों लीगल डॉक्यूमेंटेशन के लिए स्टांप पेपर की किल्लत थी। तेलगी ने इसे अपॉर्चुनिटी की तरह लिया। वह अपने नकली स्टांप उन हताश-परेशान लोगों को बेचने निकला जिन्हें उसकी की जरूरत थी। लेकिन उन्हें स्टांप मिल नहीं रहा था। यह पूरे 1990 के दशक तक जारी रहा। बाद की जांच से पता चला कि तेलगी ने अपने घोटाले को इंडियन सिक्योरिटी प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र) के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर अंजाम दिया था। इस प्रकार सिस्टम के भीतर अधिकारियों की कमी और अधिकारियों की सहायता ने पूरे देश में उसके अवैध कारोबार को फैलाने में मदद की।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां तेलगी ने अपने टैक्स रिटर्न के अनुसार 1996 से 2003 के बीच हर साल कुछ लाख की आय घोषित की, वहीं बेंगलुरु के एक टैक्स ट्रिब्यूनल ने 2010 में कहा कि उसने नकली स्टाम्प पेपर के कारोबार से बेहिसाब रकम जमा की थी। कर विभाग ने जब तेलगी के सिर्फ एक वर्ष (1996-97) के आय का आकलन किया तो पता चला कि उसके पास 4.54 करोड़ रुपये थे, जिसमें से 2.29 करोड़ रुपये का कोई हिसाब नहीं था।
तेलगी के वकील ने तर्क दिया कि कथित बेहिसाब पैसा उसने केरोसिन ट्रांसपोर्टेशन बिजनेस से कमाया था। लेकिन कोर्ट में यह दावा खारिज हो गया क्योंकि अपनी बात साबित करने के लिए उनके पास दस्तावेज नहीं थे।
कैसे पकड़ा गया तेलगी?
2017 की इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, नकली स्टांप पेपर का एक मामला 1991 में और दूसरा 1995 में दर्ज किया गया था। लेकिन मुंबई पुलिस की जांच कथित तौर पर ढीली थी और तेलगी बच गया।
2002 में पुणे सिटी पुलिस के उप-निरीक्षक रमाकांत काले को उनके बेटे, कांस्टेबल अजीत काले से सूचना मिली और उन्होंने पुणे में नकली स्टांप पेपर बेचने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया। इन लोगों से पूछताछ से मिली जानकारी से पुणे पुलिस अब्दुल करीम तेलगी तक पहुंची, जिसे कुछ महीने पहले 2001 में जालसाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और फिर बेंगलुरु जेल में बंद कर दिया गया था।
जनता के बढ़ते दबाव के कारण, महाराष्ट्र सरकार ने एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। आगे की जांच में तेलगी के घोटाले के विस्तार का पता चला। बाद में विभिन्न राज्यों में कई मामले दर्ज होने के बाद, यह सामने आया कि तेलगी ने घोटाला करते समय कथित तौर पर सरकारी अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर ली थी। जांच के दौरान कई शीर्ष पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं के नाम सामने आए थे। हालांकि उन नामों को कभी पब्लिक नहीं किया गया।
एक उदाहरण से तेलगी के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। 9 जनवरी, 2003 को महाराष्ट्र एसआईटी के प्रमुख सुबोध जयसवाल ने पुलिसकर्मियों को तेलगी के साथ उसके कोलाबा स्थित घर में पार्टी करते हुए पाया था। मुंबई पुलिस के तत्कालीन आयुक्त आरएस शर्मा ने मौखिक रूप से एक सहायक पुलिस निरीक्षक को निलंबित करने का आदेश दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। जयसवाल ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 2003 में प्रस्तुत की।
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की एक याचिका का जवाब देते हुए, बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को जांच की निगरानी के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया। इस कार्य के लिए सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एसएस पुरी को नियुक्त किया गया और जयसवाल को उनकी सहायता करने के लिए कहा गया।
एसआईटी ने इस मामले में 2003 में पहली बड़ी गिरफ्तारी की थी। गिरफ्तार हुए व्यक्ति थे महाराष्ट्र के धुले से विधायक अनिल गोटे। दूसरी बड़ी गिरफ्तारी 1 दिसंबर, 2003 को सेवानिवृत्ति के ठीक एक दिन बाद आयुक्त आरएस शर्मा की हुई। उन पर तेलगी को बचाने का आरोप था।
एसआईटी ने 54 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें दो विधायक – गोटे और कृष्णा यादव भी शामिल थे, जिन्हें आरोप सामने आने के बाद तेलुगु देशम पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। 2004 में जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अपने हाथ में ले लिया, जिसने उसी साल अगस्त में तेलगी के खिलाफ एक लंबा आरोप पत्र दायर किया।
बाद में एसएस पुरी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “तेलगी उन सभी मामलों में दोषी ठहराया गया, जिनके लिए हमने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। उन्होंने कभी इसे चुनौती नहीं दी। तेलगी एक बुद्धिमान व्यक्ति था। यह मामला हमारे सिस्टम की विफलता को दर्शाता है।”
तेलगी के खिलाफ आरोप और जुर्माना
2007 में तेलगी को घोटाले का दोषी ठहराया गया और 30 साल की कैद और 202 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। यह महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम और धारा 120 (आपराधिक साजिश) के तहत था। कोर्ट ने इस मामले में 43 अन्य आरोपियों को भी सजा सुनाई। अधिकांश आरोपी फर्जी स्टांप पेपर बेचने के लिए तेलगी द्वारा नियुक्त किए गए व्यक्ति थे। फैसले से पहले कथित तौर पर अपनी पत्नी शाहिदा की सलाह के बाद, तेलगी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था।
हालांकि ऐसा कहा जाता है कि जेल के अंदर से भी तेलगी कथित तौर पर अपना कारोबार चलाने में कामयाब रहा। एक अधिकारी ने कहा, “कुछ पुलिस अधिकारियों ने तेलगी को मोबाइल फोन मुहैया कराया था, जिसका इस्तेमाल वह अपने कारोबार को अंजाम देने के लिए करता था। जब तक जेल अधिकारियों को पता चला, उन्होंने नंबर को सर्विलांस पर रखा। लेकिन तेलगी ने अपना सिम बदल लिया”
2001 में अपनी गिरफ्तारी से बहुत पहले पुलिस हिरासत में रहते हुए, तेलगी कथित तौर पर एड्स से पीड़ित था। 2017 में मुंबई के एक अस्पताल में मल्टी-ऑर्गन फेल्योर से उसकी मृत्यु हो गई। महाराष्ट्र की एक अदालत ने साल 2018 में स्टाम्प पेपर घोटाला मामले में आरोपी तेलगी और अन्य को बरी कर दिया।